Friday, April 22, 2011

माले मुफ्त - दिले बेरहम!


माले मुफ्त - दिले बेरहम!

संतोष जिसे है उसे थोड़ा भी 'घणा' है,
जो ज़ोर से बाजे है वही थोथा चना है.

आकाश को छूती हुई क्यूँ तेरी अना* है,    *[Ego]
तू खाक का पुतला है तू मिटटी से बना है.


'बाबा' के 'चमत्कार' हवाओं में दिखे है! 
कहते है पवन पूत भी वायु से जना है.

वायु में बवंडर है तो धरती में है कंपन,
'रामू' तो यह कहते है कि 'डरना भी मना है'.

अब 'कूक' न नगमे है न वो बादे सबा है!
जब फूल न शाख़े है; न फ़ल है न तना है.


अब 'मुफ्त' का खा कर जो हुआ कब्ज़ तो सुन लो,
जुल्लाब लगा देती जो पत्ती; वो 'सना'* है.      *[?]

--mansoor ali hashmi 

5 comments:

Dr. Yogendra Pal said...

अति सुन्दर

एक ऐसा लिंक जो आपके ब्लॉग पर पाठक को बनाये रखेगा

विष्णु बैरागी said...

अब 'मुफ्त' का खा कर जो हुआ कब्ज़ तो सुन लो,
जुल्लाब लगा देती जो पत्ती; वो 'सना'* है.

यह पत्‍ती गली-गली मे बँटवा दीजिए।

हल्ला बोल said...

हाशमी साहब, आप हमारे ब्लॉग पर आये अच्छा लगा, यह ब्लॉग मुस्लिम भाइयों का विरोध करने के लिए नहीं बल्कि बाबर और लादेन जिस इस्लाम की परिभासा देते हैं उनके विरोध के लिए है. आप खुले मन से अपना विचार भी व्यक्त करें. आप जैसे लोंगो को चर्चित होना चाहिए पर चर्चित वे हो रहे हैं जो विघटन पैदा करते हैं. आपका स्वागत है.
देशभक्त हिन्दू ब्लोगरो का पहला साझा मंच - हल्ला बोल

सहज समाधि आश्रम said...

nice blog it my first time

दिनेशराय द्विवेदी said...

अब तो सना भी दस्त नहीं लाती।