कुंबा है मेरा देश, मैं सरदार इसका हूँ!
पैमाना भर गया है? मुझे कुछ पता नही !
लाखो करोड़ कम है? कुछ और लिजीयेगा!
खाली हुआ खज़ाना ? मुझे कुछ पता नही !
कुछ 'LEAK' हो गया है,कुछ और 'LEAK' होगा.
टपके गा कौन अबकी ? मुझे कुछ पता नही !
अब 'चि' भी बोल उठे है, "उत्तर नहीं पसंद",
'उसका निजी ख्याल' , मुझे कुछ पता नही !
'बाबा' को दिख रहा है; 'काला' क्यूँ हर तरफ?
'बा' से करो सवाल, मुझे कुछ पता नही !
अब 'जेटली' की केटली में आ रहा उबाल,
"मौक़ा परस्ती" क्या है? मुझे कुछ पता नही!
मंसूर अली हाश्मी
5 comments:
कमाल कर दिया जनाब!
इस रचना की सब से वजनदार पंक्ति है यह...
पैमाना भर गया है? मुझे कुछ पता नही !
करारा करारा :)
बहुत सटीक!
हुज़ूर आपको नहीं तो फिर किसे पता होगा...:-) बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
वैसे जिन्हें पता है वे भी मौकापरस्ती दिखाते हुए मुकर गये हैं :)
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