Tuesday, September 7, 2010

लेने के देने


To,अली साहब , आपकी हल्दी का रंग कहाँ-कहाँ  और कैसे-कैसे लगा टिप्पणियों से जानकर आश्चर्य मिश्रित उल्लास में यह लिख बैठा हूँ!  आप आज्ञा दे तो पब्लिश करदूं? राजेंद्र  Swarn Kaar जी की टिप्पणी भी  प्रेरणादायक रही.

From, अली साहब:



अली सैयद

 to me
show details 10:25 AM (54 minutes ago)
मंसूर अली साहब ,
आदाब अर्ज़ है ,
जरुर पब्लिश कीजियेगा , मुझे खुशी होगी !
अली
2010/9/5 Mansoorali Hashmi <mansoor1948@gmail.com>

लेने के देने 

ये हल्दी लगा खत मेरा मुंह स्याह कर गया होता ...?


[ख़त की हसरत तो पूरी नहीं हुई, मगर हल्दी रंग ज़रूर लाई......वह इस तरह कि...."उस" मकान के इस तरफ तो अली साहब थे और दूसरी तरफ {तसव्वुर कीजिए} जो होस्टल था उसकी खिड़की में से एक श्री  एस.कार  ने दो मकानों की फेंसिंग के बीच की हलचल को भांप लिया था, और जब अली साहब हल्दी लगा ख़त हाथ में लिए बागीचे में अपने पोधो की नब्ज़ टटोल रहे थे तब वह भ्रमर रूपी एस.कार वह हल्दी लगी चिट्ठी की नब्ज़ टटोल के उड़ चुका था जब तक कि आप पलटते. "पूरे तीन दिन" उसने भी नज़रे गाड़े रखी उसने अपने पड़ोस और उसके पड़ोसी पर  (लिखना-पढ़ना भूलकर) . कोई प्रतिक्रिया न देख कर उसने अपने ज़हन में उस ख़त के मज़मून को चित्रवत याद कर के दोहराया:-





नमस्ते ,
मेरे से आप बात करने से क्यों डरते हैं , मैं अच्छी नहीं हूं क्या , तीन दिन से आप मेरी आँख में हैं , आप भी मेरे विषय में किसी - किसी को कुछ बोलते रहते हैं क्या . इसलिए आप मुझसे बात करने के लिए डरते हैं . यह पत्र मैं बहुत हिम्मत कर के लिख रही हूं  !  मैं आपके लिए बहुत हिम्मत वाली हूं लेकिन किस्मत वाली नहीं ,  आपसे बात करने के लिए मन है एक मिनट आप समय देंगे तो मैं आप को बता दूंगी  कि मैं अच्छी हूं या बुरी !  इस पत्र को पढ़ने के बाद भी अगर आपके पास दो मिनट का वक़्त नहीं तो मैं आपको दुबारा मुंह नहीं दिखाउंगी अगर मुझसे कोई गलती हुई होगी तो मुझे माफ करेंगे ! 

...और Helping Hand आगे बढ़ाने का फ़ैसला  कर और उचित अवसर देख आंगन में किसी की प्रतीक्षारत 'भाभीजी' को नमस्कार कर प्रवेश कर ही लिया.
एस.कार:   "नमस्ते भाभीजी."
पड़ोसन:    "सविता है मैरा नाम, कहिये?"
एस.कार:    "नहीं, कुछ नहीं, पड़ोस में होस्टल में रहता हूँ, आज कोलेज                 की छुट्टी है , सोचा आपसे hello करता चलू"
सविता:       "अच्छा, आईये", उसने लान में  रखी कुर्सी की तरफ इशारा करके कहा.

श्रीमान को तो मन की मुराद मिली, लपक लिए. सविता भी बैठते-बैठते रुक गयी, चाय का पूछने के लिए ठहर गयी, प्रत्युत्तर में एस.कार ने कहा....."आपके घर से तो कोफ़ी की महक उठती रहती है!"

