Sunday, February 8, 2009

kaleidocopic view

 बनना 

बस्ती जब बाज़ार बन गयी,
हस्ती भी व्यापार बन गयी।

भिन्न,विभिन्न मतो से चुन कर,
त्रिशन्कु सरकार बन गयी।

लाख टके की बात सुनी थी,
सुन्दर नैनो कार बन गयी।














अपनी ही लापरवाही तो,
आतंक का हथयार बन गयी।

लोक-तन्त्र की जय-जय,जय हो,
राजनीति घर-बार बन गयी।
Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. 
If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
-मन्सूर अली हाशमी

Friday, February 6, 2009

New Age

नया ज़माना 

पालतू कुत्ते का काटा माफ़ है,
इस तरह का आजकल इन्साफ है.


कसमे,वादे, झूठ, धोखा, बे-रुख़ी ,
लीडरी के सारे ये औसाफ* है.


है बहुत अंधेर की गर्दी यहाँ,
आजकल बिजली यहाँ पर आँफ है।


इसलिए हालात काबू में नही,
कम कमाई में अधिक इसराफ़* है.


धर्म के हीरो अमल में है सिफर,
बौने क़द भी लग रहे जिराफ है.


जिनकी सूरत और सीरत नेक है,
आईने की तरह वो शफ़्फ़ाफ़ है।


#ज़र्फ़ की इतनी कमी पहले न थी,
बर्फ से भी तुल रही अस्नाफ* है.




[#अन्तिम शेर निम्न शेर से प्रेरित है:-
'यही मअयारे* तिजारत है तो कल का ताजिर
बर्फ़ के बाँट लिये धूप में बैठा होगा।'
*स्तर 


*औसाफ़= विशिष्टताएं, इसराफ़=फ़िज़ुल-ख़र्ची, अस्नाफ़=वस्तुएं
-मंसूर अली हाशमी      

Monday, February 2, 2009

ज़िन्दगी ?/What is Life?

--------------आदमी इस लिये नही मरता------------------
ज़िन्दगी ख्वाहिशो का मरकज़* है
आरज़ूओं का एक मख़्ज़न* है
ख़ुशनुमा फूल, बहता झरणा है
काम ही इसका आगे बढ़ना है।

ज़िन्दगी रौशनी की महफ़िल है
जिस से ये काएनात झिल-मिल है
है हवा पर सवार यह तो कभी
मौजे दरया,सुकूने साहिल है।

ज़िन्दगी क्या है?, माँ का आँचल है
साया जिससे मिले वह बादल है
जज़्ब* कर सब बुराई अपने में
शुद्ध पानी जो दे वह छागल है।

रौ के हँस पड़ना इसकी फ़ितरत है
हँस के आँखे भिगोना आदत है
दूर से ही सुनाई देती है
सुमधुर ज़िन्दगी की आहट है।

प्यार, रिश्ते, वफ़ा, जफ़ाए भी
नाज़, नख़रे, सितम, अदाएं भी
तपता सहरा घनी घटाएं भी
ज़िन्दगी है परी-कथाएं भी।

आस्मानो से इसका रिश्ता है
सज्दा इसको करे फ़रिश्ता है
इसकी रुदाद* तो नविश्ता* है
ज़िन्दगी नग़्म-ए-ख़ज़िश्ता* है।

मठ के निकली है यह समुन्दर से
दूसरा नाम इसका अमृत है,
मौत से हार कैसे मानेगी
यह तो एक मोअजेज़-ए-कुदरत है*

आदमी ज़िन्दगी का हामिल है
ज़िन्दगी को ख़ुशी यह हासिल है
वो जो दुश्मन है इसका, ग़ाफ़िल है
ज़िन्दगी आदमी में कामिल है।

ज़िन्दगी इक अजर-अमर शै* है
जिस्मे आदम तो इक लबादा* है
यह बदल भी गया तो क्या ग़म है
आदमी ज़िन्दा है-पाईन्दा* है।

*मरकज़=सेन्टर, मख़ज़न=स्टोर, जज़्ब=सोख लेना,
रुदाद=दास्तान, नविश्ता=लिखी हुई, ख़ज़िश्ता=मुबारक
मोअजेज़-ए-कुदरत=ईश्वरीय चमत्कार,शै=वस्तु
लबादा=पौशाक, पाईन्दा=सदा कायम रहने वाला
 
[संजय भारद्वाज जी की रचना 'ये आदमी मरता क्यों नहीं है" एवं
नीरज जी के ब्लोग से प्रभावित होकर यह रचना रचित हुई है।]
-मंसूर अली हाशमी 

Friday, January 30, 2009

चन्द्र ग्रहण /Eclipsed Moon

कौन फिजा?, कैसा चाँद? #

चाँद पहले फ़िज़ा में गुम था कहीं
हर तरफ़ चाँदनी थी छिटकी हुई।
अब फ़िज़ा से ही गुम हुआ है चाँद
और फ़िज़ा रह गयी बिलखती हुई।  




