सुरक्षितता ?
जिन "फ़िर-ओनो" की यां खुदाई* थी,
उनकी कब्रों की अब खुदाई है,
रत्न -भंडार तो सुरक्षित है,
मिलकियत उनकी अब पराईहै।
भाग्यशाली तो ये रहे फिर भी ,
इनकी लाशो से भी कमाई है ।
*साम्राज्य
-मंसूर अली हाश्मी
Saturday, September 20, 2008
Shammi Kapoor
शम्मी कपूर
एक समय में अरब मुल्को में खासकर लेबनान,जोर्डन ,कुवैत वगेरह में शम्मी कपूर का जादू चलता था। 'जंगली' वाला ज़माना था वह। याहूँ तो यहाँ खूब गूंजा, सिर्फ़ नौजवानों में ही नही सब तबको में। 'याहूँ' काल की यादें आज भी पुराने लोगों के दिलो में स्थापित है। desktop पर पहुँचने वाला याहू भी इसी नस्ल का है, इसका मुझे कोई अंदाज़ नही।
फिर 'तीसरी मन्ज़िल के musical songs ने भी हम से ज़्यादा अरबो को ही नचाया था। शम्मी कपूर की कद-काठी , रंग-रूप में अरब लोगों को अपने जैसी ही झलक मिलती थी । खासकर तबियत की 'शौखी' इसको तो ये लोग अपनी ही विरासत समझते है।
शम्मी कबूर [अरबी भाषा में 'प' स्वर के आभाव से बना उच्चारण] का दो दशक तक यहाँ एक छत्र राज कायम रहा।
इन देशो के मूल निवासियों के अतिरिक्त यहाँ बसे हुए एशियन मूल के लोगों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा भारतीय रंगकर्मियों और फिल्मो की लोकप्रियता को बढ़ावा देने में।
अब ग्लोबलाइजेशन के दौर में कलाकारों को जो 'मेवा' खाने मिल रहा है, वह उनकी सेवाओ के मुकाबले में कई गुना ज़्यादा है। भाग्यशाली है आज के अनेक कलाकार!
एक और भारतीय सांस्कृतिक राजदूत 'शम्मी कपूर' को मेरा सलाम।
मंसूर अली हाश्मी [मिस्र से]
एक समय में अरब मुल्को में खासकर लेबनान,जोर्डन ,कुवैत वगेरह में शम्मी कपूर का जादू चलता था। 'जंगली' वाला ज़माना था वह। याहूँ तो यहाँ खूब गूंजा, सिर्फ़ नौजवानों में ही नही सब तबको में। 'याहूँ' काल की यादें आज भी पुराने लोगों के दिलो में स्थापित है। desktop पर पहुँचने वाला याहू भी इसी नस्ल का है, इसका मुझे कोई अंदाज़ नही।
फिर 'तीसरी मन्ज़िल के musical songs ने भी हम से ज़्यादा अरबो को ही नचाया था। शम्मी कपूर की कद-काठी , रंग-रूप में अरब लोगों को अपने जैसी ही झलक मिलती थी । खासकर तबियत की 'शौखी' इसको तो ये लोग अपनी ही विरासत समझते है।
शम्मी कबूर [अरबी भाषा में 'प' स्वर के आभाव से बना उच्चारण] का दो दशक तक यहाँ एक छत्र राज कायम रहा।
इन देशो के मूल निवासियों के अतिरिक्त यहाँ बसे हुए एशियन मूल के लोगों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा भारतीय रंगकर्मियों और फिल्मो की लोकप्रियता को बढ़ावा देने में।
अब ग्लोबलाइजेशन के दौर में कलाकारों को जो 'मेवा' खाने मिल रहा है, वह उनकी सेवाओ के मुकाबले में कई गुना ज़्यादा है। भाग्यशाली है आज के अनेक कलाकार!
एक और भारतीय सांस्कृतिक राजदूत 'शम्मी कपूर' को मेरा सलाम।
मंसूर अली हाश्मी [मिस्र से]
Friday, September 19, 2008
Weight
भार
IT से जुड़ कर हम में से बहुत से अपनी दुकान बंद कर बैठे है [दो कान भी microphone घुस जाने की वजह से ]। व्यापारी से हम व्यवसायी [professional] हो गए है। माल खरीद-बिक्री में भी हाथो का प्रयोग कम हो गया है। " सिर्फ़ कुछ उँगलियों की खडखडाहट " , "बगैर in हुए माल out".
