Monday, September 13, 2010

येब्बात है........!


येब्बात है........!
[आज तक का non-commercial(?)  धार्मिक Sting Operation!!!]

लो 'बाबा' को भा गयी इक 'बेबी' है फिर से,
मतलब नहीं वह आयी 'इधर' से या 'उधर' से.

'काला' 'सफ़ेद' होना गो मुश्किल बहुत मगर, 
'श्रद्धेय' इसे करते है बस बाएं ही 'कर' से.


टेंडर की ज़रूरत नहीं 'ठेकों' के वास्ते,
'श्रद्धा' के 'सुमन' लाईये भक्ति की 'डगर' से.

आतंकियों की ख़ैर नहीं अबतो देश में,
'महाराज' ढूँढ़ लाएंगे 'संजय' की नज़र से.  

निपटाना हो किसी को तो Gun की नही ज़रूर,
हो जाएगा ये काम अब 'काली' के कहर से.


यह Media  भी ख़ूब गज़ब करता है यारों,
'आश्रम' को भी करता है 'हरम' अपने हुनर से.

दर्शक भी भक्त भी सभी लगते ठगे-ठगे,
T.R.P.  चढ़ी तो 'गुरुजन' के असर से.

mansoorali hashmi

Saturday, September 11, 2010

आपको क्या कष्ट है?

आपको क्या कष्ट है?




One in three Indians 'utterly corrupt': Former CVC

                                                  -Times Of India [10-09-10]
हर "तीन" में से "एक" 'सरासर' भ्रष्ट है,
'दो' की मुझे तलाश है, जो कम भ्रष्ट है!

मिल जाए काश 'एक' जो wORTHY<>Trust है.
अब मैरी स्थिति तो सभी पे स्पष्ट है.

होते हो क्यूँ उदास नहीं कोई दुष्ट है,
इतनी सी बात है कि ज़रा पथ भ्रष्ट है.

है ये नया ज़माना नया इसका शिष्ट है,
धोका उसी को दो उसे जो मित्र इष्ट है.

जिसकी बहुमति है उसे कष्ट-कष्ट है,
करते है अल्प मत को सभी तुष्ट-तुष्ट है.

अब खेल राजनीति है, इसका उलट भी सच,
जो इसमें आ गया है वही हष्ट-पुष्ट है.

दल-गत की स्थिति में अलग से लगे मगर,  [MPees]
INCOME की बात आयी, सभी एक-मुश्त है.

मंथन से जिसने पा लिया अमृत ए हाशमी,
दुनिया तो उसने पाली उसीकी बहिश्त* है.  [*जन्नत]


ब्लॉग जगत के सभी साथियों  को ईद की शुभ कामनाएं.
mansoorali hashmi

Wednesday, September 8, 2010

वाह! ब्लॉगर....

वाह! ब्लॉगर....

बिल्लियाँ बन बैठे है कुछ तो ब्लोगेर्स  आजकल,
जब कोई चूहा दिखा करते सफाचट आजकल.

जब कोई 'बच्चा'* दिखा देते गटागट* आज कल ,  
टीपके, टिपियाके कुछ चढ़ते फटाफट आजकल.

पेन को तलवार सी चमका के रक्खे  हर घड़ी,
धर्म ही को धर्म से कैसी अदावत आजकल.

'फैसले ' पर "फ़ैसला" लिखने को कुछ बेताब है,
तीखी होती जा रही उनकी लिखावट आजकल.

शब्दों की  खेती पे चलने कैंचियाँ तैयार है,
अपना-अपना उस्तरा अपनी हजामत आजकल.

धर्म हो या देश या ईमान या कि अस्मिता,
काठ की तलवार से करते हिफाज़त आजकल.
 
कम लिखो, न भी लिखो तो फर्क कुछ पड़ता नहीं,
खाली टिपयाने से भी मिलती है शोहरत आजकल.

'लेखिकाएं' Bold  होती जा रही है इन दिनों,
लेखको में दिख रही अबतो नज़ाक़त आजकल.

अब ब्लागों के 'ब्लाको' से ही घर बनने लगे,  'Blocks'
हार्द्वेअरी 'सोफ्ट' ही बनता सिलावट आजकल.

शब्द बेदम भी हो जिनकी साईटे गर आकर्षक,
वो भी चर्चा में है जो करते सजावट आजकल.     

ईंट इक की, दूसरे से लेके रोढ़ा इन दिनों,
"आत्म-मंथन" छोड़ क्यूँ करते हिमाकत आजकल?