सविता:       "सही कहा, हम लोग तो कोफ़ी ही पीते है, मगर इधर के लोग शायद चाय ज़्यादा पसंद करते है?... तो अब चाय की भी आदत बना ली है."
एस.कार:      "किस-किस को जानती है आप इधर, इस कोलोनी में?"
सविता:       "In fact, किसी को भी नहीं, एक पड़ोसी [पास के मकान  की तरफ इशारा करते हुए] है, वह भी नज़रे चुराए रहते है, हम साऊथ वाले ऐसे कोई अजीब प्राणी तो नहीं!"
एस.कार:       "नहीं-नहीं, एसी बात नहीं, बल्कि आप तो हिंदी हम से भी अच्छी बोल लेती है."

सविता चाय बनाने चली गयी,  अब एस.कार की जिज्ञासा बढ़ गयी थी, उसे घर के अन्दर बुलाने की बजाय, बाहर से ही चाय पिला कर निपटा देने वाला मामला लगा. वह भी साथ-साथ घर में प्रवेश कर गया यह कहते हुए कि "आप तकलीफ नहीं करे, चाय फिर कभी."
सविता पीछे मुड़ कर मुस्कुराई, "तकलीफ तो मैं आपको दूंगी, अच्छा है आज आपकी छुट्टी का दिन है."

एस.कार का दिल बल्लियों उछलने लगा, उससे कुछ बोलते न बना. सविता ने चाय बाहर लान में ला कर ही पिलायी, इस दरमियान कुछ इस तरह की बाते हुई:-
सविता:      "बात दरअस्ल यह है कि, यहाँ ट्रान्सफर से पहले मैरे हाथो एक बड़ा एक्सीडेंट हो गया था, मुआवज़े में काफी बढ़ी रक़म चुकाना पढ़ी, कर्ज़ा भी हो गया है, इसलिए पति देर रात तक काम कर क़र्ज़ चुकाने में जुटे हुए है, मैं यहाँ अनजान हूँ कोई भी छोटे-बड़े काम के लिए अटक जाती हूँ."

"ओह!" ठंडी सांस भरते हुए एस.कार ने कहा, "मैरे लायक कोई काम हो तो ज़रूर बता दिया करे."

सविता:       एसा ही एक छोटा सा काम हफ्ते भर से अटका पड़ा है, पति महोदय को तो फुर्सत ही नहीं मिलती और मकान मालिक भी टाले जा रहा है , आज तुम साथ हो तो दुरस्त कर ही लेते है."

एस.कार:      "क्यों नही- क्यों नही", चाय का कप ख़ाली करते हुए, जोश में साथ हो लिया, घर के पिछवाड़े की तरफ, अजीब सी गंध आ रही थी उस तरफ से. सविता ने नाक ढांपने के के लिए साड़ी पल्लू कुछ ज़्यादा ही ऊंचा उठा लिया था[शायद बेख़याली में], इसलिए एस.कार अपनी नाक की चिंता ही नहीं कर पाया. अब वें सेफ्टी टेंक के पास खड़े थे, जहाँ एक पाईप से बदबूदार पानी रिस रहा था. सविता ने पाइप की तरफ इशारा करते हुए कहा इसी को  Replace करना है. pvc पाईप है वैसे ही जुड़ जाएगा . नया पाईप भी ये रखा हुआ है." अब तक एस.कार के होश ठिकाने आ गए थे, बोला, "बस इतनी सी बात है, मै अभी आया अपने दोस्त को फोन करके वो मेरी राह देख रहा होगा."  सविता ने अपना मोबाईल उसकी तरफ बढ़ा दिया, दूसरे हाथ से वह नाक ढांपे हुए थी.  
बौखलाहट में ११ डिजिट दबाया हुआ मोबाईल जब नहीं जुड़ा तो सविता ने पूछ ही लिया "आपने तो प्रदेश के बाहर फोन लगाया लगता है?"
फोन काट कर सविता को थमाते हुए, जल्दी से पाईप जोड़ कर भागने में ही उसको अपनी भलाई लगी. अब तो वह भी बदबू से बचने के लिए अपनी जेब में रूमाल तलाश रहा था. सविता ने अपना लेडिस रूमाल उसको थमा दिया जो खुश्बू से भरा हुआ था. औज़ार का बॉक्स भी पास ही रखा हुआ था, बचने का कोई बहाना उपलब्ध नहीं था. जैसे तैसे पाईप जोड़ कर , शुक्रिया वसूल किये बगैर भाग ही रहा था कि सविता ने अपने रूमाल की याद दिलायी, सो वह उसे लोटा कर "खाली हाथ" बाहर लौट आया.

