Tuesday, September 16, 2008

Blogging-9

ब्लागियात-९

आज रक्षंदा की बारी है.........

गर  'बला' थी कोई, खेर से टल गई ,
दीदी रक्षंदा तुम तो सफल ही रही,
''उनके''* जेंडर  का भी कुछ पता न लगा,
वह ब्लॉगर तो हरगिज़ नही था कोई.

-एम्.हाश्मी

*असभ्य टिप्पणी से प्रताड़ित करने वाला

Monday, September 15, 2008

Blogging-8

ब्लागियात-8

दादा द्विवेदीजी* को प्रणाम:-


दो ही वेदों को पढ़ के ये आलम,
दर्दे-इंसानियत से है लबरेज़,
बात इन्साफ ही की करते है,
है कलम आपका बहुत ज़रखेज़*

*उपजाऊ


-मंसूर अली हाश्मी.

*तीसरा खंबा 

Blogging-7

ब्लागियात-७

आज भाई राजेश घोटिकर पर नज़र डाल रहा हूँ :-

#चमन के फूल में चिडियों की चह-च-हाहट में,
  ब्लॉग मिलते है इनको हर एक आहटमें,
  ये 'घोंट कर' के पिलाते सबक है जन-जन को,
  स्वच्छ-ओ-सुंदर पर्यावरण की चाहट में।

# ग्लोबलाइजेशन पे गौर करते है,
 मस्वेदा- नुक्लीअर डील पढ़ते है,
आश्रित देश हो .... पसंद नही,
पहले ख़ुद को सिक्योर करते है।

# पक्षियों पर तो प्यार आता है,
   हाँ , इन्हे बार-बार आता है,
   आदमी पर नज़र करे जो कभी,
   x-ray का ख्याल आता है।

-मंसूर अली हाश्मी
#birdswatchinggroup

Sunday, September 14, 2008

blogging-6

ब्लागियात-६
एक ब्लोगर की *महफ़िल में बिला इजाज़त प्रवेश कर गया [क्षमा-याचना]
ब्लॉग पर टिपयाते हुए ....
''किसीने उजड़ी हुई महफिलों में ढूंढाहै,
है बात 'गुप्त' मगर ,यह भी एक 'सीमा' है,
कसक है ,दर्द है, चाहट जो मिल नही पायी,
नया है कहने का अंदाज़ एक सलीका है।''
अपनी रचना  'साथी'  परोस आया:-
''तू ही तशना-लब है साथी,
मुझे क्या पिलाएगी तू ?
तेरा जाम तो है टूटा,मुझे क्या रिझाएगी तू ?
तू बुझी हुई है ख़ुद भी,मुझे क्या जलाएगी तू?
तेरा साज़ सूना-सूना,तेरा नग़्मा ग़म-रसीदा,
तेरी ज़ुल्फ़ भी परीशाँ,तेरी बज्म वीराँ-वीराँ…यूँ लगे कि जैसे सहरा,
कोई एक पल न ठहरा,
सभी रिन्द जा चुके है, मै ही रह गया अकेला!
तू करीब आ के मैरे,तेरी तशनगी मिटा दूँ,
तू मुझे पिला दे सब ग़म, मै तुझे हयात लादूँ
तुझे आग दूँ जिगर कीतेरे हुस्न को जिला दूँ 
तेरी बज़्म फ़िर सजा
तेरी ज़िन्दगी है मुझसे,
तू ही मेरी ज़िन्दगी है,
मै हूँ दीप तू है बाती, मिले हम तो रौशनी है।''

-मन्सूर अली हाश्मी
*passion से

Blogging-5

ब्लागियात-5

ब्लोगेर्स पर कुछ और तफसील के साथ उनकी ही लेखनी की रोशनी में, क्षमा प्रार्थना के साथ अगर कोई अतिशयोक्ति हो गई हो :


# भले 'समीर' ने kiss में ब्लॉग पाया है,
   enjoy ख़ुद ने किया,औरो को रिझाया है,
   फिर  उसके बाद सबक नीति का पढाया है,
   फलित हुए है, प्रतिसाद* खूब पाया है।        *comments

*समीर लाल जी को में निम्न टिपण्णी देने से स्वयं को नही रोक पाया:-
"kiss का किस्सा बयान कर डाला,
लब को दिल की जुबान कर डाला,
उड़ते-उड़ते कहाँ ये आ बैठे ,
ख़ुद को cupid गुमान कर डाला।

बात जब अच्छी लग रही थी तभी,
आपने क्या विचार कर डाला,
'तड़का' morality का देकर,
मीठे को भी अचार कर डाला।

