हृदयांजलि: अपना पीडीएफ पुस्तक कैसे प्रकाशित करें: "लिंक
एक लिंक बना"
Monday, November 30, 2009
लिब्राहन आयोग / Liberhan Commission
लिब्राहन आयोग
एक 'रपट' फिर लीक हो गयी,
एक 'रपट' फिर लीक हो गयी,
हार किसी की जीत हो गयी.
देर से आई, ख़ैर न लायी,
कैसे भी कम्प्लीट हो गयी.
तोड़-फोड़ तो एक ही दिन की,
'सत्रह साली' ईंट* हो गयी.
संसद पर जो भी गुज़री हो,
'अमर-वालिया' meet हो गयी.
हो न सका 'कल्याण' जो खुद का,
मंदिर से फिर प्रीत हो गयी.
बड़े राम से , निकले नेता,
बिगड़ी बाज़ी ठीक हो गयी.
*ईंट= निर्माण के लिए बनायी गयी.
-मंसूर अली हाशमी
litrature, politics, humourous
Dirty Politics
Sunday, November 29, 2009
टी. वी. चेनल्स /T V Channels
टी. वी. चेनल्स
खबरों के कुछ चेनल बीमार नज़र आते है,
खबरों के कुछ चेनल बीमार नज़र आते है,
इनमे से कुछ लोकल अखबार नज़र आते है.
बिग बोसों के छोटे कारोबार नज़र आते हैं,
छुट-भय्यो को,हर दिन त्यौहार नज़र आते है.
नोस्त्रोद्र्म के चेले तो बेज़ार नज़र आते है,
प्रलय ही के कुछ चेनल प्रचार नज़र आते है.
कुछ चेनल तो जैसे कि सरकार नज़र आते है,
मिनिस्टरों से भरे हुए दरबार नज़र आते है.
घर का चेन भी लुटते देखा है इसकी खातिर,
आतंक ही का ये भी एक प्रसार नज़र आते है.
इतने पास से दूर का दर्शन ये करवाते है,
संजय* जैसे भी कुछ तारणहार नज़र आते है.
भविष्य फल पर टिका हुआ, अस्तित्व यहाँ देखा,
नादानों को दिन में भी स्टार* नज़र आते है.
चीयर्स बालाओं से शोहरत* का घटना-बढ़ना,
खेल-कूद में कैसे दावेदार नज़र आते है!
नूरा कुश्ती, फिक्सिंग के मतवालों की जय-जय,
झूठ को सच दिखलाने को तैयार नज़र आते है.
'श्रद्धा' से 'आस्थाओं' से हो कर ओत-प्रोत,
धर्म के रखवाले यहाँ सरशार* नज़र आते है.
*संजय=दूर द्रष्टा[महा भारत के एक पात्र]
*सितारे
*शोहरत=टी.आर.पी.
*सरशार=मस्त
-मंसूर अली हाशमी
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kaleidoscope
Tuesday, November 17, 2009
कटी पतंग /kati patang
कटी पतंग
[शब्दों का सफ़र पर अजित वडनेरकरजी कि आज कि पोस्ट मांझे की सुताई
से चकरी व् मांझा उधार ले कर .......]
अभी हाल ही में कटी थी पतंग,
पुराना था मंझा लगी जिस पे ज़ंग,
थी सत्ता कि चाहत बड़ी थी उमंग,
नतीजो ने उनका उड़ाया है रंग.
है अपने सभी तो नज़र क्यों हो तंग,
ज़ुबानो-इलाकों में क्यों छेड़े जंग,
जो सदियों में जाकर मिली है हमें,
उस आज़ादी में अपनी डाले क्यों भंग.
खिलाड़ी से फिर एक टकरा गए,
सुनी बात उसकी तो चकरा गए,
डराने भी आये वो ''ठकरा'' गए,
बयानों में अपने ही जकड़ा गए.
मंसूर अली हाश्मी
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Politics-Ideological crisis
Sunday, November 15, 2009
अवमूल्यन /devaluation
अवमूल्यन
जो बे हुनर थे आज वो इज्ज़त म'आब* है,
अच्छे भलो का देखिये ख़ाना खराब है.
ताउम्र भागते रहे जिसकी तलाश में,
पाया ये बिल अखीर* के वो तो सराब* है.
संस्कार और शरीअते सिखलाने वालो के,
हाथो में हमने देखा कि उलटी किताब है.
जीरो पे है फुगावा निरख* आसमान पर,
उलटा है गर ज़माना तो उलटा हिसाब है.
सब्जेक्ट, ऑब्जेक्ट है; फिर कैसा इम्तिहाँ?
हैरान से खड़े ये सवाल-ओ-जवाब है.
*प्रतिष्ठित, अंत में, मृग-तृष्णा , दाम[मूल्य]
मंसूर अली हाशमी
जो बे हुनर थे आज वो इज्ज़त म'आब* है,
अच्छे भलो का देखिये ख़ाना खराब है.
