बनना
बस्ती जब बाज़ार बन गयी,
हस्ती भी व्यापार बन गयी।
भिन्न,विभिन्न मतो से चुन कर,
त्रिशन्कु सरकार बन गयी।
लाख टके की बात सुनी थी,
सुन्दर नैनो कार बन गयी।
आतंक का हथयार बन गयी।
लोक-तन्त्र की जय-जय,जय हो,
राजनीति घर-बार बन गयी।
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-मन्सूर अली हाशमी
8 comments:
bahot hi umda likha hai aapne,bahot hi badhita byanga kasa hai aapne dhero badhai aapko...
arsh
its a butiful creation.i enjoyed reading.
तंज़ बढ़िया कहा आपने बहर में।
बड़ी राजनीतिक ग़ज़ल है, वाह!
मन्सूर अली हाशमी जी वाह क्या बात कही आप ने, बहुत सुंदर ,
धन्यवाद
बढ़िया है भाई.
मंसूर साहेब....क्या खूब कहा है...
लाख टके की बात सुनी थी,
सुन्दर नैनो कार बन गयी।
सुभान अल्लाह ...खूबसूरत ग़ज़ल...
नीरज
wah ji ghar bar ki rajniti ur bar k kmaal
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