[सूखी नदी के तट पर दो मछली शिकारियों के हाथ क्या लगा....?]
तेज़ हवा के झोंके के साथ उड़ता हुआ वो कागज़ उसके चेहरे से टकराया , "ये तो कोई चिठ्ठी है" , सरसरी नज़र डाल कर वह बड़बड़ाया . पहली लाईन ही चौंकाने वाली थी..
''मैरे पास ख़ुदकुशी करने के सिवा कोई चारा नहीं, बगैर दहेज़ विवाह हो नहीं सकता, आज आठवी बार न सुनकर मैरा दिल टूट गया है. मैरे विवाह के लिए,माँ का इलाज बंद करना पड़े, बहनों की पढ़ाई रोक दी जाए, घर गिरवी रखने की स्थिति पैदा हो, यह मैं हरगिज़ नहीं चाहूंगी. इसलिए मैं न रहूं तो कई समस्याए एक साथ ख़त्म हो जाएगी." -ज्योति
सूखी नदी के घाट पर उससे थोड़े ही फासले पर कोई लड़की घुटनों के बीच सर छुपाये बैठी थी, शायद रो रही थी. पास रखे पत्थर के नीचे से उड़कर यह चिट्ठी उस तक पहुँच गयी है, उसने सोचा. वह उस लड़की की तरफ बढ़ता उससे पहले ही लड़की ने चिट्ठी उसके हाथ में देख कर उसकी तरफ लपकी.२४-२५ वर्ष की सुन्दर लड़की को अपनी तरफ लपकते देख वह थोड़ा पीछे हटा. "आपने यह चिट्ठी पढ़ी तो नहीं"? लड़की लगभग चीखते हुए पूछ रही थी.
"पढ़ भी ली तो क्या हुआ, सूखी नदी में ख़ुदकुशी कैसे करोगी"?
"उसका मैरे पास इंतेज़ाम है." विपरीत दिशा में भागते हुए लड़की ने अपनी पर्स में से कोई शीशी निकाल कर खोली. उससे भी अधिक फुर्ती दिखाते हुए उस युवक ने उसके हाथ से शीशी छीन कर दूर नदी की तरफ उछाल दी. लड़की उसके पास खड़ी हांप रही थी और वह उसकी सुन्दरता निहार रहा था. युवक आदेश के लहजे में बोला, "बैठ जाओ". व झट से बैठ गयी.
"यह क्या मूर्खता कर रही थी?" जवाब देने की बजाय लड़की ने ही सवाल कर डाला...."आप करेंगे बग़ैर दहेज़ के शादी?"
"हाँ-हाँ ज़रूर , अगर तुम्हे आपत्ति न हो?"
सीधे-सीधे यह प्रस्ताव पा कर लड़की तो सन्न रह गई. वह शर्माना भी भूल गई, ख़ुशी से आँखे ज़रूर छलक आयी. अब वें चलते-चलते युवक की कार तक आ गए थे.
कार चलाते हुए युवक बोला, "मैं एक डॉक्टर हूँ, 'डॉक्टर-पत्नी' ही की तलाश में तीन साल बीत गए, आज तो माँ ने वार्निंग ही दे दी थी, कि तुम मिल गयी."
कितनी सहजता से बात कर रहा है, ज्योति ने सोचा, "सच्चाई इसे बता ही दूँ." बोली, "एक सच्चाई आपको बताना चाहती हूँ, अगर बुरा न माने?" .
डॉक्टर ख़ामोश रहा, कईं विचार उसके मन में आकर चले गए, उसे आशंका हुई क़ि गर्भवती होने वाली बात न कहदे, तभी तो वह मरना चाहती होगी? उसे ख़ामोश देख ज्योति ही दोबारा बोली, "यूं तो ख़ुदकुशी ही मुझे अपनी समस्या का हल दिख रहा था, मगर आज घाट पर वो सन्देश मैंने जानकर आपकी तरफ हवा का रुख़ भांप कर प्रेषित किया था आखरी कोशिश के तौर पर." "और वह ज़हर की शीशी?" डॉक्टर यकायक पूछ बैठा. "वह तो इत्र की शीशी थी, कमाल ज़ोर से फेंका आपने!"
