''खुशफहमी'' समीर लालजी के दुःख पर [२८.०६.०९ की पोस्ट पर]
चिडियों को अच्छा न लगा,
आपका वातानुकूलित बना रहना,
वें सोचती थी; गुस्साएगे आप,
निकल आयेंगे बगियाँ में,
जब कुछ फूल नष्ट होने पर भी आप न गुस्साए,
और न ही बाहर आये,
तब वे ही गुस्सा गयी.....
वें मिलने आप से आई थी,
फूलो से नहीं,
आपने गर्मजोशी नहीं दिखाई,
अनुकूलित कमरे में,
मन में भी ठंडक भर ली थी आपने.
ऎसी ही उदासीनता का शिकार,
आज का मनुष्य हुआ जा रहा है,
अपना बगीचा उजड़ जाने तक.
काश! चिडियाएँ,
हमारा व्यवहार समझ पाती.
-मंसूर अली हाशमी
7 comments:
बहुत गहरी बात कही है आपने। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
काश! चिडियाएँ,
हमारा व्यवहार समझ पाती.
-बस, यही दुआ करता हूँ.
बहुत बेहतरीन!
समीर भाई को शानदार भेंट दी है आप ने।
बहुत सुन्दर कविता
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चर्चा । Discuss INDIA
चिंता है तो चिंतन भी है
बहुत खूब ---
चिंता है तो चिंतन भी है
बहुत खूब ---
बहुत खूब हाशमी साहब...
समीर लाल कुछ जाने, कुछ अनजाने लगे...
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