Thursday, October 28, 2010

एक रूबाई


 
जिस तरह माह-ओ-साल बीत गए,
यह ज़माना भी बीत जाएगा,
'हाशमी' वक़्त का ख्याल न कर,
एक दिन तू भी मुस्कुराएगा.


-मंसूर अली हाशमी
http://aatm-manthan.com

5 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत खूब। आप हमेशा मुस्कुराते रहें। शुभकामनायें।

Mansoor ali Hashmi said...

Udan Tashtari has left a new comment on your post "Oracle Open Office | Applications | Oracle":

टू को तू कर लें तो हमारी मुस्कराहट रुके.

धन्यवाद समीर जी,
आप "हूट-तू-तू" करते हुए Oracle Open Office | वाले पाले [पोस्ट] में चले गए थे.
मैंने भी आपको पकड़ लिया, सच-मच हंसा गए आप.
गलती सुधार ली है. window live writer के ज़रिये यह पहली तजरुबाती पोस्ट थी, आकाश ही में पकड़ ली 'उड़न तश्तरी' ने !

--
mansoorali hashmi

दिनेशराय द्विवेदी said...

हम भी चाहते हैं देखना,
मुस्कुराते हुए, आप को।

mridula pradhan said...

bahot achchi likhi.

उम्मतें said...

आमीन ! वैसे...


अब तक जो था गर वो मुस्कराना नहीं था तो फिर आगे का हाल क्या होगा :)