'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !
'अठ-नम्बरी' ने बेट से छक्के छुड़ा दिये.
'राजा' ने बिना-तार* भी छेड़े करोड़ों राग, [*wireless]
'अर्थो' की सब व्यवस्था के बाजे बजा दिये.
'आदर्श हो गए है, हमारे flat* अब, [*ध्वस्त]
'ऊंचाई' पाने के लिए ख़ुद को गिरा दिये.
'दर्शन' को जिसके होते हज़ारो कतारबद्ध!
वाणी के बाण से कई मंदिर* ढहा दिये. [*अनुशासनिक आदर्श]
mansoor ali hashmi