Sunday, August 29, 2010

'न' होने का होना.....!

'न' होने का होना.....!

'कुछ नहीं' थे ये तसल्ली फिर भी है,
'शून्य' से संसार की रचना हुई.

कहकशां  दर  कहकशां खुलते गए,
क्या अजब ये देखिये घटना हुई.

आदमी- सूरज बना, औरत- ज़मीं,
इस तरह से आमदे 'चंदा' हुई.

सिलसिला दर सिलसिला ये ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी  की  चाह में पुख्ता  हुई.
 
बढ़ गयी आबादी, ताकत भी बढ़ी,
फिर खुराफातें यहाँ बरपा हुई.

रंगों, मज़हब, नस्ल के झगडे हुए,
ज़हर फैला, खूँ की बरखा हुई.

फिर तलाशे ज़िन्दगी तारो में है!
'ज़िन्दगी', लो ! एक मृग-तृष्णा हुई.

एक सपने की हकीक़त ये रही,
इक हकीक़त आज फिर सपना हुई.

'कुछ नहीं थे' ये तसल्ली फिर भी है..........
mansoorali hashmi

11 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

:)

उम्मतें said...

बेहद फिलासॉफिकल ! बहुत खूबसूरत पेशकश ! सोचने को मजबूर करती हुई !

L.R.Gandhi said...

आदमी सूरज बना .औरत ज़मीं
इस तरहां से आमदे' चंदा ' हुई
सुभान अल्लाह क्या लिखते हैं आप

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत खूबसूरत रचना है। इस की तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं।

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा रचना.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

मैं यूँ ही नहीं कहता था, "मंसूर अली हाशमी" क्यों किसी ख़ास शख्सियत का नाम है.
सूक्ष्म दृष्टिकोण, अनुभवी रचना.
एक बेहद उम्दा ग़ज़ल !!! इंसानियत को समर्पित!!!

Shah Nawaz said...

बहुत ही बेहतरीन!

vandana gupta said...

बहुत खूबसूरत रचना।

ओशो रजनीश said...

अच्छी कविता लिखी है आपने .......... आभार
कुछ लिखा है, शायद आपको पसंद आये --
(क्या आप को पता है की आपका अगला जन्म कहा होगा ?)
http://oshotheone.blogspot.com

अंजना said...

बहुत बढ़िया

Gyan Dutt Pandey said...

शून्य में बड़ी सम्भावना है। बहुत रचनात्मकता!