खरीदना -बेचना कितना आसन हो गया है, इस प्रक्रिया में शायद हमें भी किसी ने खरीद लिया है ! हम भी बिक कर कितना भर-रहित महसूस कर रहे है। ऊपर उठने के लिए यह आवश्यक भी है। और फ़िर सभी चीजे कम भार की हो रही है, computer, laptop, mobile यहाँ तक की car भी। नई technology का भार से कोई बैर ज़रूर है, तभी तो भार बताने वाले बांटो का तो अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है[ eloctronic scale से]।
अब छोटी चीजे बड़े status का पर्याय बनती जा रही है तो मैरे छोट्पन पर भी आप एतराज़ न करे।मै
कद घटाकर [तदानुसार भार घटाकर] उंचाइयां पाने की कोशिश कर रहा हू तो आप मेरे पाँव मत खीचिये ।
मगर प्रकर्ति के नियम के तहत यह भार कही न कही तो स्थानांतरित तो अवश्य ही हो रहा होगा ? आज मुझे अपने "पेपर्स" आगे [!] बढ़ने के लिए प्रयुक्त भार से अंदाज़ हुआ की कोई क्षेत्र तो बचा है जहाँ 'भार' निरंतर बढ़ रहा है। 'Balance' बनाने में सहायक ही होगा।
मंसूर अली हाश्मी
IT से जुड़ कर हम में से बहुत से अपनी दुकान बंद कर बैठे है [दो कान भी microphone घुस जाने की वजह से ]। व्यापारी से हम व्यवसायी [professional] हो गए है। माल खरीद-बिक्री में भी हाथो का प्रयोग कम हो गया है। " सिर्फ़ कुछ उँगलियों की खडखडाहट " , "बगैर in हुए माल out".
खरीदना -बेचना कितना आसन हो गया है, इस प्रक्रिया में शायद हमें भी किसी ने खरीद लिया है ! हम भी बिक कर कितना भर-रहित महसूस कर रहे है। ऊपर उठने के लिए यह आवश्यक भी है। और फ़िर सभी चीजे कम भार की हो रही है, computer, laptop, mobile यहाँ तक की car भी। नई technology का भार से कोई बैर ज़रूर है, तभी तो भार बताने वाले बांटो का तो अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है[ eloctronic scale से]।
अब छोटी चीजे बड़े status का पर्याय बनती जा रही है तो मैरे छोट्पन पर भी आप एतराज़ न करे।मै
कद घटाकर [तदानुसार भार घटाकर] उंचाइयां पाने की कोशिश कर रहा हू तो आप मेरे पाँव मत खीचिये ।
मगर प्रकर्ति के नियम के तहत यह भार कही न कही तो स्थानांतरित तो अवश्य ही हो रहा होगा ? आज मुझे अपने "पेपर्स" आगे [!] बढ़ने के लिए प्रयुक्त भार से अंदाज़ हुआ की कोई क्षेत्र तो बचा है जहाँ 'भार' निरंतर बढ़ रहा है। 'Balance' बनाने में सहायक ही होगा।
मंसूर अली हाश्मी
Wednesday, September 17, 2008
amitabh bachchan
अमिताभ बच्चन
जवाब सुनकर की यह मैं indian हू, प्रति-क्रिया में उसने पहला शब्द यही कहा..... अमिताभ बश्शन ? और फ़िर आधा दर्ज़न अमिताभ की फिल्मो के नाम गिना दिए,'मर्द' , 'कुली' वगेरह! यह बात ३ सितम्बर 2008 को हुई , यहाँ , मिस्र {egypt} में. यह कोई एक egyptian की बात नही, और भी कई नौ-जवानों से यह तजुर्बा हुआ. यानी अब मिस्र की नई पीढी के लिए भारत की पहचान एक कलाकार है [राष्ट्रपति नासिर के ज़माने में लोगो के लिए नेहरू का नाम भारत की पहचान होता था]. राजनीती , धर्म, कला व् संस्कृति के प्रति जागरूक मिस्र-वासियों की नई पीढी में कला को पहचान के मध्यम में उपरी क्रम में रखना आश्चर्य-जनक लगा, एक सुखद आश्चर्य!
