Saturday, January 1, 2011
Thursday, December 2, 2010
चीज़ ये क्या हम से खोती जा रही !
चीज़ ये क्या हम से खोती जा रही !
प्रतिष्ठाए गोल होती जा रही.
'थाम-स'कते हो तो थामो साख को,
कैच उट्ठी बोल* होती जा रही. *CVC
मोटी चमड़ी का हुआ इंसान आज,
खाल पर भी 'खोल' होती जा रही.
'विकी' पर अब leak भी होने लगी,
'गुप्त' बाते ढोल होती जा रही.
बंद मुट्ठी लाख की माना मगर,
खुल के अब तो पोल होती जा रही.
चटपटे चैनल पे ख़बरे अटपटी,
'बॉस' का 'बिग' रोल होती जा रही,
--mansoorali hashmi
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Between the Lines
Thursday, November 25, 2010
ये क्या कर दिया !
ये क्या कर दिया !
पूंजी के 'विचरण' ने जब 'बाएं' को 'दायाँ' कर दिया,
ख़ुद हथौड़े ने ही, हंसिये का सफाया कर दिया.
'दस्तकारी' में कुशल अँगरेज़ ने इस मुल्क को.
एक था सदियों से जो, मैरा-तुम्हारा कर दिया.
रुक गई थी ट्रेन, लो! अब बुझ गयी है लालटेन,
'चारागर' को किसने ये आखिर बिचारा कर दिया.
'ये-दू', वोह दूँ , सब दूँ लेकिन इस्तीफा मांगो नही,
मैं 'विनोबा' आज का, 'भू- दान' सारा कर दिया.
लुट गई इक बार फिर, नगरी ये 'हस्तिनापुरम'*
अपने ही लोगो ने अबकी काम* सारा कर दिया. *C.W.G.
अपने ही लोगो ने अबकी काम* सारा कर दिया. *C.W.G.
शब्द ले "शब्दावली"* से 'हाशमी' ने आज तो,
लेख अपना, जैसे-तैसे आज पूरा कर दिया.
*http://shabdavali.blogspot.com
Note: {Picture have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
-- mansoorali hashmi
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Dirty Politics
Wednesday, November 17, 2010
'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !
'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !
'अठ-नम्बरी' ने बेट से छक्के छुड़ा दिये.
'राजा' ने बिना-तार* भी छेड़े करोड़ों राग, [*wireless]
'अर्थो' की सब व्यवस्था के बाजे बजा दिये.
'आदर्श हो गए है, हमारे flat* अब, [*ध्वस्त]
'ऊंचाई' पाने के लिए ख़ुद को गिरा दिये.
'दर्शन' को जिसके होते हज़ारो कतारबद्ध!
वाणी के बाण से कई मंदिर* ढहा दिये. [*अनुशासनिक आदर्श]
mansoor ali hashmi
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Dirty Politics
Friday, October 29, 2010
किस से 'गिला' करे !
किस से 'गिला' करे !
उसका 'गीला', 'नी' लगे, 'गंदा' उन्हें !
'अंधी' 'रुत' है, दोस्तों अब क्या करे?
कैसी आज़ादी उन्हें दरकार है,
अपने ही जो देश को रुसवा करे !!
-मंसूर अली हाश्मी
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Dirty Politics
Thursday, October 28, 2010
एक रूबाई
जिस तरह माह-ओ-साल बीत गए,
यह ज़माना भी बीत जाएगा,
'हाशमी' वक़्त का ख्याल न कर,
एक दिन तू भी मुस्कुराएगा.
-मंसूर अली हाशमी
http://aatm-manthan.com
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self searching
Sunday, October 24, 2010
Wednesday, October 20, 2010
हो..... गया !
हो..... गया !
रजत, तांबा जो था भसम हो गया.
पढ़ा ख़ूब 'कलमा दि'लाने पे जीत,
"विलन", सौत* का फिर बलम हो गया. *[सत्ता]
लगी दांव पर आबरूए वतन,
रवय्या तभी तो नरम हो गया.
