Sunday, March 28, 2010

आज कल / Now a Days


 आज कल 

ब्लोगेर्स:
छप-छपाना, न हुआ जिनको नसीब,
बज़ बज़ाते फिर रहे है इन दिनों.



खुबसूरत जब कोई चेहरा* दिखा,      [*फेसबुक पर]
टिपटिपाते फिर रहे है इन दिनों.

M F Husain :
बेच कर घोड़े भी वो सो न सके,
हिन् हिनाते फिर रहे  है इन दिनों,

रंग में ख़ुद ने ही डाली भंग थी,
तिलमिलाते फिर रहे है इन दिनों

'सोच' कपड़ो
* में  भी उरीयाँ हो गयी,      [*केनवास पर ]
मुंह छुपाते फिर रहे है इन दिनों.



तब  ब्रुश था अब है 'कातर'* हाथ में,    [*क़तर देश]
कट-कटाते फिर रहे है इन दिनों.

नंगे पाऊँ,  पर ज़मीं तो ठोस थी,
लड़खडाते फिर रहे है इन दिनों.

होश का सौदा किया था शौक़ में,
डगमगाते फिर रहे है इन दिनों.


थी  महावत, स्त्री-  गज गामिनी,
सूंड उठाये फिर रहे है इन दिनों.

राज-नीति: 
राज नारी पहलवानों* पर करे?        *[मुलायम सिंह]
बड़बड़ाते  फिर रहे है इन दिनों.


चलती गाड़ी* से उतरना पड़ गया,     *[लालू प्रसाद]
दनदनाते फिर रहे है इन दिनों.

हार नोटों का गले जो पड़ गया*,       *[मायावती]
खड़खड़ाती  फिर रही है इन दिनों.

seat की खातिर गवारा SIT भी है,      *[मोदी]
shitशिताते फिर रहे है इन दिनों.

Berth कोई खाली होने वाली है?       ?
दुम हिलाते फिर रहे है इन दिनों.

झोंपड़ी में पौष्टिक खूराक है*,             *[राहुल गांधी]
खटखटाते फिर रहे है इन दिनों.

पार्टी ने छोड़ा*, छोड़ी पार्टी,                 *[उमा भारती]
दिल मिलाते फिर रहे है इन दिनों.


-मंसूर अली हाश्मी 
http://mansooralihashmi.blogspot.in

6 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत खूब रंगत मिलाई है।

संगीता पुरी said...

बहुत खूब !!

अजित वडनेरकर said...

क्याब्बात है....
इनमें से हरेक को उसके हिस्से का शेर पढ़वाया जाए।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

छप-छपाना, न हुआ जिनको नसीब,
बज़ बज़ाते फिर रहे है इन दिनों.

.... खड़ी खड़ी सूना दी आपने. बहुत खूब.

आगे की पंक्तिया पर नतमस्तक हूँ. लाजवाब

नरेश चन्द्र बोहरा said...

बहुत खूब मंसूर भाई. बहुत जोरदार लिखा है .अच्छा लगा.

विष्णु बैरागी said...

सारी दुनिया के उजागरों को एक जगह पर इकट्ठा कर दिया आपने। दुनिया ही बसा दी आपने। जोरदार भी और मजेदार भी। तीखापन तो है ही।