Saturday, October 10, 2009

Noble Prize

नौ [२००९] में बल से हासिल!  

नो[No] में वैसे ही बल नही होता,

शान्ति में;  जैसे छल नही होता.


कच्चे नारयल में ये मिलेगा पर,
पक्के पत्थर में जल नहीं होता.


सच्चे साधू में मिल भी जाएगा,
हर कोई बा-अमल नही होता.


बाज़* पाए [ई ] बहुत ही सुन्दर पर,
फूल हर एक कमल नही होता.


उसके घर आज आयेंगे- युवराज!
झोंपड़ा क्यां महल नही होता?


कल न आया न आने वाला है,
आज करलो कि कल नही होता.


उसकी कीमत ज़्यादा होती है,
जिसका कोई भी दल नही होता


ऑनलाईन चलन हुआ जबसे,
मिलना अब आजकल नही होता.


अस्मिता भी चुरायी जाती है,
राज 'मन-से' बदल नही होता.


कोढ़ी-कोढ़ी* में बिक ही जाना है,
टीम-वर्क गर सफल नही होता.


ग़म मिले मुस्तकिल हजारो को,
हर कोई 'सहगल' नही होता.

*बाज़= कुछ, चंद
*कोढ़ी=२०[20-20]


-मंसूर अली हाशमी


5 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत सही.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

नो मे बल से हासिल नोबुल ...
पसंद आया।

bijnior district said...

उसके घर आज आयेंगे- युवराज!
झोंपड़ा क्यां महल नही होता?
शानदार गजल:

राज भाटिय़ा said...

ग़म मिले मुस्तकिल हजारो को,
हर कोई 'सहगल' नही होता.
जनाब बहुत सुंदर लिखा आप ने
धन्यवाद