  [*नया ब्लोगर, * candy]
 
-- mansoorali hashmi

Tuesday, September 7, 2010

लेने के देने


To,अली साहब , आपकी हल्दी का रंग कहाँ-कहाँ  और कैसे-कैसे लगा टिप्पणियों से जानकर आश्चर्य मिश्रित उल्लास में यह लिख बैठा हूँ!  आप आज्ञा दे तो पब्लिश करदूं? राजेंद्र  Swarn Kaar जी की टिप्पणी भी  प्रेरणादायक रही.

From, अली साहब:



अली सैयद

 to me
show details 10:25 AM (54 minutes ago)
मंसूर अली साहब ,
आदाब अर्ज़ है ,
जरुर पब्लिश कीजियेगा , मुझे खुशी होगी !
अली
2010/9/5 Mansoorali Hashmi <mansoor1948@gmail.com>

लेने के देने 

ये हल्दी लगा खत मेरा मुंह स्याह कर गया होता ...?


[ख़त की हसरत तो पूरी नहीं हुई, मगर हल्दी रंग ज़रूर लाई......वह इस तरह कि...."उस" मकान के इस तरफ तो अली साहब थे और दूसरी तरफ {तसव्वुर कीजिए} जो होस्टल था उसकी खिड़की में से एक श्री  एस.कार  ने दो मकानों की फेंसिंग के बीच की हलचल को भांप लिया था, और जब अली साहब हल्दी लगा ख़त हाथ में लिए बागीचे में अपने पोधो की नब्ज़ टटोल रहे थे तब वह भ्रमर रूपी एस.कार वह हल्दी लगी चिट्ठी की नब्ज़ टटोल के उड़ चुका था जब तक कि आप पलटते. "पूरे तीन दिन" उसने भी नज़रे गाड़े रखी उसने अपने पड़ोस और उसके पड़ोसी पर  (लिखना-पढ़ना भूलकर) . कोई प्रतिक्रिया न देख कर उसने अपने ज़हन में उस ख़त के मज़मून को चित्रवत याद कर के दोहराया:-





नमस्ते ,
मेरे से आप बात करने से क्यों डरते हैं , मैं अच्छी नहीं हूं क्या , तीन दिन से आप मेरी आँख में हैं , आप भी मेरे विषय में किसी - किसी को कुछ बोलते रहते हैं क्या . इसलिए आप मुझसे बात करने के लिए डरते हैं . यह पत्र मैं बहुत हिम्मत कर के लिख रही हूं  !  मैं आपके लिए बहुत हिम्मत वाली हूं लेकिन किस्मत वाली नहीं ,  आपसे बात करने के लिए मन है एक मिनट आप समय देंगे तो मैं आप को बता दूंगी  कि मैं अच्छी हूं या बुरी !  इस पत्र को पढ़ने के बाद भी अगर आपके पास दो मिनट का वक़्त नहीं तो मैं आपको दुबारा मुंह नहीं दिखाउंगी अगर मुझसे कोई गलती हुई होगी तो मुझे माफ करेंगे ! 

...और Helping Hand आगे बढ़ाने का फ़ैसला  कर और उचित अवसर देख आंगन में किसी की प्रतीक्षारत 'भाभीजी' को नमस्कार कर प्रवेश कर ही लिया.
एस.कार:   "नमस्ते भाभीजी."
पड़ोसन:    "सविता है मैरा नाम, कहिये?"
एस.कार:    "नहीं, कुछ नहीं, पड़ोस में होस्टल में रहता हूँ, आज कोलेज                 की छुट्टी है , सोचा आपसे hello करता चलू"
सविता:       "अच्छा, आईये", उसने लान में  रखी कुर्सी की तरफ इशारा करके कहा.

श्रीमान को तो मन की मुराद मिली, लपक लिए. सविता भी बैठते-बैठते रुक गयी, चाय का पूछने के लिए ठहर गयी, प्रत्युत्तर में एस.कार ने कहा....."आपके घर से तो कोफ़ी की महक उठती रहती है!"

सविता:       "सही कहा, हम लोग तो कोफ़ी ही पीते है, मगर इधर के लोग शायद चाय ज़्यादा पसंद करते है?... तो अब चाय की भी आदत बना ली है."
एस.कार:      "किस-किस को जानती है आप इधर, इस कोलोनी में?"
सविता:       "In fact, किसी को भी नहीं, एक पड़ोसी [पास के मकान  की तरफ इशारा करते हुए] है, वह भी नज़रे चुराए रहते है, हम साऊथ वाले ऐसे कोई अजीब प्राणी तो नहीं!"
एस.कार:       "नहीं-नहीं, एसी बात नहीं, बल्कि आप तो हिंदी हम से भी अच्छी बोल लेती है."

