Saturday, May 21, 2011

2 G SPECTRUM


2 G स्पेक्ट्रम 


'कनी' - मोझी, मोड़ी भी, मोई कहाए,
'triple'  नाम पाए; 'तिहाड़ी'' को जाए,
बहुत अपने 'पापा' से इनआम पाए,
फिर इक दिन वो सारे के सारे गंवाए, 
थी 'राजा' की सत्ता तो 'बलवा' भी भाए
पुरी संग सब मिलके हलवा भी खाए,
अब आटे में घाटा है क्या दिन ये आए,
जो भरना है पेट अब,तो चक्की चलाए!!!

-Mansoor ali hashmi

Thursday, May 12, 2011

A Parody




शमशाद बेगम और किशोर कुमार का गाया 'नया अंदाज़' फिल्म का एक गीत, जिसे फिल्माया गया है किशोर और मीना कुमारी पर... ये गीत उन गीतों में से एक है, जो उझे बचपन की याद दिलाते हैं.]

Meri neendon mein tum (Kishore Kumar)

BUZZ  पर आज किशोर-शमशाद  का यह गीत [मेरी नींदों में तुम, मेरे ख़्वाबों में तुम] सुन, उस धुन पर यह बन गया है:-


सीधी होती नहीं टेढ़ी कुत्तो की दुम,
गाढ़ कर के रखो कितने बरसो ही तुम.

एड फिल्मो में तुम, आई.पी.एलो  में तुम,
हम खरीदार है, जो भी बेचोगे तुम.

चढ़ रही है ग़रीबी  की रेखा इधर,
माल इस देश का बाहरी बैंको में गुम.

"न किशोरी खनक है न शम्शादी सुर,
मस्त सब हो रहे शीला-मुन्नी पे झूम."

-मंसूर अली हाश्मी 


Wednesday, May 11, 2011

कुछ भी तो नहीं देखा !


कुछ भी तो नहीं देखा !

 'बिजली' से पंखो को भी चलते देखा,
'पंखो' से ही बिजली  को बनते देखा.

'लादेनो-सद्दाम' बनाने वालो के,
हाथो ही हमने 'उनको' मरते देखा.

बोतल से आज़ाद किये जिन जिसने भी,
बिल आख़िर
उससे ही डरते देखा.

पाल रखा था; दूध पिलाते थे जिसको,
अपने ही मालिक को भी डसते देखा.

'अंग्रेज़ो' को मार भगाया था जिसने,
'अंग्रेज़ी' ही पर उनको मरते देखा.  

नफरत की बुनियादों पर तामीर हुई!
एसी दीवारों को हमने गिरते देखा.

हाँ! हम ही मिलकर 'सरकार' बनाते है,
'सरदारी' में अपनी ही चलते देखा!

-mansoor ali hashmi 

Friday, April 22, 2011

माले मुफ्त - दिले बेरहम!


माले मुफ्त - दिले बेरहम!

संतोष जिसे है उसे थोड़ा भी 'घणा' है,
जो ज़ोर से बाजे है वही थोथा चना है.

आकाश को छूती हुई क्यूँ तेरी अना* है,    *[Ego]
तू खाक का पुतला है तू मिटटी से बना है.


'बाबा' के 'चमत्कार' हवाओं में दिखे है! 
कहते है पवन पूत भी वायु से जना है.

वायु में बवंडर है तो धरती में है कंपन,
'रामू' तो यह कहते है कि 'डरना भी मना है'.

अब 'कूक' न नगमे है न वो बादे सबा है!
जब फूल न शाख़े है; न फ़ल है न तना है.


अब 'मुफ्त' का खा कर जो हुआ कब्ज़ तो सुन लो,
जुल्लाब लगा देती जो पत्ती; वो 'सना'* है.      *[?]

--mansoor ali hashmi 

Sunday, April 10, 2011

एक अण्णा हज़ार बीमार


एक अण्णा  हज़ार बीमार   

सौ है बीमार एक अनार है आज,
सरे फेहरिस्त भ्रष्टाचार है आज.

छोड़ गुलशन निकल पड़ा आख़िर,  
गुल को खारों पे इख्तियार है आज.

मरता, करता न क्यां! दहाढ़ उठा!
हौसला कितना बेशुमार है आज.

हक़ परस्ती की बात करता है !
कोई 'मंसूर' सू -ए- दार है आज?

दरिया बिफरा ज़मीं में कम्पन है,
क्यों फ़िज़ा इतनी बेक़रार है आज.

गिरती क़द्रें है; बढ़ती महंगाई,
मुल्क में कैसा इन्तिशार है आज !

दंगा 'सट्टे' पे, जाँ 'सुपारी' एवज़ !
फिर छपा एक इश्तेहार है आज.

जिस्म बीमार; रूह अफ्सुर्दः
इक मसीहा का इंतज़ार है आज. 

'अक्लमंदों' का अब कहाँ फुक्दान*     *[कमी]
एक धूँदो मिले हज़ार है आज. 

-mansoor ali hashmi

Saturday, March 26, 2011

कुंबा है मेरा देश, मैं सरदार इसका हूँ!


कुंबा है मेरा देश, मैं सरदार इसका हूँ!

घोटाला हो गया है? मुझे कुछ पता नही !
पैमाना भर गया है? मुझे कुछ पता नही !

लाखो करोड़ कम है? कुछ और लिजीयेगा!
खाली हुआ खज़ाना ? मुझे कुछ पता नही !

