Wednesday, March 17, 2010

गो-डाउन [going down]

गो-डाउन [going down]  
[अजित वडनेरकरजी की आज{१७-०३-१०} की पोस्ट  गोदाम, संसद या डिपो में समानता से प्रेरित होकर]

''माल'' हमने ''चुन'' के जब  पहुंचा दिया गोदाम में.
शुक्रिया का ख़त मिला; ''अच्छी मिली 'गौ' दान में.



पंच साला ड्यूटी देके लौटे, साहब हाथ में,
''दो'' के लगभग  के वज़न की बैग थी सामान में.

कोई भंडारी बना तो कोई कोठारी बना,
वैसे तो ताला मिला है, उनकी सब दूकान में.

कितनी विस्तारित हुई 'गोदी' है अब हुक्काम की
शहर पूरा 'गोद  में लेना' सुना एलान में.

है वही नक्कार खाना और तूती की सदा,
आ रही है देखिये क्या खुश नवां इलहान में.*

*अब संसद में भी औरतो की दिलकश आवाज़े अधिक ताकत से गूंजने और सुनाई देने की संभावनाएं बढ़ रही है.

-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com




Friday, March 12, 2010

ज़ुबाँ/ Tongue



ज़ुबाँ / tongue / लेंगुएज 

दो धारी तलवार ज़ुबाँ  है,
करवाती तकरार ज़ुबाँ  है.

मिलवादे तो यार ज़ुबाँ है.
चढ़वादे तो दार* ज़ुबाँ है.

भली-भली जो चीज़े देखे,
रसना भी है,लार ज़ुबाँ है.

नंगे और भूखे* लोगों की,
कुरता भी शलवार ज़ुबाँ  है.**

मीठा-मीठा गप-गप करती,
कडवे पे थूँकार ज़ुबाँ है.

बक-बक, झक-झक करती रहती,
कौन कहे लाचार ज़ुबाँ है? 

जीभ जिव्हा पर क्यों न चढ़ती?
थोड़ी सी दुशवार ज़ुबाँ है.

अंग्रेजी पर टंग[tongue] बैठी है,
किसकी ये सरकार ज़ुबाँ है.

लप-लप, लप-लप क्यों करती है?
पाकी या फूँफ्कार ज़ुबाँ है.

शब्द अगर न साथ जो देवे,
आँख की  एक मिच्कार[winking] ज़ुबाँ है.

समग्रता का यहीं तकाज़ा,
हिंदी ही दरकार ज़ुबाँ है.

दिल की बातें बयाँ करे जो ,
एक यही गमख्वार ज़ुबाँ है.

बटलर भी हिटलर बन जाए!
कितनी अ- सरदार ज़ुबाँ है.

बहरो की सरकार अगर हो,
कितनी ये लाचार ज़ुबाँ है!

गूँगो की सरकार बने तो,
'कान' की पहरेदार ज़ुबाँ है.

बहरे-गूंगे जब मिल बैठे,
फिर तो बस दिलदार ज़ुबाँ है.

सच भी झूठ यही से निकले,
एक ही  common द्वार ज़ुबाँ है.

अपनी डफली, राग भी अपना,
आज बनी व्यापार ज़ुबाँ है.

ख़ुद को ही सुनती रहती है,
किसकी परस्तार ज़ुबाँ है?

नीब-जीभ* सब कलम* हो गए,
Net पे अब गुफ्तार ज़ुबाँ है.

कैंची की माफक चलती है,
अपनी तो ''घर-बार'' ज़ुबाँ है.

झूठ-सांच का फर्क मिटाती,
कैसी ये फनकार ज़ुबाँ है.

* दार= फांसी का तख्ता 
*भूखे-नंगे= साधन हीन
** ज़ुबान की मदद से ही अपनी कमिया छुपा लेते है.

* नीब-जीभ = ink-pen में लगने वाली 
* क़लम =कलम करना /काटना/ख़त्म हो जाना. 
-मंसूर अली हाश्मी 

Tuesday, February 23, 2010

कानून, प्रशासन और आम आदमी...

कानून, प्रशासन और आम आदमी...


अंधे
कुए में झाँका तो लंगड़ा वहां  दिखा,
पूछा, की कौन है तू यहाँ कर रहा है क्या?
बोला, निकाल दो तो बताऊँगा माजरा,
पहले बता कि गिर के भी तू क्यों नही मरा?