डॉक्टर ख़ामोश रहा, कईं विचार उसके मन में आकर चले गए, उसे आशंका हुई क़ि गर्भवती होने वाली बात न कहदे, तभी तो वह मरना चाहती होगी? उसे ख़ामोश देख ज्योति ही दोबारा बोली, "यूं तो ख़ुदकुशी ही मुझे अपनी समस्या का हल दिख रहा था, मगर आज घाट पर वो सन्देश मैंने जानकर आपकी तरफ हवा का रुख़ भांप कर प्रेषित किया था आखरी कोशिश के तौर पर." "और वह ज़हर की शीशी?" डॉक्टर यकायक पूछ बैठा. "वह तो इत्र की शीशी थी, कमाल ज़ोर से फेंका आपने!"
एक ज़ोर के झटके से गाड़ी रुकी, ज्योति ने चौंक कर बाहर देखा, एक बड़ा सा बंगला था जिसके बाहर 'पशु-चिकित्सक' का बोर्ड लगा हुआ था. ज्योति के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी, डॉक्टर के चेहरे पर इत्मिनान था, वह ज्योति की हालत का आनंद लेते हुए बोला, "जानवरों से डर तो नहीं लगता ना?"
ज्योति से कोई जवाब नहीं बन पड़ा. ज्योति को वही बैठा छोड़, डॉक्टर बंगले में प्रविष्ट हुआ , लौटा तो उसके हाथो में एक सफ़ेद रंग का छोटा सा पप [pup] था जिसे पिछली सीट पर बिठा गाड़ी आगे बढाई.
हिम्मत जुटा कर ज्योति ने बोलने के लिए मुंह खोला....."तो आप.." "जानवरों के डॉक्टर है".......वाक्य पूरा किया डॉक्टर ने..एक ज़ोरदार अट्टहास करते हुए.
हिम्मत जुटा कर ज्योति ने बोलने के लिए मुंह खोला....."तो आप.." "जानवरों के डॉक्टर है".......वाक्य पूरा किया डॉक्टर ने..एक ज़ोरदार अट्टहास करते हुए.
ज्योति कुछ समझ पाती इससे पहले गाड़ी फिर एक झटके के साथ रुकी... डॉक्टर मनोज मिश्र M.B.B.S., MD के बंगले के सामने. अब डॉक्टर मनोज ने ज्योति की तरफ वाला दरवाज़ा खोल उतरने का आग्रह किया. भौंचक्क सी ज्योति मशीन की तरह चलती-चलती साथ होली.
दरवाज़े पर खड़ी माँ कह रही थी, "बेटा, बिजली गुल हो गयी है." "माँ, चिंता मत करो, मैं ज्योति ले आया हूँ." कहकर ज्योति की माँ से भेंट करवाई. आश्चर्यचकित ज्योति दमक-दमक गई.
-mansoorali hashmi
10 comments:
बड़ी हिचकोलेदार कथा रही.
बहुत अच्छी लगी कहानी शायद जानवरों के बीच रहने वाले इन्सानों के बीच रहने वालों से अधिक संवेदनायें रखते हैं।
वाह........वाह.......
bahut khoob....
बढ़िया लिखते हो यार ! शुभकामनायें !
Romanchkari kahani lagi...
Haardik shubhkamnayne
इस कहानी की खुशियाँ सपनों सी लगीं।
@ Dineshrai Dwivediji......
धन्यवाद दिनेशराय जी ,
कहानी [चिकित्सक] की खुशियाँ आपको सपनो सी लगी !
मुझे आपकी टिप्पणी अपनों सी लगी.
सपनो पर आज राम त्यागीजी के ब्लॉग [मेरी आवाज़ ] से उद्घृत अंश जो मुझे अच्छे लगे प्रस्तुत है:-
"कुछ सपने (जागू सपने) हम जागते हुए देखते हैं, आशा और संभावना का सम्बल हमारे विचारों को जब आत्मविश्वाश से भर देता है तब ये सपने हमें आगे बढ़ने का उत्साह प्रदान करते हैं | ऐसे सपने जिनको हमें अपनी कर्मठता से हकीकत में बदलना है , देखने में और ऐसे सपने जो बुलबुले की तरह युगों का सफर करा दें …कितना फर्क है !!"
"आवश्यकता अविष्कार की जननी है, और जागू सपने शायद आवश्यकता की शुरुआत – Inception !! जागते समय के सपने हमारी उत्कृष्टता और सोच का प्रतिबिम्ब होते हैं तो सोते समय के सपने ईश्वर के इंद्रधनुषी उपहार !! आप क्या कहते हैं ?"
-mansoorali hashmi
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Mansoor Ali ji ,
Beautiful story with a happy ending. Thanks for giving the link.
regards,
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Chutiya he ye buddha
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