सविता चाय बनाने चली गयी,  अब एस.कार की जिज्ञासा बढ़ गयी थी, उसे घर के अन्दर बुलाने की बजाय, बाहर से ही चाय पिला कर निपटा देने वाला मामला लगा. वह भी साथ-साथ घर में प्रवेश कर गया यह कहते हुए कि "आप तकलीफ नहीं करे, चाय फिर कभी."
सविता पीछे मुड़ कर मुस्कुराई, "तकलीफ तो मैं आपको दूंगी, अच्छा है आज आपकी छुट्टी का दिन है."

एस.कार का दिल बल्लियों उछलने लगा, उससे कुछ बोलते न बना. सविता ने चाय बाहर लान में ला कर ही पिलायी, इस दरमियान कुछ इस तरह की बाते हुई:-
सविता:      "बात दरअस्ल यह है कि, यहाँ ट्रान्सफर से पहले मैरे हाथो एक बड़ा एक्सीडेंट हो गया था, मुआवज़े में काफी बढ़ी रक़म चुकाना पढ़ी, कर्ज़ा भी हो गया है, इसलिए पति देर रात तक काम कर क़र्ज़ चुकाने में जुटे हुए है, मैं यहाँ अनजान हूँ कोई भी छोटे-बड़े काम के लिए अटक जाती हूँ."

"ओह!" ठंडी सांस भरते हुए एस.कार ने कहा, "मैरे लायक कोई काम हो तो ज़रूर बता दिया करे."

सविता:       एसा ही एक छोटा सा काम हफ्ते भर से अटका पड़ा है, पति महोदय को तो फुर्सत ही नहीं मिलती और मकान मालिक भी टाले जा रहा है , आज तुम साथ हो तो दुरस्त कर ही लेते है."

एस.कार:      "क्यों नही- क्यों नही", चाय का कप ख़ाली करते हुए, जोश में साथ हो लिया, घर के पिछवाड़े की तरफ, अजीब सी गंध आ रही थी उस तरफ से. सविता ने नाक ढांपने के के लिए साड़ी पल्लू कुछ ज़्यादा ही ऊंचा उठा लिया था[शायद बेख़याली में], इसलिए एस.कार अपनी नाक की चिंता ही नहीं कर पाया. अब वें सेफ्टी टेंक के पास खड़े थे, जहाँ एक पाईप से बदबूदार पानी रिस रहा था. सविता ने पाइप की तरफ इशारा करते हुए कहा इसी को  Replace करना है. pvc पाईप है वैसे ही जुड़ जाएगा . नया पाईप भी ये रखा हुआ है." अब तक एस.कार के होश ठिकाने आ गए थे, बोला, "बस इतनी सी बात है, मै अभी आया अपने दोस्त को फोन करके वो मेरी राह देख रहा होगा."  सविता ने अपना मोबाईल उसकी तरफ बढ़ा दिया, दूसरे हाथ से वह नाक ढांपे हुए थी.  
बौखलाहट में ११ डिजिट दबाया हुआ मोबाईल जब नहीं जुड़ा तो सविता ने पूछ ही लिया "आपने तो प्रदेश के बाहर फोन लगाया लगता है?"
फोन काट कर सविता को थमाते हुए, जल्दी से पाईप जोड़ कर भागने में ही उसको अपनी भलाई लगी. अब तो वह भी बदबू से बचने के लिए अपनी जेब में रूमाल तलाश रहा था. सविता ने अपना लेडिस रूमाल उसको थमा दिया जो खुश्बू से भरा हुआ था. औज़ार का बॉक्स भी पास ही रखा हुआ था, बचने का कोई बहाना उपलब्ध नहीं था. जैसे तैसे पाईप जोड़ कर , शुक्रिया वसूल किये बगैर भाग ही रहा था कि सविता ने अपने रूमाल की याद दिलायी, सो वह उसे लोटा कर "खाली हाथ" बाहर लौट आया.

फेंसिंग के पास खड़े पड़ोसी सज्जन उसे हडबडाहट में भागते देख कर जाने क्या-क्या अनुमान लगा रहे थे!!!     