फेंसिंग के पास खड़े पड़ोसी सज्जन उसे हडबडाहट में भागते देख कर जाने क्या-क्या अनुमान लगा रहे थे!!!     

सट्टे पे सत्ता [७ शेर का तोहफा]

सट्टे पे सत्ता   [७ शेर का तोहफा]

'पाक ने टॉस जीता, पहले सट्टेबाजी का फैसला'

लंदन. लॉर्ड्स टेस्ट से उठे मैच फिक्सिंग के बवाल के बाद पाकिस्तान क्रिकेट टीम की हर ओर हंसी उड़ाई जा रही है। इसका नजारा रविवार को इंग्लैंड के खिलाफ हुए पहले ट्वेंटी-20 मैच में देखने को मिला।

इंग्लैंड के क्रिकेट प्रशंसकों ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर जमकर फब्तियां कसीं। जब मुकाबले के लिए टॉस हो रहा था, एक दर्शक ने द सन अखबार के हवाले से कमेंट किया, पाकिस्तान ने टॉस जीता, पहले सट्टेबाजी का फैसला।
किसी समय अपनी रफ्तार से विश्वभर के बल्लेबाजों को भयभीत करने वाले शोएब अख्तर की हर गलती पर इंग्लैंड क्रिकेट प्रशंसक तालियां बजा रहे थे। जैसे ही अख्तर ने एक कैच टपकाया, आश्चर्यजनक रूप से पूरा स्टेडियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
- दैनिक भास्कर ०६-०९-२०१० 

Fixing के मामले में भी वो "पाक-साफ़" है,                                                                                                                 
जितनी भी हो कमाई करे Half-हाफ है.

मुद्दत से ग़मज़दा थे, तरसते थे दाद को,
अब हर तरफ ख़ुशी है; अजी LAUGH-लाफ है.

टोटा रनों का पड़ गया, मुश्किल नहीं है दोस्त,
अपने तो इक्तेसाद* का  चढ़ता ग्राफ है.  [economy]

अब फाख्ता उडाएंगे बन्ने मियाँ , हुज़ूर,
'गिल्ली'* उड़ाना शान के अपनी खिलाफ है.  [*बेल्स]

दब जाएगा ये 'शौर' ज़रा सब्र कीजिए,
'तफ्तीश' वाले साथ में लाये 'लिहाफ'* है. [चादर]

बेकार दौड़-भाग* से हासिल नहीं है कुछ,  [*रन]
'पीटा' नही किसी को तो चलिए "मुआफ" है. 

No-Ball  से भी रुख़ यहाँ पलटे है खेल का,
परवाह न कर वो ON है या कि OFF  है.
فکسنگ کے معاملے میں بھی وہ  "پاک-صاف" ہے
جتنی بھی ہو کمائی کرے HALF - ھاف ہے .

مدّت سے   غم زدہ تھے ترستے تھے داد کو 
اب ہر طرف خوشی ہے، اجی LAUGH-لاف ہے.

توتا رنوں کا پڑ گیا، مشکل نہیں ہے دوست
اپنے تو اکتساد کا چڑھتا  GRAPH ہے.

