अबकि 'चुनाव' जीत के हम भी दिखाएँगे !
अब सद-चरित्र ! भाव में बारह के जायेंगे।
'सद भावना' से 'दान में, मिलती 'भूमि' अगर,
'संत भावना' ही से तो, उसे हम पचाएंगे।
'त्रि नाड़ी शूल', जेल का एकांत हाए-हाए !
'पंचेढ़-बूटी' संग मेरी 'नीता' बुलाएंगे ?
यह भी तो 'राम-राज्य' है, पानी के भाव ! 'अन्न'
सरकार दे रही है तो हम बैठ खायेंगे।
'कौड़ी' के भाव मिल गयी, सत्ता में सुख तो है,
'ससुराली' है ज़मीन इसे बेच खायेंगे!
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--mansoor ali hashmi
1 comment:
बहुत दिनों बाद ओरिजनल रंग में दीख पड़े हैं।
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