मैं बे शरम हूँ, मरने कि आदत नही मुझे,
अँधा था मैरा दोस्त यहाँ पर पटक गया,
मुझको निकाल देगा तो ईनाम पाएगा!
शासन में एक बहुत बड़ा अफसर हूँ मैं यहाँ.

तुमको ही डूब मरने का जज ने कहा था क्या?
कानून से बड़ा कोई अंधा हो तो बता?
अच्छा तो ले के आता हूँ ;चुल्लू में जल ज़रा,
एक ''आम आदमी'' हूँ, मुझे काम है बड़ा......!


mansoor ali hashmi

Friday, February 19, 2010

आखिर में

शब्दो से माला-माल कर रहे  अजित जी, की आज [१८-०२-१०] की ''शब्दों का सफ़र'' पर  प्रेरणा दायक पोस्ट से प्रभावित:-
 


माल बनता है मल ही आखिर में,
'आज' बनता है 'कल'* ही आखिर में.

धन पशु है; पशु भी धन ही है,
चल भी होता अचल ही आखिर मे.
 
महंगी होती गई अगर ऊर्जा,
जीतेगी सायकल ही  आखिर में.

नेता कितना बड़ा भी हो लेकिन,
जीत जाता है दल ही आखिर में.

गर्म होकर फरार हो ले भले,
वाष्प  होता है जल ही आखिर में.

जीतता सा लगे भले हमको,
हार जाता है छल ही आखिर में.

बाजपाई सा अब कहाँ ढूंदे,
सबसे अव्वल,अटल ही आखिर में.

दिल पे पत्थर रखे कोई कब तक,
नैना होते सजल ही आखिर में.

''मालखाना'' है कोतवाली में,
जो बचेगा वो ''खल'' है आखिर में.

सर्द रिश्तो में प्यार हो मौजूद,
बर्फ जाती पिघल ही आखिर में,


mansoorali hashmi

Tuesday, February 16, 2010

MHhashmi's Scrapbook Tubely - 100% Free Online Dating Service

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ठेकेदार !

बिन बुलाया कोई मेहमान न चलने दूँगा,
पाक-ओ-कंगारू है बयमान न चलने दूँगा.

मैं किसी और की दूकान न चलने दूँगा,
नाम में जिसके जुड़े 'खान' न चलने दूँगा.

याँ जो रहना है वडा-पाँव ही खाना होगा!
इडली-डोसा, पूरबी-पकवान; न चलने दूँगा.

घाटी लोगों की जमाअत का भी सरदार हूँ मैं,
पाटी वालो का हो अपमान! न चलने दूँगा.

सिंह सी हुंकार भरू; शेर ही आसन है मैरा,
कोई 'ललूआ' बने यजमान, न चलने दूँगा.

इकड़े-तिकड़े जो न सीखोगे; तो ऐसी-तैसी!
बोले 'मानुस' को जो इंसान* न चलने दूँगा.

मैरे अपने को मिले 'राज'; चला लूंगा मगर,
'रोमी' पाए कोई सम्मान! न चलने दूँगा.

valentine पे करो प्यार तो पूछो मुझसे,
love में 'किस' करने का अरमान न चलने दूँगा.

'प्यार के दिन'* पे पिटाई की परिपाटी है!,
'तितलियाँ फूल पे क़ुर्बान' न चलने दूँगा.

यह जो 'ठेका' है मैरे नाम का हिस्सा ही तो है,
मै किसी और का फरमान! न चलने दूँगा.

'सामना' कर नहीं पाओ तो दिखाना 'झंडे',
घर मैरा! ग़ैर हो सुलतान, न चलने दूँगा.

बिन-ब्याहों* को सियासत में न लाना लोगों,
'मन विकारों से परेशान'*, न चलने दूँगा.

रोक दो! शायरी; बकवास नहीं सुनता मैं,
'कोंडके'* सा न हो गुण-गान, न चलने दूँगा.

इंसान=गैर मराठी भाषी शब्द,
प्यार का दिन=valentine day,
बिन-ब्याहे=अटल,मोदी,माया,उमा,
राहुल....
मन विकारों से परेशान= frustrated.

-मंसूर अली हाशमी

http://mansooralihashmi.blogspot.com


Wednesday, February 10, 2010

ठेकेदार !

ठेकेदार !

बिन बुलाया कोई मेहमान न चलने दूँगा,
पाक-ओ-कंगारू है बयमान न चलने दूँगा.

मैं किसी और की दूकान न चलने दूँगा,
नाम में जिसके जुड़े खान न चलने दूँगा.