اب فاختہ اڑا ینگے بننے میاں حضور
گِللی* اڑانا شان کے اپنے خلاف ہے.   ]BELLS]

دب جاےگا یہ شور ذرا صبر کیجئے 
تفتیش والے ساتھ میں لائیں لحاف ہے.

بیکار دور- بھاگ سے حاصل نہی ہے کچھ
   "پیٹا" نہی کسی کو تو چلے معاف ہے.

NO-BALL سے بھی رخ یہاں پلٹے ہے کھیل کا 
پرواہ نہی وہ ON  ہے یا کے OFF  ہے.

Sunday, September 5, 2010

वेदना

वेदना

[पंकज सुबीर जी के दिये तरही ग़ज़ल के मिसरे  "फलक पे झूम रही सांवली घटाएं है" पर मौसम का तकाज़ा पूरा करने वाले कोई रूमानी अशआर नहीं बन पड़े, जाने क्यूँ वेदना के स्वर ही फूटते रहे और ऐसा ही कुछ कह पाया, और इसिलए वहां ले जाने की हिम्मत भी नहीं हुई, यहाँ तो प्रस्तुत कर ही दूँ!]

हवा-हवा सी ये क्यूँ आज की हवाएं है,
दग़ा-दग़ा सी ये क्यूँ आज की वफाएं है.

ठगी-ठगी सी लगे आज है ये बहने क्यूँ?
उदास-उदास सी क्यूँ आज इनकी माँएं है.

मुकाम उनका घरों में इसी से तय होगा,
दहेज़ कितना है जो अपने साथ लाएं है.

सितम ज़रीफी के याँ भी पिटाई होती है,
लगा के सौ ये मगर एक ही गिनाये है.

सज़ा-सज़ा सी लगे है ये ज़िन्दगी क्यूँकर,
वफ़ा के शहर में अपने भी क्यूँ पराये है.

Friday, September 3, 2010

कुछ तो करना ही पड़ता!

कुछ तो करना ही पड़ता!

"धान के देश"  में अवधिया जी के सवाल....


सठियाने वाली उम्र में ब्लोगिंग कर के तू कौन सा तुर्रमखां बन जाएगा?


....का जवाब ढूंढने की कौशिश ......
लिखते न गर ब्लॉग तो क्या कर रहे होते?
टी.वी. के चेनलो पे गुज़र कर रहे होते.


योगा कोई, कसरत तो कराटे की मदद से,
'सिक्स पेक' बना ख़ुद पे नज़र कर रहे होते.

उपदेशो हिकायात  श्रवन करके गुरु से,
'सात्विकता'! से जीवन को बसर कर रहे होते.

चाणक्य-नीति सीख विशेषज्ञों की मदद से,
कुछ बात इधर की वो उधर कर रहे होते.


और ब्लोगरियाँ:-
तकलीफे 'अक्षरा'* से परेशाँ जो कईं तो   
'प्रतिज्ञा'* के 'ससुरे' से कईं डर रही होती, 

रेंपो पे  निहारा जो 'करीना' को जलन-वश,
'कमरों' को वो अपनी भी कमर कर रही होती.

