ग़ज़ल-3
चाँद शरमाए अगर देखे तेरी तनवीर* को,
आईना क्या मुंह बताएगा तेरी तसवीर को।
पे-ब-पे* अज़्मो-अमल नाकाम होते ही रहे,
मेने इस पर भी न छोड़ा दामने तदबीर# को।
रंज में, ग़म में, अलम में* मुझको हँसता देखकर,
बारहा# रोना पड़ा है गर्दिशे तक्दीर को।
वो ही देते है मेरे शेअरो की कीमत हाशमी,
जानते है जो मेरी तेहरीर को तकरीर को।
*चमक, रौशनी
*लगातार
#कौशिश
*दुखो की कष्टप्रद स्थिति
#अक्सर
म् हाशमी।