चला जिसका भी बस लगा डाला कश,
'हज़ारेक' करौड़ी चिलम हो गया.
है मशहूर मेहमाँ नावाज़ी में हम,
बियर की जगह, व्हिस्की-रम हो गया.
सितारों से रौशन रही रात-दिन,
ये दिल्ली पे कैसा करम हो गया.
कमाई में शामिल 'विपक्षी' रहे,
'करोड़ों' का ठेका ! क्या कम हो गया?
निकल आया टॉयलेट से पेपर का रोल*,
यह वी.आई.पी. 'हगना' सितम हो गया.
[*एक रोल ४१०० में खरीदा गया?]
-- mansoorali hashmi
-- mansoorali hashmi
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sportsmanship
Friday, October 1, 2010
अब यह करना है..........
अब यह करना है............
["अयोध्या पर फ़ैसला आने बाद...३०.०९.२०१०]
'इक' को कैसे 'तीन' करे, 'इन्साफ' से नापेंगे.
साठ साल तक लड़े है, अब दम थोड़ा ले-ले,
"रहनुमा" से अब तो अपने दूर ही भागेंगे.
धर्म, माल, कुर्सी या शौहरत किसकी चाहत है?
धर्म, माल, कुर्सी या शौहरत किसकी चाहत है?
किस-किस की क्या निय्यत थी यह ख़ुद ही आकेंगे.
चाक गरीबां है अपना और हाल भी है बेहाल,
फटे में अब दूजो के यारो हम न झाकेंगे.
तौड़-फौड़, तकरार किया, अब चैन से रहने दो,
निकट हुए मंजिल के अब तो ख़ाक न छानेगे.
*भूगोल= geoagraphy
mansoorali hashmi
mansoorali hashmi
Thursday, September 23, 2010
सेल्फ पोर्ट्रे
जनाब मुझे तो बस ये बता दें की ब्लॉग पर लगी दो
तस्वीरों में से आपकी कौनसी वाली शक्ल है आजकल
तस्वीरों में से आपकी कौनसी वाली शक्ल है आजकल
नोट:- {Pictures have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.???}
इक 'लट' में, दाढ़ी की मैरी बड़ी शरारत है,
झूठ पे लहरा जाना फ़ौरन इसकी आदत है.
सच सुनकर तो गले ये मेरे लग-लग जाती है.
छुपी हुई इसमें भी इक गहरी मुसकाहट है.
जुबां की अब क्या ज़रूर जबकि ब्लॉग बोले है,
दाँत गए जब से ये चाचा मुंह कम खोले है,
टिप-टिप टिपयाते रहते कुछ मन में आस लिए,
दिन भर में दस बार कोई वो 'mail' भी खोले है.
मूंछ तो अब ऎसी कि जैसे ऐनक होंठो की
उसको तो बस मिली हुई है बैठक होंठो की,
तांव जो आता, तेज़धार तलवार सी लगती थी,
कभी हुआ करती थी ये तो रौनक होंठो की.
नाक तो अब ऐसी कि ज्यों छींको का है डेरा,
मक्खी न बैठी थी जिस पर पोतो ने छेड़ा,
गंध कचौड़ी की अब इसको न आ पाती है,
उंचा रहते-रहते ख़ुद को कर बैठी टेढा.
आँखों के ऊपर तो मोटा चश्मा चढ़ बैठा
चटक-मटक सब भूल मियाँ जी अपने घर बैठा,
चाट चुके अखबार अभी टी.वी की बारी है,
laptop भी सुबह-सुबह गोदी पे चढ़ बैठा.
पेशानी पर सलवट है पर व्यंग्य भाव मुखड़ा!
अब तक देश,समाज,जगत का रोते थे दुखड़ा,
देख आईना आज हुए है गहन धीर-गंभीर,
ख़ुद पर क़लम चली तो ,लिख डाला ये 'टुकड़ा'.
mansoorali hashmi
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