Friday, March 13, 2009

आत्म घात्

आत्म घात् !


ख़ामोश दिवाली देख चुके, अब सूखी होली खेलेंगे,
हुक्मराँ हमारे जो चाहे, वैसी ही बोली बोलेंगे।
वारिस हम थे संस्कारो के,विरसे में मिले त्यौहारो के,
वन काट चुके, जल रेल चुके, किसके ऊपर क्या ठेलेंगे ।

-मंसूर अली हाशमी