संस्कारो की बात कर डाली,
पंडितो की ख़बर भी ले डाली,
रास-लीला के प्लेटफारम से,
पटरी ही आपने बदल डाली।

खूब है आपका मिजाज़ ऐ 'लाल'
रह के परदेस में भी देशी चाल,
सत कथन बोलते रहो हरदम,
है दुआ रब से वो करेगा निहाल।

-मानसूर अली हाश्मी.
*udan-tashtari

Saturday, September 13, 2008

Blogging-3

ब्लागियात-3

चलते-फिरते ब्लॉग बनते है,
गिरते-पड़ते ब्लॉग बनते है,
कुछ कहो तो ब्लॉग बनते है,
चुप रहो तो ब्लॉग बनते है।


बन सके तो ब्लॉग लिख डालो,
सारा अच्छा ख़राब लिख डालो,
अपने मन की किताब लिख डालो,
ख़ुद ही अपना हिसाब लिख डालो।


तुम जो चूके तो कोई लिख देगा,
'लेने वाला' तो तुम को क्या देगा,
जो छुपानी है बात कह देगा,
जग हसाई की बात कह देगा।


लिख नही सकते कोई बात नही,
अब दवात-ओ-कलम की बात गई,
दब के अक्षर उभरते है अबतो,
है ज़माना नया है बात नई.

पढ़ना अक्षर भी हमको न आवत,
कोनू स्कूल  को भी न जावत,
छोड़ दो अब मजाक ओ भय्या,
हमसे अच्छा ब्लॉग का पावत?
-मंसूर अली हाश्मी

Friday, September 12, 2008

Blogging-2

ब्लागियात-2
कोई इसको भडास कहता है,
कोई 'मुखवास' इसको कहता है,
है किसी के लिए विचार की बात,
कोई बकवास इसको  कहता है.


चोट दिल पर लगी ब्लॉग बना,
खोट से मन दुखा ब्लॉग बना,
ज्योत की लौ बढ़ी ब्लॉग बना,
मौत की 'आगही' ! ब्लॉग बना.


पहले बन-बन के मन में मिटता था,
अब तो बनने से पहले छपता है,
जाल [net] फैला हुआ फिजाओ में,
जो हर-एक सोच पर झपट ता है.


दिल के छालो का नाम भी है ब्लॉग,
मन के जालो का नाम भी है ब्लॉग,
उजले-काले का काम भी है ब्लॉग,
सच पे तालो का नाम भी है ब्लॉग.


सुबह दम शबनमी ब्लॉग बना,
दिन चढा टेक्नीकल ब्लॉग बना, 
सुरमई शाम में शराबी सा,
आलसी, रात में ब्लॉग बना.

-मंसूर अली हाश्मी

Blogging -1

ब्लागियात -१
आत्म-मंथन टाइटल में मैंने ब्लॉग को हलके-फुल्के परिभाषित किया था. थोड़ा विचार किया तो कई पहलू सामने आए. क्यों न हम इस विचार-धारा को ब्लागियात कह कर पुकारे ? यह भी एक द्रष्टिकोण बन चुका है अपनी बात ' जस की तस्' कह देने का. एक नयी शब्दावली भी जन्म ले रही है, blogism की ...ब्लागियात की!
ब्लॉग में प्रयुक्त अक्षर 'ब', 'ल' और 'ग' से छेड़-छाड़ की है....जस का तस् लिखे देता हूँ  :-

बे-लाग हो ब्लॉग तो लोगों को लगेगा,
उतरेगा यूं गले की निगलते ही बनेगा,
बातें गुलाब की हो या गल-बहियों की रातें,
ग़ालिब भी हमें एक ब्लॉगर ही लगेगा।


कहाँ-कहाँ पे छुपा है ब्लॉग ढूँदेंगे,
जहाँ-जहाँ भी छपा है ब्लॉग ढूँदेंगे,
महक की सिम्त बढेंगे गुलाब ढूँदेंगे,
छुपे हुए कई रुस्तम जनाब ढूँदेंगे !


