छुट्टी हो गयी
चमकाने* जो देश चली थी अन्ध्यारे में कैसे खो गई ?
चाँद हथेली पर दिखलाया, सत्ता भी वादा सी हो गई।
''नाथ'' न पाये सत्ता को फिर, 'वसुन'' धरा पर क्यों कर उतरे,
प्यादों ने भी करी चढ़ाई , इन्द्रप्रस्थ* की सेना सो गई।
''जस'' को यश दिलवाने वाली, थिंक-टेंक अपनी ही तो थी,
''जिन्नों'' से बाधित हो बैठी अपनों ही के हाथो रो गई।
बैठक लम्बी खूब टली तो, चिंतन को भी लंबा कर गयी,
मोहन* की बंसी बाजी तो , सबकी सिट्टी-पिट्टी खो गई।
प्रतीक्षा अब छोड़ दो प्यारे, गाड़ी कब की छूट चुकी है,
आशाओं के मेघ चढ़े थे , एक सुनामी सब को धो गई,
साठ पार जो हो बैठे है, चलो चार धामों को चलदे,
घंटी भी बज चुकी है अबतो, चल दो घर को छुट्टी हो गई.
*Shining इंडिया, *राजधानी, *bhaagvat
-मंसूर अली हाश्मी
7 comments:
बहुत सटीक...गजब!
इस में तो सभी बोल रहे हैं।
अत्यन्त सुन्दर रचना है
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गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम
ज्वलंत मुद्दों पर आपके चुटीले अंदाज़वाली काव्यात्मक टिप्पणियों का कहना ही क्या।
बहुत खूब...
मुझे बहुत पसंद आई आपकी रचना
Bahut pyari kavita.
Shayad ye Aapko pasand aayen- Migratory birds Siberian crane , Asiatic pennywort
baba apki rachna bahut achhi h
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