सट्टे पे सत्ता [७ शेर का तोहफा]

सट्टे पे सत्ता   [७ शेर का तोहफा]

'पाक ने टॉस जीता, पहले सट्टेबाजी का फैसला'

लंदन. लॉर्ड्स टेस्ट से उठे मैच फिक्सिंग के बवाल के बाद पाकिस्तान क्रिकेट टीम की हर ओर हंसी उड़ाई जा रही है। इसका नजारा रविवार को इंग्लैंड के खिलाफ हुए पहले ट्वेंटी-20 मैच में देखने को मिला।

इंग्लैंड के क्रिकेट प्रशंसकों ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर जमकर फब्तियां कसीं। जब मुकाबले के लिए टॉस हो रहा था, एक दर्शक ने द सन अखबार के हवाले से कमेंट किया, पाकिस्तान ने टॉस जीता, पहले सट्टेबाजी का फैसला।
किसी समय अपनी रफ्तार से विश्वभर के बल्लेबाजों को भयभीत करने वाले शोएब अख्तर की हर गलती पर इंग्लैंड क्रिकेट प्रशंसक तालियां बजा रहे थे। जैसे ही अख्तर ने एक कैच टपकाया, आश्चर्यजनक रूप से पूरा स्टेडियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
- दैनिक भास्कर ०६-०९-२०१० 

Fixing के मामले में भी वो "पाक-साफ़" है,                                                                                                                 
जितनी भी हो कमाई करे Half-हाफ है.

मुद्दत से ग़मज़दा थे, तरसते थे दाद को,
अब हर तरफ ख़ुशी है; अजी LAUGH-लाफ है.

टोटा रनों का पड़ गया, मुश्किल नहीं है दोस्त,
अपने तो इक्तेसाद* का  चढ़ता ग्राफ है.  [economy]

अब फाख्ता उडाएंगे बन्ने मियाँ , हुज़ूर,
'गिल्ली'* उड़ाना शान के अपनी खिलाफ है.  [*बेल्स]

दब जाएगा ये 'शौर' ज़रा सब्र कीजिए,
'तफ्तीश' वाले साथ में लाये 'लिहाफ'* है. [चादर]

बेकार दौड़-भाग* से हासिल नहीं है कुछ,  [*रन]
'पीटा' नही किसी को तो चलिए "मुआफ" है. 

No-Ball  से भी रुख़ यहाँ पलटे है खेल का,
परवाह न कर वो ON है या कि OFF  है.
فکسنگ کے معاملے میں بھی وہ  "پاک-صاف" ہے
جتنی بھی ہو کمائی کرے HALF - ھاف ہے .

مدّت سے   غم زدہ تھے ترستے تھے داد کو 
اب ہر طرف خوشی ہے، اجی LAUGH-لاف ہے.

توتا رنوں کا پڑ گیا، مشکل نہیں ہے دوست
اپنے تو اکتساد کا چڑھتا  GRAPH ہے.

اب فاختہ اڑا ینگے بننے میاں حضور
گِللی* اڑانا شان کے اپنے خلاف ہے.   ]BELLS]

دب جاےگا یہ شور ذرا صبر کیجئے 
تفتیش والے ساتھ میں لائیں لحاف ہے.

بیکار دور- بھاگ سے حاصل نہی ہے کچھ
   "پیٹا" نہی کسی کو تو چلے معاف ہے.

NO-BALL سے بھی رخ یہاں پلٹے ہے کھیل کا 
پرواہ نہی وہ ON  ہے یا کے OFF  ہے.

Sunday, September 5, 2010

वेदना

वेदना

[पंकज सुबीर जी के दिये तरही ग़ज़ल के मिसरे  "फलक पे झूम रही सांवली घटाएं है" पर मौसम का तकाज़ा पूरा करने वाले कोई रूमानी अशआर नहीं बन पड़े, जाने क्यूँ वेदना के स्वर ही फूटते रहे और ऐसा ही कुछ कह पाया, और इसिलए वहां ले जाने की हिम्मत भी नहीं हुई, यहाँ तो प्रस्तुत कर ही दूँ!]

हवा-हवा सी ये क्यूँ आज की हवाएं है,
दग़ा-दग़ा सी ये क्यूँ आज की वफाएं है.

ठगी-ठगी सी लगे आज है ये बहने क्यूँ?
उदास-उदास सी क्यूँ आज इनकी माँएं है.

मुकाम उनका घरों में इसी से तय होगा,
दहेज़ कितना है जो अपने साथ लाएं है.

सितम ज़रीफी के याँ भी पिटाई होती है,
लगा के सौ ये मगर एक ही गिनाये है.

सज़ा-सज़ा सी लगे है ये ज़िन्दगी क्यूँकर,
वफ़ा के शहर में अपने भी क्यूँ पराये है.

Friday, September 3, 2010

कुछ तो करना ही पड़ता!

कुछ तो करना ही पड़ता!

"धान के देश"  में अवधिया जी के सवाल....