एक तरफ़ मानव समाज में [अगर हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखे तो] जिस संकुचितता का आभास , विशेषकर दलीय राजनीती जनित नई वर्ग और वर्ण व्यवस्था जो की जाती , धर्म , भाषा , प्रदेश, जिला हर स्तर पर लोगों को बांटती हुई नज़र आती है, में देश की पहचान का तत्व कम ही दीखता है,. यह तो शुक्र है की खेलो [sports] और कला जगत ने एक हद तक हमारे वासुदेव कुटुम्भकम के आदर्श की लाज रखी है.
हाँ , तो बात मैं मिसरी नौ-जवान की कर रहा था की पटरी बदल गई!....उसके मुंहसे अमिताभ का नाम सुन कर जिस आत्मीयता का अहसास हुआ वह वर्णन से परे है! बश्शन इसलिए बोलते है की अरबी में 'च' उच्चारण वाला शब्द ही नही है [जबकि ये लोगचाय खूब पीते है.
अन्य मिसरी नौ-जवानों ने अमिताभ की फिल्मो के नाम लिए बल्कि उसके फिल्मी डायलाग बोले और गीत भी गुन-गुनाए , जबकि वे इस भाषा से नितांत अपरिचित है.
कला जगत की ये विशेषता है की यह देश,धर्म आदि सीमओं में नही बंधता. कलाकार ही हमारे सच्चे राजदूत है विश्व कैनवास पर.
-मंसूर अली हाश्मी [मिस्र से]
जवाब सुनकर की यह मैं indian हू, प्रति-क्रिया में उसने पहला शब्द यही कहा..... अमिताभ बश्शन ? और फ़िर आधा दर्ज़न अमिताभ की फिल्मो के नाम गिना दिए,'मर्द' , 'कुली' वगेरह! यह बात ३ सितम्बर 2008 को हुई , यहाँ , मिस्र {egypt} में. यह कोई एक egyptian की बात नही, और भी कई नौ-जवानों से यह तजुर्बा हुआ. यानी अब मिस्र की नई पीढी के लिए भारत की पहचान एक कलाकार है [राष्ट्रपति नासिर के ज़माने में लोगो के लिए नेहरू का नाम भारत की पहचान होता था]. राजनीती , धर्म, कला व् संस्कृति के प्रति जागरूक मिस्र-वासियों की नई पीढी में कला को पहचान के मध्यम में उपरी क्रम में रखना आश्चर्य-जनक लगा, एक सुखद आश्चर्य!
एक तरफ़ मानव समाज में [अगर हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखे तो] जिस संकुचितता का आभास , विशेषकर दलीय राजनीती जनित नई वर्ग और वर्ण व्यवस्था जो की जाती , धर्म , भाषा , प्रदेश, जिला हर स्तर पर लोगों को बांटती हुई नज़र आती है, में देश की पहचान का तत्व कम ही दीखता है,. यह तो शुक्र है की खेलो [sports] और कला जगत ने एक हद तक हमारे वासुदेव कुटुम्भकम के आदर्श की लाज रखी है.
हाँ , तो बात मैं मिसरी नौ-जवान की कर रहा था की पटरी बदल गई!....उसके मुंहसे अमिताभ का नाम सुन कर जिस आत्मीयता का अहसास हुआ वह वर्णन से परे है! बश्शन इसलिए बोलते है की अरबी में 'च' उच्चारण वाला शब्द ही नही है [जबकि ये लोगचाय खूब पीते है.
अन्य मिसरी नौ-जवानों ने अमिताभ की फिल्मो के नाम लिए बल्कि उसके फिल्मी डायलाग बोले और गीत भी गुन-गुनाए , जबकि वे इस भाषा से नितांत अपरिचित है.
कला जगत की ये विशेषता है की यह देश,धर्म आदि सीमओं में नही बंधता. कलाकार ही हमारे सच्चे राजदूत है विश्व कैनवास पर.