ताउम्र भागते रहे जिसकी तलाश में,
पाया ये बिल अखीर* के वो तो सराब* है.
संस्कार और शरीअते सिखलाने वालो के,
हाथो में हमने देखा कि उलटी किताब है.
जीरो पे है फुगावा निरख* आसमान पर,
उलटा है गर ज़माना तो उलटा हिसाब है.
सब्जेक्ट, ऑब्जेक्ट है; फिर कैसा इम्तिहाँ?
हैरान से खड़े ये सवाल-ओ-जवाब है.
*प्रतिष्ठित, अंत में, मृग-तृष्णा , दाम[मूल्य]
मंसूर अली हाशमी
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Changing Values
Saturday, November 14, 2009
नया पैमाना /Forbes- Power Measuring Machine!
नया पैमाना
अप-डेट* होके गुंडे पाए नया मुकाम,
दाऊद पूरबी तो, पश्चिम का है ओसाम[a].
सर्वेयरों* को मिलते अब रोज़ नए काम
बदनाम भी हुए तो होता है बड़ा नाम.
*Forbes' List
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Changing Values
Thursday, November 12, 2009
माय फूट!/ My Foot
माय फूट!
वो नहीं बोलता झूट,
वो नहीं बोलता झूट,
''अमची'' न बोला तो 'हूट'
माय फूट!
'आज़मी' को डाला कूट ,
किसको भली लगी करतूत?
माय फूट.
अस्मिता में डाली फूट,
कैसी मानुस में अब टूट,
माय फ़ुट.
चाहें देश ये जाए टूट,
दल को करना है मजबूत,
माय फूट.
नही पूरा हुआ [कर] नाटक,
केवल बदल गया है रूट,
माय फूट.
वे नहीं बोलते झूट,
खद्दर का पहने है सूट,
माय फूट!
उसने लिए करोड़ो लूट,
जिसको मिली ज़रा भी छूट,
माय फूट.
-मंसूर अली हाशमी
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Dirty Politics
Sunday, November 8, 2009
चटका/Comments!
चटके का झटका
वाणी मेरी पढ़के उसने आज एक चटका दिया,
वाणी मेरी पढ़के उसने आज एक चटका दिया,
अर्थ उनके शब्दों का में ढूंढ़ता ही रह गया,
वो लिखे कि- इतने सुन्दर,कितने सुन्दर आप है,
इस बुढापे में ये कितनी ज़ोर का झटका दिया.
अब ब्लागों पर लगी तस्वीर का मैं क्या करू,
छप गई; हटती नहीं मुझसे दुबारा क्या करू,
Mail पर भी तो वो आने लगे है आजकल,
थोड़ा-थोड़ा मुझको भी भाने लगे है क्या करू?
नेट पर छपना भी अब तो छोड़ देना चाहिए,
रिश्ता-ए-कागज़ कलम फिर जोड़ देना चाहिए,
नेट के रिश्तो से डर लगने लगा है आजकल,
टिप-टिपाकर pass है ;अब 'मोड़' देना चाहिए.
-मंसूर अली हाशमी
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self searching
Saturday, November 7, 2009
आत्म-प्रसंशा /Self Appreciation
प्राप्ति ....कमेंट्स की!
पीठ खुजाने में दिक्कत है?
आओ! एसा कर लेते है...
मैं खुजलादूं आपकी...
बदले में , मेरी ;
तुम खुजला देना.
एक हाथ से मैंने दी तो,
दूजे से तुम लौटा देना.
कर से, कर [tax] ही की भाँति
अधिक दिया तो वापस [refund] लेना.
-मंसूर अली हाशमी
पीठ खुजाने में दिक्कत है?
आओ! एसा कर लेते है...
मैं खुजलादूं आपकी...
बदले में , मेरी ;
तुम खुजला देना.
एक हाथ से मैंने दी तो,
दूजे से तुम लौटा देना.
कर से, कर [tax] ही की भाँति
अधिक दिया तो वापस [refund] लेना.
-मंसूर अली हाशमी
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Between the Lines
Tuesday, November 3, 2009
Karnataka/scam/terror
कर- नाटक !
# अब दल का खुला है फाटक,
''कर'' लो जो भी हो ''नाटक''.
'येदू' जो कभी ''रब्बा'' थे,
अब क्यों लगते है जातक.
# धन ढूंढ़ता राजा को पहले,
अब ''राजा'' को धन की चाहत,
पैकेज बने तो सत्ता में,
बैठो को मिलती है राहत.
# आतंक तलवार दो-धारी,
दुश्मन से कैसी यारी,
अब कर ली है तैयारी,
माता हम तुझ पे वारी
-मंसूर अली हाशमी
litrature, politics, humourous
Dirty Politics
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