Saturday, February 4, 2012

किस पर करे आधार ?

ग्लोबल हुआ बाज़ार !


[कृपया हमें वापरें…व्यापार करें….....शब्दों की आवाजाही, 'शब्दों का सफ़र' से  ...'आत्ममंथन' पर भी होती रहती है....]

मुल्को की तरक्की का पैमाना है 'व्यापार',
इम्पोर्ट है 'इस पार' तो एक्सपोर्ट है 'उस पार'.


'व्यापार' में घोटाले है, 'घोटालो' का व्यापार,
इन्साफ करे कौन ? जब ताजिर बनी सरकार.

करता है 'सफ़र' माल तो संग चलती है तहज़ीब*          [ *संस्कृति] 
'शब्दों' का भी 'व्यापार' से होता है सरोकार.

रंग भरता ज़िन्दगी में, नयन होते है जब चार,
'cupid'  भी कर रहा है ,यहाँ देखो कारोबार.


"उपयोग करो - फेंको" , का अब दौर है ये तो,
इन्सां भी लगे अबतो 'मताअ', कूचा-ए-बाज़ार.

तहज़ीब के, क़द्रों के, क़दर दान बहुत कम, 
दौलत का सगा है कोई, मतलब से बना यार.
Note: {Picture have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
--mansoor ali hashmi 

5 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सही सही कही आपने

विष्णु बैरागी said...

वर्तमान पर धारदार टिप्‍पणी हैं आपकी ये पंक्तियॉं।

Udan Tashtari said...

बढ़िया!

दिनेशराय द्विवेदी said...

दुनिया में सब से पहले जब तिजारत आरंभ हुई तो उस की जरूरत के कारण सत्ता (राज्य) अस्तित्व में आया था। कोई भी राज्य वास्तव में उस की जनता के हित के लिए अस्तित्व में नहीं होता। वह केवल सब से संपन्न वर्गों का होता है।
आप ने उसी को स्पष्ट किया है अपनी इस रचना में।

अजित वडनेरकर said...

बहुत खूब हाश्मी साब...द्विवेदी जी की विवेचना से सहमत हूँ ।