किसी ने ढूँद लिया इसको अपने ही दिल में,
किसी को तिल में मिला है किसी को महफ़िल में,
किसी ने पहाड़ भी खोदा तो कुछ नही पाया ,
किसी ने पा लिया बस एक छोटे से बिल में।


किसी को जड़ में मिला है किसी को हलचल में,
किसी ने नैन में पाया किसी ने डिम्पल में,
किसी को जल में मिला है किसी को जंगल में ,
किसी को युग भी लगा कोई पा गया पल में।

-मंसूर अली हाश्मी

Tuesday, September 9, 2008

Realism

भड़ास   {rachna bhi prastut hai.....bhadasiyo ki hi bhasha hai....  }


आप-साहब, श्रीमान, जनाब, महाशय और शिष्टाचारी रूपी सारे वह शब्द हम त्याग दे जिसे बोलते समय हमारा आशय सद नही होता। सदाशयताका विलोप तो जाने कब से हो गया। क्यों न हम यथार्थवादी बन सचमुच जो शब्द हमारी सोच में है, तीखे, भद्दे ,गन्दे, गालियों से युक्त,विषमय  परंतु कितने आनंद दायक जब हमें उसे प्रयोग करने का कभी सद अवसरप्राप्त होता है।क्यों न हम यह विष वमण कर दे, और इसे तर्क संगत साबित करने के लिये,इतिहास की  गर्त में सोये दुराचारो, अनाचारो, अत्याचारो के गढ़े मुर्दे बेकफ़न कर दे! अच्छा ही होगा, हमे बद हज़मी से भी ज़्यादा कुछ हो गया है, हमारा सहनशील पाचक मेदा अलसर ग्रस्त हो गया है! और मुश्किल यह है कि हमे लगातार तीखे मिर्च-मसाले खिलाये जा रहे है-- धर्म के, दीन के, स्वर्निम इतिहास की अस्मिता के नाम पर,जबकि नैतिक पतन के इस दौर में ये शब्द अर्थ-हीन होते जा रहे है।मज़हब की अफ़ीम से , नींद आ भी जाये परन्तु 'अल्सर' तो दुरस्त नही होगा।इस अल्सर को कुरैद कर काट कर उसमें से अपशब्दो को बह लेने दो। इसमें मरने का तो डर है, परन्तु अभी जो स्थिति है उससे बेह्तर है। मैने तो सभ्य बनने की कौशिश में शिष्टाचार का जो आवरण औढ़ रखा है उसमें गालियां भी दुआए बन कर प्रवेश होती है। परन्तु अप शब्दो का मैरे पास भी टोटा नही, छोटपन दिखाने के लिये मैरा कद भी आप से कम छोटा नही। शब्दो के मैरे पास वह बाण है कि धराशायी कर दूंगा तमाम कपोल-कल्पित मान्यताओ को, वीरान इबादत गाहो को, परन्तु नमूने की कुछ ही बानगी परोस कर ही मै यह दान-पात्र आपके बीच छोड़ना चाह्ता हूँ.  इस अवसर को महा अवसर मान कर बल्कि महाभारत जान कर कूद पड़ो रण में अपने-अपने विषाक्त शब्द बाणो को ले कर!
यह दान-पात्र है…
लोकतन्त्र@धर्मनिर्पेक्षता.विषवमण्॰काँम
Note:- आपकी उल्टियों (अभिव्यक्तियों) को प्रकाशित करने के लिये 'सामना' तत्पर है, इलेक्त्रोनिक मीडिया हाज़िर है, जली हुई रेल-गाड़ी प्रस्तुत है प्रदेश ही नही देश भर में आपका संदेश प्रसारित करने के लिये…!!!
मन्सूर अली हाशमी

Friday, September 5, 2008

Animality

पशु-धर्म

साम्प्रदायिक दंगा?
नही, बल्कि 'साम्प्रदयिक झगड़े जैसा कुछ' , लग रहा था लोगों को।
इनमें तिलक-धारी भी थे, टोपी-धारी भी, अनेकानेक अन्य भी,
तालियाँ बजाते हुए,अटठहास करते हुए लोग,
सर फुटव्वल की आवाज़े,
झूमते हुए लोग,
खून की धार बह निकलना,
सहमते हुए लोग!
भागते हुए लोग ?
ज़ख़्मों से चूर,
थक कर,
लाचार से बैठे हुए,
दो निरीह प्राणी,
कौन?
एक हिन्दू की बकरी,
एक मुसलमान की गाय्।














ख़ामोशी से एक दूसरे को टकते हुए,
दर्शको के अद्रश्य हो जाने पर,
बकरी मिमियायी ,
गाय रम्भायी,
दौनो को एक-दूसरे की बात समझ में आयी,
बकरी गाय की पीठ पर सवार हुई,
गाय उसे पशु-चिकित्सालय के द्वार पर छोड़ आयी।
Note: {Picture have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
मन्सूर अली हाशमी
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