Friday, August 14, 2009

Reducing.....

कम करदी


उनके शीरी थे सुखन हम ने शकर कम करदी,

रक्त का चाप बढ़ा, हमने फिकर कम करदी।


बढ़ते दामो ने बिगाड़ा है बजट क्या कीजे,

तंग जब पेंट हुई, हमने कमर कम करदी।


महंगी चीजों से हुआ इश्क, ख़ुदा ख़ैरकरे,

उनको उल्फत थी उधर, हमने इधर कम करदी।


अब ''फ्लू'' फूला-फला है तो अजब क्या इसमे !

चाँद को पाने में धरती पे नज़र कम करदी।


दीद के बदले सदा* छींकों की सुनली जबसे,
उनके कूंचे से अभी हमने गुज़र कम करदी


*गूँज

-मंसूर अली हाशमी

5 comments:

M VERMA said...

अब क्या क्या कम करे बताईए
कब तक आँखे नम करे बताईए
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बहुत खूब लिखा है आपने
बहुत अच्छा लगा

ओम आर्य said...

bahut hi sundar bhaw our shabd hai shidhe dil tak pahuncha...........badhaaee

दिनेशराय द्विवेदी said...

जश्ने आजादी के मौके पर इस से खूबसूरत रचना और क्या होगी।
स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ।

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

छा गए चचा!
छा गए!

Satish Saxena said...

पहली बार पढ़ा है आपको, अच्छा लगा, स्वागत है आपका भाई जी !!