तब और अब !
[दुनिया को तका करते थे जोशो खरोश से]
आँखे झुकी हुई है अब भोंहों के बोझ से,
पैशानी की सलवट से, फ़िक्रो से, सोच से।
लहरो पे सवारी भी किया करते थे अक्सर,
क्यों ख़ौफ़ज़दा अब हुए दरया की मौज से ?
अब फ़िक्र calories की हमको सताती है,
पहले तो सारी चीज़ ही खाते थे शौक़ से।
रंगीन ख्वाब देखना, था अपना मशगला,
अब स्वप्न भी आते है तो, आते है दोष से
अब लूटना ही देश को; भक्ति है, धर्म है,
लाये कहाँ से नेता 'भगत' से या 'बोस' से ?
तब तो ग़लत हुआ था मगर आज ज़रूरत,
नक़ली 'महात्माओं' की ख़ातिर इक 'गोडसे' !
--mansoor ali hashmi
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