Saturday, November 5, 2011

Hiccup


हिचकियाँ !



अजित वडनेरकर जी की आज की पोस्ट

 से प्रभावित होकर, जो हिचकियाँ आ रही है उससे "आत्म-मंथन' को तो 
प्रभावित होना ही था:-


याद इतना कर रहा है कौन आज !     

'हिचकियाँ ही हिचकियाँ' आती रही.


# 'हिचकिचाते' ,'सिमट' वो जाते थे,
फिर भी हम को बहुत वो भाते थे,
अब जो आकर पसर गए है वो,
देखिये हम 'सिमटते' जाते है.
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# ले के 'हिचकी' वो सब 'डकार'  गया 
गीला-सूखा सभी उतार गया,
'हाथ धोकर' ही जैसे आया था !
हाथ फिर धोये और पधार गया !! 
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# 'बेहिचक' होके वो लताड़ गया,
उसका खाया-पिया बिगाड़ गया,
सर पे टोपी लगी थी अन्ना की,
'लोक्पाली' से डर 'लबाड़' गया.
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# उसने पूछी है बात दिल की मेरी,
मैं 'हिचकते' रहा; कहूँ, न कहूँ ? 
एक 'हिचकोला' खाके बस जो रुकी,
वो उतरली; मैं, अब रुकू के चलू ?

#  बिसरो की जो याद दिलादे 'हिचकी' है,
'श्वास' का जो व्यवधान बतादे हिचकी है,
बातो से तो दावा होश का करता है,
चढ़ी है कितनी इसका पता दे ,हिचकी है.

Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
-मंसूर अली हाश्मी 

5 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

हिच ऐसी ही चीज है कन्या हो या नौजवाँ कुँआरे रह सकते हैं।
# उसने पूछी है बात दिल की मेरी,
मैं 'हिचकते' रहा; कहूँ, न कहूँ ?
एक 'हिचकोला' खाके बस जो रुकी,
वो उतरली; मैं, अब रुकू के चलू ?

विष्णु बैरागी said...

हर उम्र में, प्रत्‍येक (स्‍त्री/पुरुष, लडका/लडकी) व्‍यक्ति के लिए, सर्वकालिक उपयोगी पंक्तियॉं हैं ये तो।
इन्‍हें पढ कर मेरी हिचकियॉं बन्‍द हो गईं।
आपकी जवॉंदिली ने मुझे भी गुदगुदा दिया।

Anonymous said...

Ajit Wadnerkar Said:


वल्लाह...हिचकियों की सारी रंगत आपने शायरी में उतार दी है...
तिस पर मन्सूरी तंज!!!
आपकी वजह से हमारी पोस्ट की क़द्र बढ़ जाती है हुज़ूर
शुक्रिया बहुत बहुत....
आपके ब्लाग पर टिप्पणी नहीं जा पा रही है।

अजित वडनेरकर wadnerkar.ajit@gmail.com

नीरज गोस्वामी said...

दो जवां दिलों का ग़म दूरियां समझती हैं
कौन याद करता है हिचकियाँ समझती है

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह!