Tuesday, May 19, 2009

उल्टी गिनती …

उल्टी गिनती
चुनाव नतीजे के पश्चात्……"अब विश्लेशन करना है" प्रस्तुत है,
क्रप्या पिछ्ली रचना "अब गिनती करना है" के सन्दर्भ मे देखे…


सोच में किसके क्या था अब यह गिनती करली है,
शौच में क्या-क्या निकला यह विश्लेशन करना है।

सिर पर बाल थे जिसके, वह तो बन बैठे सरदार,
औले गिर कर फ़िसल गये, विश्लेशन करना है।

'वोट' न मिल पाये, ये तो फिर भी देखेंगे,
'वाट' लगी कैसे आखिर! विश्लेशन करना है।

सब मिल कर सैराब करे यह धरती सबकी है,
फ़सल पे हो हर हाथ यह विश्लेशन करना है।

'अपने ही ग्द्दार', यही इतिहास रहा लेकिन,
'कौन थे ज़िम्मेदार', यही विश्लेशन करना है…।

-मन्सूर अली हाश्मी

Friday, May 8, 2009

अब गिनती करना है......

अब गिनती करना है......

 अजित वडनेरकर जी की आज की पोस्ट 'पशु गणना से.चुनाव तक' .....से प्रभावित हो कर:-

बोल घड़े में डाल चुके अब गिनती करना है ,
पोल खुलेगी जल्दी ही, अब गिनती करना है.


सब ही सिर वाले तो सरदार बनेगा कौन?
दार पे चढ़ने वालों की अब गिनती करना है.


एम् .पी. बन के हर कोई उल्टा [p.m.] होना चाहें,
किसकी लगती वाट, अब गिनती करना है.


जल धरती का सूख रहा, हम बौनी कर बैठे!
फसल पे कितने हाथ? अब गिनती करना है.


देख लिया कंधार , अब अफज़ल को देख रहे,
दया  - धरम फिर साथ?, अब गिनती करना है!!!


-मंसूर अली हाश्मी

Friday, April 24, 2009

Untold...!

रिहाई के बाद- वरूण 

# होश में ही बक रहा हूँ, सुन लो अब,

लाल गुदरी का हूँ, मैं लाला नही हूँ।*


* [बक रहाहूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ,
कुछ न समझे खुदा करे कोई।]-ग़ालिब


#- मेहरबानी वह भी कांटो पर करूँ?
पाऊँ के ग़ालिब का मैं छाला नही हूँ।*

*कांटो की ज़ुबा सूख गयी प्यास से यारब,
एक आब्ला-ए- पा रहे पुर-खार में आवे।]- ग़ालिब
-मंसूर अली हाश्मी.

Sunday, April 12, 2009

A True Lie/सच्चा झूठ

सच्चा झूठ

एक बत्ती कनेक्शन दिए है,
जिनके घर में न जलते दीये है.

चाक कपडे, फटे पाँव लेकिन,
होंठ हमने मगर सी लिए है.

हम न सुकरात बन पाए लेकिन,
ज़हर के घूँट तो पी लिए है.

सच की सूली पे चढ़ के भी देखा,
मरते-मरते मगर जी लिए है.

हाथ सूँघों हमारे ऐ लोगों,
हमरे पुरखो ने भी 'घी' पिये है.

'सच्चे-झूठो' की हमने कदर की,
'कुछ' मिला है तो 'कुछ' तो दिए है.

-मंसूर अली हाश्मी

Friday, April 10, 2009

OFTEn /अक्सर

अक्सर
में अक्सर कामरेडो से मिला हूँ ,
में अक्सर नॉन -रेडो से मिला हूँ. [जिन्हें अपने ism [विचार -धारा से सरोकार नही रहा]

केसरिया को बना डाला है भगवा,
में अक्सर रंग-रेजो से मिला हूँ. [रंग-भेद/धर्म-भेद करने वाले]

मिला हूँ खादी पहने खद्दरो से,
में अक्सर डर-फरोशो से मिला हूँ. [ अल्प-संख्यकों को बहु-संख्यकों से भयाक्रांत रखने वाले]

मिला हूँ पहलवां से, लल्लुओं से,
में अक्सर खुद-फरेबो से मिला हूँ. [दिग्-भर्मित]

मिला हूँ साहबो से बाबूओ से,
में अक्सर अंग-रेजो से मिला हूँ.