सठियाने वाली उम्र में ब्लोगिंग कर के तू कौन सा तुर्रमखां बन जाएगा?


....का जवाब ढूंढने की कौशिश ......
लिखते न गर ब्लॉग तो क्या कर रहे होते?
टी.वी. के चेनलो पे गुज़र कर रहे होते.


योगा कोई, कसरत तो कराटे की मदद से,
'सिक्स पेक' बना ख़ुद पे नज़र कर रहे होते.

उपदेशो हिकायात  श्रवन करके गुरु से,
'सात्विकता'! से जीवन को बसर कर रहे होते.

चाणक्य-नीति सीख विशेषज्ञों की मदद से,
कुछ बात इधर की वो उधर कर रहे होते.


और ब्लोगरियाँ:-
तकलीफे 'अक्षरा'* से परेशाँ जो कईं तो   
'प्रतिज्ञा'* के 'ससुरे' से कईं डर रही होती, 

रेंपो पे  निहारा जो 'करीना' को जलन-वश,
'कमरों' को वो अपनी भी कमर कर रही होती.

*star plus  के सीरियल्स  

--
mansoorali hashmi

Tuesday, August 31, 2010

ख़बरों का अकाल

ख़बरों का अकाल 
कैटरीना को अब भी बेहद चाहते हैं सलमान... - 'आज तक'
-३०-०८-१० 

कोई खबर नहीं थी  तो ये भी खबर बनी,
 " 'सल्मां' के दिल से 'केट' तो निकली नहीं अभी."
पहने हुए 'कमीस' थे जाती भी किस तरह,
'शर्ट-इन' था और वोह भी तो दुबली नहीं अभी!
======================================

कॉमनवेल्थ जीओएम को नहीं भाया थीम सांग.... -आज तक [३०-०८-१०]
[कॉमनवेल्थ के इस थीम सांग से जीओएम ही नहीं बल्कि विपक्ष भी संतुष्ट नहीं है. सबका मानना है कि इस गाने में उतनी जान ही नहीं है, जैसी रहमान से उम्मीद होती है.
इस गाने के लिए ए. आर. रहमान को 5 करोड़ रुपए दिए गए थे. और गेम्स समिति का दावा था कि थीम सांग शकीरा के वाका-वाका से कम नहीं होगा. सवाल ये है कि जीओएम और विपक्ष को ही जब थीम सांग नहीं भा रहा है तो ये पब्लिक को कितना पसंद आएगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है.]

कुछ और 'चूना' मिल गया लगने वास्ते,
'पैसे'* तो कर ही लेते है ख़ुद अपने रास्ते, [५ करोड़]
वैसे तो 'वाका-वाका' से कुछ कम नहीं है ये,
इसमें 'शकीरा' होती तो हम भी थे नाचते.
  mansoorali hashmi

Monday, August 30, 2010

अब........ / NOW..

अब........

'पर-दर्शन' को एब समझते थे पहले,
'प्रदर्शन' ही रोज़ का अब मामूल हुआ.

'तलवारे' तो  पहुँच गयी है म्यूजियम* में, [*अंग्रेजो की]
अब धर्मो का रक्षक याँ त्रिशूल हुआ.
 
धरम, दया की यारी अब तो टूट रही,
हिंसा से वह लड़ने में मशगूल हुआ.

रिश्वत से अब कम ही उलझन होती है,
ली, दे दी! जब सबब कोई माकूल  हुआ. 

--mansoorali hashmi

Sunday, August 29, 2010

'न' होने का होना.....!

'न' होने का होना.....!

'कुछ नहीं' थे ये तसल्ली फिर भी है,
'शून्य' से संसार की रचना हुई.

कहकशां  दर  कहकशां खुलते गए,
क्या अजब ये देखिये घटना हुई.

आदमी- सूरज बना, औरत- ज़मीं,
इस तरह से आमदे 'चंदा' हुई.

सिलसिला दर सिलसिला ये ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी  की  चाह में पुख्ता  हुई.
 
बढ़ गयी आबादी, ताकत भी बढ़ी,
फिर खुराफातें यहाँ बरपा हुई.

रंगों, मज़हब, नस्ल के झगडे हुए,
ज़हर फैला, खूँ की बरखा हुई.

फिर तलाशे ज़िन्दगी तारो में है!
'ज़िन्दगी', लो ! एक मृग-तृष्णा हुई.

एक सपने की हकीक़त ये रही,
इक हकीक़त आज फिर सपना हुई.

'कुछ नहीं थे' ये तसल्ली फिर भी है..........
mansoorali hashmi