-मंसूर अली हाश्मी [मिस्र से]
Egyptian Mummies
मिस्र से ...सितंबर २००८
मम्मियों का ये देश है यारो,
"डे" "डियो" की तलाश जारी है,
आदमी आज भी तो मरता है,
ज़िंदा लोगों पे लाश भारी है.
केसा संदेश देगए ये लोग ,
बहस इस बात पर भी जारी है,
बह चुका नील में बहुत पानी,
फिर 'फिरओनो' की फौज भारी है.
[डे-डियो = डेड - बोडियो]
-मंसूर अली हाश्मी.
मम्मियों का ये देश है यारो,
"डे" "डियो" की तलाश जारी है,
आदमी आज भी तो मरता है,
ज़िंदा लोगों पे लाश भारी है.
केसा संदेश देगए ये लोग ,
बहस इस बात पर भी जारी है,
बह चुका नील में बहुत पानी,
फिर 'फिरओनो' की फौज भारी है.
[डे-डियो = डेड - बोडियो]
-मंसूर अली हाश्मी.
Tuesday, September 16, 2008
Blogging-11/Nimantran
ब्लागियात-११
ब्लोग्स पर comments देने की बजाय सीधे 'blog' ही के माध्यम से लेखक से सीधे-सीधे वार्तालाप कर लेने का तरीका मैंने इसलिए अपनाया ताकि 'लेख' और लेखक के प्रति उत्पन्न हुई ख़ुद की समझ को विस्तार दे सकूं, यदि कुछ ग़लत समझा हो तो निराकरण भी हो जाए. किसी से "बहुत बढ़िया" का दो शब्दों का comment लेकर ठीक से पता नही चलता की "क्या" बढ़िया?
एक भाई का यह सुझाव भी अच्छा है की प्रति दिन कम-अज-कम १० कमेंट्स देवे .ठीक है, परन्तु कम मगर विस्तृत कमेंट्स पर भी विचार होना चाहिए, कुछ विषयों का यह तकाज़ा होता है.
आज ब्लोगर्स की रूचि, विषयों की विविधता और किसी बात का तत्काल सम्पूर्ण विश्व में पहुँच जाना ....लेखकीय विश्व का बहुत बड़ा इन्किलाब है, जिसने ब्लोगिंग को आकर्षक और लोकप्रिय बना दिया है.
इस विषय पर ब्लोग्गेर्स और वाचको के मत आमंत्रित है, धन्यवाद.
-मंसूर अली हाश्मी
ब्लोग्स पर comments देने की बजाय सीधे 'blog' ही के माध्यम से लेखक से सीधे-सीधे वार्तालाप कर लेने का तरीका मैंने इसलिए अपनाया ताकि 'लेख' और लेखक के प्रति उत्पन्न हुई ख़ुद की समझ को विस्तार दे सकूं, यदि कुछ ग़लत समझा हो तो निराकरण भी हो जाए. किसी से "बहुत बढ़िया" का दो शब्दों का comment लेकर ठीक से पता नही चलता की "क्या" बढ़िया?
एक भाई का यह सुझाव भी अच्छा है की प्रति दिन कम-अज-कम १० कमेंट्स देवे .ठीक है, परन्तु कम मगर विस्तृत कमेंट्स पर भी विचार होना चाहिए, कुछ विषयों का यह तकाज़ा होता है.
आज ब्लोगर्स की रूचि, विषयों की विविधता और किसी बात का तत्काल सम्पूर्ण विश्व में पहुँच जाना ....लेखकीय विश्व का बहुत बड़ा इन्किलाब है, जिसने ब्लोगिंग को आकर्षक और लोकप्रिय बना दिया है.
इस विषय पर ब्लोग्गेर्स और वाचको के मत आमंत्रित है, धन्यवाद.
-मंसूर अली हाश्मी
Blogging-10
ब्लागियात-१०
स्वयं के लिये:- [ पत्नी का प्रहार.........ब्लोगर्स होशियार!]
लिखते-लिखते यह तुम को क्या सूझी,
नुक्ता चीनी पे क्यों उतर आए?
'हाश्मी' तुम शिकारी शब्दों के,
खींचा-तानी पे क्यो उतर आए?
सर को down करो है बंद server,
रोक लो अब कलम मेरे दिलबर,
कितने पन्ने स्याह कर डाले....
