Friday, November 21, 2014

अभी सर पे हमारे आसमाँ है

अभी सर पे हमारे आसमाँ है 

फ़िकर में दोस्त तू क्यों मुब्तला है 
कि अपना घर कोई थोड़े जला है  !

खड़ा है तो कोई बैठा हुआ है 
वो हरकत में है जो लेटा हुआ है. 

अनार इक बीच में रक्खा हुआ है
मरीज़ो में तो झगड़ा हो रहा है। 

लुटा के 'घोड़ा' 'बाबा' सो रहे है,                *[बाबा भारती]
'खडग सिंह' क्यों खड़ा यां रो रहा है ?  

तलब काहे को अब है 'काले धन' की ?
ज़मीर अपना 'स्याह' तो हो रहा है !

कईं 'रामो' को हम 'पाले' हुए है             *[असंत रामपाल]
सिया का राम क्या गुम हो गया है?

बदलते 'मूल्य' का है ये ज़माना 
वही अच्छा है जो सबसे बुरा है। 

हरा था, लाल था, भगवा अभी तक 
कलर 'खाकी' भी अब तो चढ़ गया है।

वो आएंगे, अभी आते ही होंगे 
ओ अच्छे दिन कहाँ है तू कहाँ है ? 

-- शेख मंसूर अली हाश्मी  

2 comments:

Dipti said...

bahut hi achhi kavita h jo jivan ki sacchai ko bayaan kr rhi h.

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freejobsarkariss.blogspot.com said...
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