धर्मनिर्पेक्षता
धर्मनिर्पेक्षता
इस शब्द का सार लिए,
घूम रहा हूँ, निर्वस्त्र सा लगभग
एक लंगोटी है बस,
अस्मिता की सुरक्षा को,
एक क्षीण पर्दे की तरह,
जो नैतिकता व मर्यादा की प्रतीक है,
इस पर्दे को मैंने नही हटने दिया
क्रुद्ध-भीड़ो और धर्म-वीरो से जूझकर,
विभिन्न आस्था के धर्मावलंबियो से निपट कर
क्योकि वो मेरा धर्म देखना या जानना चाह्ते थे।
उनमें से कुछ मुझे अभय-दान भी दे देते,
मगर मैंने किसी को यह अधिकार नही दिया,
अपने धर्म पर से निर्पेक्षता के पर्दे को हटने नही दिया।
मेरा निमन्त्रन है, केवल मनुष्यो को…,
आओ! इससे पहले कि मेरी धर्मनिर्पेक्ष आत्मा
यह ज़ख्मो से लहू-लुहान शरीर छोड़ दे
इस का मर्म समझ लो;
मगर मेरा धर्म जानने का प्रयत्न तुम भी न करना।
मेरे निकट यह अत्यन्त निजी वस्तु है,
उसे अन्तर्मन में ही सुरक्षित रहने दो,
उसे प्रदर्शित मत करो!
उसे नंगा मत करो!!
-मन्सूर अली हाशमी
8 comments:
good written
gm rajesh
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इस कविता के लिए इतना ही बहुत है....
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्!
मन्सूर अली जी,
दिल को छू गयी आपकी यह रचना, बधाई स्वीकारें..
***राजीव रंजन प्रसाद
aapka blog padha. Bahut Acchha laga. Kripya aise hi likhte rahen.
yaqeenan dil ko chhu gai !!!
saleem
9838659380
अच्छा प्रयास
धन्यवाद
एक उत्कृष्ट कविता. बस सभी समझ लें
बहुत सुंदर!!!
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