Monday, February 24, 2014

ये 'नमी' 'शब्' की भी मासूम है आँसू की तरह




ये 'नमी' 'शब्' की भी मासूम है आँसू की तरह 

अधखिले फूल पे शबनम की ये ठहरी हुई बूँद,
देखे ! गिरती है कि सूरज की तपिश से उड़कर,
पहुँच आकाश में; करती है सफ़र फिर से शुरू 
इक नई भोर में कोहरे पे सवारी कर के 
इक नए फूल पे गिरने की तमन्ना लेकर
किसी आँगन में जहां .......... 



शब् की जागी हुई दोशीज़ा* - खड़ी , अलसाई            *[सुन्दर युवती ]
जिसके गालो पे भी बूंदे दिखी शबनम की तरह 
अधखिले फूल के सन्मुख थी वो फरयाद कुना। 

....  ओस की बूँद का उस फूल पे आकर गिरना 
और दोशीज़ा का फिर पलकों से अपनी चुनना ! 
महवे हैरत हुआ दो बूँदो को मिलते देखा !!
दोनों क़तरों में समाया हुआ दरया देखा !!!









Friday, February 14, 2014

'गर्दभ पुराण'








 'गर्दभ पुराण' :

[दुनिया भर में सर्वाधिक प्रचलित खिताब है गधा। इतना ज्यादा कि चौपाये गधे अल्पमत में हैं और दोपाये गधे बहुमत में।

बुरी मुद्रा, अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है।  - अजित वडनेरकर Facebook  पर]


#  वेलेंटाईन की शाम, और आयी 'गधो'* की याद !    [*प्यार के दुश्मन]
    प्रोपोज़ करने वाला था 'सुर' दे गया जवाब ,
    'मन' को मसोस रह गया सुन 'ढेंचू' की आहट 
    ए  दुश्मनाने प्यार हो ख़ाना तेरा ख़राब। 

-'मन' 'सुर'  हाश्मी 

एक दूसरे संदर्भ में:  :

#  चुन कर तो हम ने भेजे थे अच्छे भले से लोग,  
    'काम' उनके देख लगते है वो तो 'गधे' से लोग !
    मशहूर थी  'दुलत्ती' अब अज़माते हाथ है,
    क्यों हम ने भेज डाले * है  ? ये बे-पढ़े से लोग।        [*संसद में]   

--mansoor ali hashmi 

Monday, February 10, 2014

अरे ! अरे !

[शब्दों का सफर  अरे...अबे...क्यों बे......... प्रेरणामयी पोस्ट  अजित वडनेरकर द्वारा  ………… ]


अरे ! अरे !

#  क्या बात कह रहे हो मियाँ ? तुम अरे ! अरे !
    याँ लग गई है वाट कबहु से खड़े-खड़े। 
    सौ-सौ निबट लिए है पे नम्बर नहीं लगा,
    तुम हो कि कह रहे हो, "मियाँ हट परे-परे",

#  पहले गया निकट, वो पलट आया उलटे पाँव  
    लिक्खा हुआ ट्रैन पे देखा प. रे. , प. रे.  

#  हम 'आर्यजन' है बात न करते 'अरे', 'वरे'
    शब्दों के धन में अपने तो मोती, रतन जड़े। 

#  'शब्दों' का ये 'सफ़र' हुआ जारी है फिर से दोस्त,
    'चल बे', 'अजित' के साथ फिर हो ले, हरे-भरे।  

-Mansoor ali hashmi 

Saturday, January 11, 2014

तब और अब !





तब  और अब ! 

[दुनिया को तका करते थे जोशो खरोश से]
 




आँखे झुकी हुई है अब भोंहों के बोझ से,
पैशानी की सलवट से, फ़िक्रो से, सोच से।
 










लहरो पे सवारी भी किया करते थे अक्सर,
क्यों ख़ौफ़ज़दा अब हुए दरया की मौज से ?

अब फ़िक्र  calories की हमको सताती है,
पहले तो सारी चीज़ ही खाते थे शौक़ से। 
 
रंगीन ख्वाब देखना, था अपना मशगला,
अब स्वप्न भी आते है तो, आते है दोष से 

अब लूटना ही देश को; भक्ति है, धर्म है, 
लाये कहाँ से नेता 'भगत' से या 'बोस' से ?

तब तो ग़लत हुआ था मगर आज ज़रूरत,
नक़ली 'महात्माओं'  की ख़ातिर इक 'गोडसे' !  
 
--mansoor ali hashmi 

Wednesday, January 1, 2014

सरदर्द हो रहा है तो, तू 'झंडू बाम' ले !



सरदर्द हो रहा है तो, तू 'झंडू बाम' ले !
 
शब्दों का गर है टोटा तो चित्रों से काम ले 
अब आके 'फेसबुक' ही का दामन तू थाम ले। 

अब 'ख़ास' बन के  रहना तो आएगा नही रास,
आ, 'आप' की  शरण में, तू इक नाम 'आम' ले। 

गोली नयी है 'आम' की, मीठा है ज़ायक़ा ,
इसकी ख़ुराक रोज़ ही, तू सुब्ह-शाम ले।  

दहशतगरी से तंग न कर इस जहान को,
इंसानियत का, अम्न का फिर से प्याम ले,

जब राम-राम कर के न सत्ता मिली तुम्हे ,
आ कर के काम-काम तू अपना ईनाम ले !

'बिजली' का रिश्ता 'पानी' से अब पक्का हो गया !
'दिल्ली' चला जा दोस्त, तू , मेरा सलाम ले। 

महकूम 'आप' है अगर, हाकिम भी 'आप' ही,  
पानी मुफ़त ले, बिजली भी तू आधे दाम ले। 

क्या रट लगाए बैठा है, नव-वर्ष में 'हाश्मी',
पीछा तू छोड़ आज तो, मेरा प्रणाम ले !  

-मंसूर अली हाश्मी 
नव-वर्ष  [२०१४] की हार्दिक बधाई , सभी ब्लॉगर्स एवं फेसबुकियों को।