याँ जो रहना है वडा-पाँव ही खाना होगा!
इडली-डोसा, पूरबी-पकवान; न चलने दूँगा.

घाटी लोगों की जमाअत का भी सरदार हूँ मैं,
पाटी वालो का हो अपमान! न चलने दूँगा.

सिंह सी हुंकार भरू; शेर ही आसन है मैरा,
कोई 'ललूआ' बने यजमान, न चलने दूँगा.

इकड़े-तिकड़े जो न सीखोगे; तो ऐसी-तैसी!
बोले 'मानुस' को जो इंसान* न चलने दूँगा.

मैरे अपने को मिले 'राज'; चला लूंगा मगर,
'रोमी' पाए कोई सम्मान! न चलने दूँगा.

valentine पे करो प्यार तो पूछो मुझसे,
love में किस करने का अरमान न चलने दूँगा.

'प्यार के दिन'* पे पिटाई की परिपाटी है!,
'तितलियाँ फूल पे क़ुर्बान' न चलने दूँगा.

यह जो 'ठेका' है मैरे नाम का हिस्सा ही तो है,
मै किसी और का फरमान! न चलने दूँगा.

'सामना' कर नहीं पाओ तो दिखाना 'झंडे',
घर मैरा! ग़ैर हो सुलतान, न चलने दूँगा.

बिन-ब्याहों* को सियासत में न लाना लोगों,
 'मन विकारों से परेशान'*, न चलने दूँगा.

रोक दो! शायरी; बकवास नहीं सुनता मैं,
'कोंडके'* सा न हो गुण-गान, न चलने दूँगा.

इंसान=अमराठी भाषी शब्द, 
प्यार का दिन=valentine day,
 बिन-ब्याहे=अटल,मोदी,माया,उमा,राहुल....
मन विकारों से परेशान= frustrated.

-मंसूर अली हाशमी

Sunday, January 31, 2010

शीत युद्ध/cold war

खान idiots है, टाइगर genie ?, yes!
दोनों मुंबई से प्यार करते है.........!
जब भी मौक़ा मिला बिना चूके,
एक दूजे पे वार करते है.

-मंसूर अली हाश्मी  


Saturday, January 9, 2010

हॉट/HOT



[HOT...HOTTER....HOTTEST........
   Heartthrob Ranbir Kapoor  is India's Most Desirable Man
    in ZOOM Top 50 list.   -T.O.India 8jan.2010]


अबतो पुरुष भी HOT है, बाज़ार की शै है, 
जिंसों के कारोबार में बिकना भी तो तय है.
तअरीफ* ही बदल गयी लिंगो के भेद की,
जो दोनों काम आ सके कहलाते गै है.

*परिभाषा

Friday, January 8, 2010

नुस्ख़ा

नुस्ख़ा

बढ़े ठंडक ! तो इतना काम कर जा ,
'अमर' बन, इस्तीफा देकर गुज़र जा.

बदल ले भेष*, ग़ालिब कह गए है,
तू खुद अपना ही तो 'कल्याण' कर जा.

'नदी' की 'त'रह बहना खुश नसीबी,  [N D T]
तकाज़ा उम्र का लेकिन ठहर जा.

करे 'आशा'ए तेरी 'राम' पूरी,
ज़रा तू 'लालसाओं' से उभर जा.

*भेष= पार्टी
-मंसूर अली हाशमी

 

Friday, January 1, 2010

लेखा-जोखा

 लेखा-जोखा
फिर नए साल ने दस्तक दी है,
सर्द झोंको ने भी कसकर दी है.

अपनी तकदीर हमें लिखना है,
कोरे सफ्हात की पुस्तक दी है.

बा मुरादों ने दुआए दी तो,
ना मुरादों ने छक कर पी है.

'तेल-आंगन' से न निकला फिर भी,
 हाद्सातों ने तो  करवट ली है.

बर्फ की तरह पिघलती क़द्रें,*
संस्कारों से जो नफरत की है.

ना  मुरादों की खुदा ख़ैर करे,
बा मुरादों ने तो बरकत ली है.

'शिब्बू, 'सौ रन' भी बना ही लेंगे,
कसमें खाने की जो किस्मत ली है.

गर्म* को सर्द बनाने वाले,
'कोप'* भाजन हुए, मोहलत ली है.
telangana 

कद्रें= मूल्य, गर्म=ग्लोबल वार्मिंग, कोप= कोपनहेगन.

-मंसूर अली हाशमी