न मिल पाया तो सच्चे भारती से,
वगरना हर किसी से में मिला हूँ.

*
अक्सर*= यानी बहुधा , सारे के सारे नही ! यह व्याख्या भी कानून-विदो के संगत की सीख से एहतियातन
अग्रिम ज़मानत के तौर पर कर दी है - वरना , ब्लागर डरता है क्या किसी से?
-मंसूर अली हाशमी

S H O E S




उड़ती हुई गाली 






निशाना चूक कर भी जीत जाना,
अजब अंदाज़ है तेरा ज़माना.

चलन वैसे रहा है ये पुराना,
मसल तब ही बनी है ''जूते खाना''.

बढ़ी है बात अब शब्दों से आगे,
अरे Sir ! अपने सिर को तो बचाना.

कभी थे ताज ज़ीनत म्यूजियम की,
अभी जूतों का भी देखा सजाना. 

कभी इज्ज़त से पहनाते थे जिसको#,
बढ़ी रफ़्तार तो सीखा उडाना.

शरम से पानी हो जाते थे पहले,
अभी तो हमने देखा मुस्कुराना.

# जूतों का हार बना कर

-मंसूर अली हाशमी

Thursday, April 2, 2009

One Over

एक ओव्हर {यानि ६ अलग-अलग बोल}

१-तब गलत बोल बुरे होते थे,
   अब गलत
ball बड़े होते है,

२-तब 'पलट बोल' के बच जाते थे,
    अब तो '' पलटे '' को छका [sixer] देते है .

३-अब तो बोलो की कदर ही क्या है,
    तब तो सिर* पर भी बिठा लेते थे.

-बोल - noBall में घटती  दूरी,
    जैसे गूंगो के बयाँ होते है.


५-तारे* बोले तो ग्रह [वरुण] चुप क्यों रहे?
    घर के बाहर भी गृह [cell] होते है.


६-dead बोलो पे भी run-out*  है,
   थर्ड अम्पायर [तीसरा खंबा]* कहाँ होते है?

*[नरीमन कांट्रेक्टर-इंडियन कैप्टेन]
*  बड़े नेता

 * बच निकलना

*न्याय-पालिका

मंसूर अली हाशमी

Friday, March 13, 2009

आत्म घात्

आत्म घात् !


ख़ामोश दिवाली देख चुके, अब सूखी होली खेलेंगे,
हुक्मराँ हमारे जो चाहे, वैसी ही बोली बोलेंगे।
वारिस हम थे संस्कारो के,विरसे में मिले त्यौहारो के,
वन काट चुके, जल रेल चुके, किसके ऊपर क्या ठेलेंगे ।

-मंसूर अली हाशमी 












Saturday, February 14, 2009

Valentine Day

वेलेंटाइन डे

तितलियों के मौसम   में  चद्दिया उडाई है,
कौन आज गर्वित है,किसको शर्म आयी है?

घात इतनी 'अन्दर'तक किसने ये लगायी है?
संस्कारो की अपने धज्जियां उड़ाई है।

रस्म ये नही अपनी,फ़िर भी दिल तो जुड़ते है,
रिश्ता तौड़ने वालों कैसी ये लड़ाई है!

दिल-जलो की बातों पर किस से दुशमनी कर ली!
ये बहुएं कुल की है, कल के ये जमाई है।

चद्दियां जो आई है,ये संदेश है उसमे,
लाज रखना बहना की, आप उनके भाई है।

प्यार के हो दिन सारे, ये मैरी तमन्ना है,
वर्ष के हर एक दिन की आपको बधाई है।

-मन्सूर अली हाशमी






Friday, February 13, 2009

Assurance!

 आश्वासन [दिलासा]
 

'बात झूठी है'; ये सच्चाई तो है,
बोल पाना 'यहीं' अच्छाई तो है।


क़द न बढ़ पाया; कि अवसर न मिले,
मुझसे लम्बी मैरी परछाई तो है।


दौरे मन्दी में थमी है रफ़्तार,
एक बढ़ती हुई महंगाई तो है।


कौन क्या है? ये कुछ पता न चला!
हम किसी चीज़ की परछाई तो है।


ख़ुद-फ़रेबों* की नही भीड़ तो क्या,
'मौसमे प्यार'* में तन्हाई तो है।


*ख़ुद फ़रेब = स्वय को धोका देने वाला, * मौसमे-प्यार = valentine day


-मन्सूर अली हाशमी[१३.०२.०९]