कुछ 'LEAK'  हो गया है,कुछ और 'LEAK' होगा.
टपके गा कौन अबकी  ? मुझे कुछ पता नही !

अब 'चि' भी बोल उठे है, "उत्तर नहीं पसंद",
'उसका निजी ख्याल' , मुझे कुछ पता नही ! 

'बाबा' को दिख रहा है; 'काला' क्यूँ हर तरफ?
'बा' से करो सवाल, मुझे कुछ पता नही !



अब 'जेटली' की केटली में आ रहा उबाल,
"मौक़ा परस्ती" क्या है? मुझे कुछ पता नही! 

मंसूर अली  हाश्मी 

Saturday, March 5, 2011

सत्यम, शिवम्, सुन्दरम !


सत्यम, शिवम्, सुन्दरम ! 

चारो तरफ गड़बड़म ,
हर एक दिशा में भरम.

शासक है मनमोहनम ,
सत्ता बड़ी प्रियत्तम .

'मोदीललित' अद्रश्यम,
लांछित कई 'थोमसम'.  

संस्थाए 'क्वात्रोचियम',
'अफ़साने'* सब दफनम.     *[जो अंजाम तक न पहुँच सके]

'करमापयी' शरणम,   
'माल' भयो गच्छ्म.

कानून जब बेशरम, 
सोच भयी नक्सलम.

झूठम, कुरूप, रावणम,
सत्यम,शिवम् सुन्दरम.

http://mail.google.com/mail/?ui=2&ik=e17413e790&view=att&th=12e8a493acc298b1&attid=0.2&disp=inline&realattid=f_gkxp8dxo1&zw

राजेंद्र  स्वर्णकार जी के स्वर में...








-मंसूर अली हाश्मी


Monday, February 28, 2011

....कि मैं बेज़ार बैठा हूँ!



कुलदीप गुप्ताजी  की रचना ...."कविता की समाधि"    http://kuldipgupta.blogspot.com/  से प्रेरित....

[तुम वह जो टीला देख रहे हो
वह कविता की समाधि है।
कविता जो कभी वेदनाओं का मूर्त रुप हुआ करती थी
उपभोक्तावाद की संवेदनहीनता ने
उसकी हत्या कर दी है।]

.....कि मैं बेज़ार बैठा हूँ!

कविता की  समाधि का जिसे टीला कहा तुमने,
उसी टीले की  इक जानिब पे मैं भी आ के बैठा हूँ,
मुझे तो ये 'समाधी' एक 'कलमाडी' सी लगती है,
 कईं घोटाले इसमें दफ्न, मैं बेज़ार बैठा हूँ.

कई 'आदर्शी टॉवर' तो, 'बड़े स्पेक्ट्रम' इसमें,
छिपे बैठे कई 'अफज़ल-असीमानंद' है इसमें,
कई 'राजा' की गद्दी है, कई 'बाबा' के आसन है,
किसी 'lady' का मोबाईल किसी मुन्नी  का  गायन है.

उछलता sex है और sense मे आई गिरावट है,
न तुम संवेदना धूँदो, बनावट ही बनावट है,
इरादों मे बुलंदी है न जज़बो मे हरारत है,     
न सच्चा है कोई मजनूं  न लैला मे शराफत है.

विवाह भी एक प्रोफेशन ही बनता जा रहा है अब,
लगा क्या है? मिला कितना? ये सोचा जा रहा है अब,
'उपजती' नारी है या नर ये जांचा जा रहा है अब,
पसंदीदा नहीं गर शै  तो बेचा जा रहा है अब.

कवि हूँ  मैं न शायर हूँ, मुफ़त छपता ब्लॉगर हूँ,
न रचना से मैरी संगीतो- सूरत ही उभरती है,
जो गिर्दो -पेश मे दिखता वही लिख मारता हूँ मैं,
संवेदनहीन टीला बनके मैं ख़ुद पे ही बैठा हूँ.
   
mansoorali hashmi

Thursday, February 24, 2011

पुन---- र्जनम दिवस [22 फरवरी]

पुन----  र्जनम  दिवस   [22 फरवरी] 


हो गए तिरसठ के अब ; छप्पनिया अपनी मेम है,
जंगली  बिल्ली थी कभी; अब तो बिचारी Tame है.

सर सफाचट; दुधिया दाढ़ी में बरकत हो रही,
स्याह ज़ुल्फे उसकी अबतक; जस की तस है, same है.

यूं तो अब भी साथ चलते है तो लगते है ग़ज़ब,
'वीरू'* सा मैं भी दिखू हूँ; वो जो लगती 'हेम' है.     *[धर्मेन्द्र] 

याद एक-दो मुआशिके* ही रह गए है अब तो बस,      *[प्रेम प्रसंग]        
सैंकड़ो G.B. की लेकिन अबतक उसकी RAM है.

सर भी गंजा हो गया  मेकअप पे उनके खर्च से ,
बाकी अब तो रह गया L.I.C.  Claim  है.

सोचता हूँ कुछ कमाई करलू 'गूगल ऐड' से,
चंद चटखो से मिले कुछ  Pence  तो क्या shame है.

P.C.  अब माशूक है; टीचर भी, कारोबार भी,
अब गुरु, अहबाब, महबूबा तो लगते Damn है.

रहता चांदनी चौक में; रतलाम का वासी हूँ मैं,
इन दिनों करता ब्लोगिंग, हाश्मी surname है.

-मंसूर अली  हाश्मी