अब ज़रूरत है आपकी घर पर.
-जी , मैं {m}ही हूँ {h} , [किसी से न कहना]
स्वयं के लिये:- [ पत्नी का प्रहार.........ब्लोगर्स होशियार!]
लिखते-लिखते यह तुम को क्या सूझी,
नुक्ता चीनी पे क्यों उतर आए?
'हाश्मी' तुम शिकारी शब्दों के,
खींचा-तानी पे क्यो उतर आए?
सर को down करो है बंद server,
रोक लो अब कलम मेरे दिलबर,
कितने पन्ने स्याह कर डाले....
अब ज़रूरत है आपकी घर पर.
-जी , मैं {m}ही हूँ {h} , [किसी से न कहना]
Blogging-9
ब्लागियात-९
आज रक्षंदा की बारी है.........
गर 'बला' थी कोई, खेर से टल गई ,
दीदी रक्षंदा तुम तो सफल ही रही,
''उनके''* जेंडर का भी कुछ पता न लगा,
वह ब्लॉगर तो हरगिज़ नही था कोई.
-एम्.हाश्मी
*असभ्य टिप्पणी से प्रताड़ित करने वाला
आज रक्षंदा की बारी है.........
गर 'बला' थी कोई, खेर से टल गई ,
दीदी रक्षंदा तुम तो सफल ही रही,
''उनके''* जेंडर का भी कुछ पता न लगा,
वह ब्लॉगर तो हरगिज़ नही था कोई.
-एम्.हाश्मी
*असभ्य टिप्पणी से प्रताड़ित करने वाला
Monday, September 15, 2008
Blogging-8
ब्लागियात-8
दादा द्विवेदीजी* को प्रणाम:-
दो ही वेदों को पढ़ के ये आलम,
दर्दे-इंसानियत से है लबरेज़,
बात इन्साफ ही की करते है,
है कलम आपका बहुत ज़रखेज़*।
*उपजाऊ
-मंसूर अली हाश्मी.
*तीसरा खंबा
दादा द्विवेदीजी* को प्रणाम:-
दो ही वेदों को पढ़ के ये आलम,
दर्दे-इंसानियत से है लबरेज़,
बात इन्साफ ही की करते है,
है कलम आपका बहुत ज़रखेज़*।
*उपजाऊ
-मंसूर अली हाश्मी.
*तीसरा खंबा
Blogging-7
ब्लागियात-७
आज भाई राजेश घोटिकर पर नज़र डाल रहा हूँ :-
#चमन के फूल में चिडियों की चह-च-हाहट में,
ब्लॉग मिलते है इनको हर एक आहटमें,
ये 'घोंट कर' के पिलाते सबक है जन-जन को,
स्वच्छ-ओ-सुंदर पर्यावरण की चाहट में।
# ग्लोबलाइजेशन पे गौर करते है,
मस्वेदा- नुक्लीअर डील पढ़ते है,
आश्रित देश हो .... पसंद नही,
पहले ख़ुद को सिक्योर करते है।
# पक्षियों पर तो प्यार आता है,
हाँ , इन्हे बार-बार आता है,
आदमी पर नज़र करे जो कभी,
x-ray का ख्याल आता है।
-मंसूर अली हाश्मी
#birdswatchinggroup
आज भाई राजेश घोटिकर पर नज़र डाल रहा हूँ :-
#चमन के फूल में चिडियों की चह-च-हाहट में,
ब्लॉग मिलते है इनको हर एक आहटमें,
ये 'घोंट कर' के पिलाते सबक है जन-जन को,
स्वच्छ-ओ-सुंदर पर्यावरण की चाहट में।
# ग्लोबलाइजेशन पे गौर करते है,
मस्वेदा- नुक्लीअर डील पढ़ते है,
आश्रित देश हो .... पसंद नही,
पहले ख़ुद को सिक्योर करते है।
# पक्षियों पर तो प्यार आता है,
हाँ , इन्हे बार-बार आता है,
आदमी पर नज़र करे जो कभी,
x-ray का ख्याल आता है।
-मंसूर अली हाश्मी
#birdswatchinggroup
Subscribe to:
Posts (Atom)