#चंडीगढ़ से नक्षत्र-दर्शन

Monday, January 5, 2009

ग़ज़ल-३

ग़ज़ल-3

चाँद शरमाए अगर देखे तेरी तनवीर* को,
आईना क्या मुंह बताएगा तेरी तसवीर को।



पे-ब-पे* अज़्मो-अमल नाकाम होते ही रहे,
मेने इस पर भी न छोड़ा दामने तदबीर# को।


रंज में, ग़म में, अलम में*  मुझको हँसता देखकर,
बारहा# रोना पड़ा है गर्दिशे तक्दीर को।



वो ही देते है मेरे शेअरो की कीमत हाशमी,
जानते है जो मेरी तेहरीर को तकरीर को।


*चमक, रौशनी
*लगातार
#कौशिश
*दुखो की कष्टप्रद स्थिति
#अक्सर

म् हाशमी।

Determination/संकल्प

संकल्प [अज़्म]

गर अज़्म अमल* में ढल जाए,
हर मौज किनारा बन जाए।


हिम्मत न अगर इन्साँ हारे,
हर मुशकिल आसाँ हो जाए।


गर आदमी रौशन दिल करले,
दुनिया में उजाला हो जाए।


इन्सान जो दिल को दिल कर ले,
हर दिल से नफ़रत मिट जाए।


जो दिल ग़म से घबराता है;
वह जीते-जी मर जाता है,
जो काम न आए दुनिया के;
वह हिर्सो-हवस# का बन्दा है।


*कार्यान्वयण
# लालच व स्वार्थ


म.हाशमी।

Sunday, January 4, 2009

Ghazal-2

ग़ज़ल-2

रात रोती रही,सुबह गाती रही,
ज़िन्दगी मुख्तलिफ़ रंग पाती रही।


शब की तारीकियों में मेरें हाल पर,
आरज़ू की किरण मुस्कुराती रही।


सारी दुनिया को मैने भुलाया मगर,
इक तेरी याद थी जो कि आती रही।


मैं खिज़ा में घिरा देखता ही रहा,
और फ़सले बहार आ के जाती रही।

हाशमी मुश्किलों से जो घबरा गया,
हर खुशी उससे दामन बचाती रही।


म्। हाशमी

Wednesday, December 31, 2008

ग़ज़ल-1

ग़ज़ल-1

जुस्तजूं* में उनकी हम जब कभी निकलते है,
साथ-साथ मन्ज़िल और रास्ते भी चल्ते है।


दौर में तरक्की के दिल लगाके अब मजनूँ,
रोज़ एक नई लैला आजकल बदलते है।


ता-हयात मन्ज़िल पर वो पहुंच नही सकते,
मुश्किलों के डर से जो रास्ते बदलते है।


ज़िन्दगी की राहों में हाशमी वह क्यों भटके,
जो जवाँ इरादों को साथ ले के चलते है।

*तलाश
-मन्सूर अली हाशमी।

आशावाद /optimism

नई मंजिल

कुछ खुश्गवार यादों के साये तले चले,
कुछ खुश्गवार वादो के साये तले चले,
कुछ यूँ चले कि चलना मुकद्दर समझ लिया,
आखिर जहाने फ़ानी से से चलते चले गये।


रुक यूँ गये कि दश्त* को गुलशन समझ लिया,
और सामने पहाड़ को चिल्मन# समझ लिया,
सोचा कि अबतो देख के नज़्ज़ारा जाएंगे,
ठहरे हुए को दुनिया ने मदफ़न समझ लिया।


फ़िर चल पड़े तलाश में मन्ज़िल को इक नयी,
लेकर चले उमंग नयी, आरज़ू नयी,
गुज़री हुई बिसारके आगे को चल दिये,
नव-वर्ष आ गया है, सुबह भी नयी-नयी।
*जंगल
#पर्दा
ईश्वरत्व का
कब्र
[नोट:- अन्तिम चार पंक्तियां- श्री द्विवेदीजी और सुश्री वर्षाजी की फ़र्माईश पर जोड़ दी है]
सभी ब्लागर साथियों को नव-वर्ष [2009] की बधाई, शुभ-कामनाओ सहित, जय-हिन्द्।


मन्सूर अली हाशमी।  

Foul Player

अनाड़ी-खिलाड़ी

जंग अब भी जारी है,
जूतम-पैजारी है।


कारगिल से बच निकले,
किस्मत की यारी है।

खेल कर चुके वह तो,
अब हमारी बारी है।

एल,ई,टी ; जे-हा-दी,
किस-किस से यारी है?


मज़हब न ईमाँ है,
केवल संसारी है।


सिक्के सब खोटे है,
कैसे ज़रदारी है?


पूरब तो खो बैठे,
पश्चिम की बारी है!


-मन्सूर अली हशमी