गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई , इस अवसर पर अहमद अली बर्की साहब की एक नज़्म उनकी इजाज़त लेकर पेश कर रहा हूँ:- म. हाश्मी.
एक जश्ने बा वक़ार है छब्बीस जनवरी
--डा. अहमद अली बर्की आज़मी
[Saheb e Akhtiyar haiN Mansoor Aap ko akhtiyar hai is ka
Shukriya Janab e aali is nawaazish ke liye.
Mukhlis
Ahmad Ali Barqi आज़मी]
Shukriya Janab e aali is nawaazish ke liye.
Mukhlis
Ahmad Ali Barqi आज़मी]
- By AHMAD ALI BARQI AZMI
एक जश्ने बा वक़ार है छब्बीस जनवरी,
इक वजहे इफ़्तेख़ार है छब्बीस जनवरी.
परचम कुशाई कीजिये हरजां बसद ख़ुलूस,
मीज़ाने ऐतेबार है छब्बीस जनवरी.
दस्तूरे हिंद का था इसी दिन हुआ नेफाज़* *[लागू]
इस की ही यादगार है छब्बीस जनवरी.
दुनिया में है जो हिंद की अज़ मत का इक निशाँ
वोह जश्ने शानदार है छब्बीस जनवरी.
गुल्हाए रंग रंग हैं इसके नज़र नवाज़,
सब के गले का हार है छब्बीस जनवरी.
सब के सुकूने क़ल्ब का बाईस हो यह न क्यों
इक नख्ले साया दार है छब्बीस जनवरी.
जितना भी दिल लगाना है इस से लगाइए
बस प्यार, प्यार, प्यार है छब्बीस जनवरी.
जितना भी कोई नाज़ करे इस पे है वोह कम
'बर्की' तेरा वक़ार है छब्बीस जनवरी.
3 comments:
धन्यवाद आज़मी साहब सुंदर रचना
उर्दू के अल्प ज्ञान के कारण इसका पूरा आनन्द नहीं ले पाया। भावों का अनुमान लगा कर ही खुश हो रहा हूँ।
.
जवाब नहीं डॉ. अहमद अली बर्की आज़मी साहब का !
…और जवाब नहीं हमारे प्यारे चचाजान मंसूर अली हाशमी साहब का !
बहुत ख़ूब !
कृपया, ब्लॉग पर लगे विजेट्स को सुव्यवस्थित करें !
शुभकामनाओं सहित …
Post a Comment