*star plus  के सीरियल्स  

--
mansoorali hashmi

Tuesday, August 31, 2010

ख़बरों का अकाल

ख़बरों का अकाल 
कैटरीना को अब भी बेहद चाहते हैं सलमान... - 'आज तक'
-३०-०८-१० 

कोई खबर नहीं थी  तो ये भी खबर बनी,
 " 'सल्मां' के दिल से 'केट' तो निकली नहीं अभी."
पहने हुए 'कमीस' थे जाती भी किस तरह,
'शर्ट-इन' था और वोह भी तो दुबली नहीं अभी!
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कॉमनवेल्थ जीओएम को नहीं भाया थीम सांग.... -आज तक [३०-०८-१०]
[कॉमनवेल्थ के इस थीम सांग से जीओएम ही नहीं बल्कि विपक्ष भी संतुष्ट नहीं है. सबका मानना है कि इस गाने में उतनी जान ही नहीं है, जैसी रहमान से उम्मीद होती है.
इस गाने के लिए ए. आर. रहमान को 5 करोड़ रुपए दिए गए थे. और गेम्स समिति का दावा था कि थीम सांग शकीरा के वाका-वाका से कम नहीं होगा. सवाल ये है कि जीओएम और विपक्ष को ही जब थीम सांग नहीं भा रहा है तो ये पब्लिक को कितना पसंद आएगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है.]

कुछ और 'चूना' मिल गया लगने वास्ते,
'पैसे'* तो कर ही लेते है ख़ुद अपने रास्ते, [५ करोड़]
वैसे तो 'वाका-वाका' से कुछ कम नहीं है ये,
इसमें 'शकीरा' होती तो हम भी थे नाचते.
  mansoorali hashmi

Monday, August 30, 2010

अब........ / NOW..

अब........

'पर-दर्शन' को एब समझते थे पहले,
'प्रदर्शन' ही रोज़ का अब मामूल हुआ.

'तलवारे' तो  पहुँच गयी है म्यूजियम* में, [*अंग्रेजो की]
अब धर्मो का रक्षक याँ त्रिशूल हुआ.
 
धरम, दया की यारी अब तो टूट रही,
हिंसा से वह लड़ने में मशगूल हुआ.

रिश्वत से अब कम ही उलझन होती है,
ली, दे दी! जब सबब कोई माकूल  हुआ. 

--mansoorali hashmi

Sunday, August 29, 2010

'न' होने का होना.....!

'न' होने का होना.....!

'कुछ नहीं' थे ये तसल्ली फिर भी है,
'शून्य' से संसार की रचना हुई.

कहकशां  दर  कहकशां खुलते गए,
क्या अजब ये देखिये घटना हुई.

आदमी- सूरज बना, औरत- ज़मीं,
इस तरह से आमदे 'चंदा' हुई.

सिलसिला दर सिलसिला ये ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी  की  चाह में पुख्ता  हुई.
 
बढ़ गयी आबादी, ताकत भी बढ़ी,
फिर खुराफातें यहाँ बरपा हुई.

रंगों, मज़हब, नस्ल के झगडे हुए,
ज़हर फैला, खूँ की बरखा हुई.

फिर तलाशे ज़िन्दगी तारो में है!
'ज़िन्दगी', लो ! एक मृग-तृष्णा हुई.

एक सपने की हकीक़त ये रही,
इक हकीक़त आज फिर सपना हुई.

'कुछ नहीं थे' ये तसल्ली फिर भी है..........
mansoorali hashmi

Saturday, August 28, 2010

क्या करे!


क्या करे!

कभी तूने किसी से कुछ करी क्या 'बेवफाई'  है?
न करना ज़िक्र इसका, इसको कहते 'बेहयाई'  है.

कोई लिख देगा 'नोवेल' या बना देगा फिलम कोई!
'छिनाली' करके भी लोगों ने याँ दौलत कमाई है!!

फिलम की तरह क्यों रीवर्स चलने लग गयी गाड़ी,
हनीमून, बाद में शादी, और आखिर में सगाई है.

 'गुटरगूँ'   करने से पहले समझ ले गौत्र की गुत्थी,
सुना है 'खाप' वालो ने "बड़ी सख्ती" दिखाई है.

अगर बच जाये बेलन से तो बे परवाह मत होना, 
अभी तो हाथ में झाड़ा है,करछी है, कढ़ाई है.

"उसे"  कंधार जा के छोड़ आये, जान तो छूटी!
"यहाँ बैठा" तो बनता जा रहा अब घर जमाई है!!

जो प्रजा है, वही राजा करेगा कौन अब इन्साफ? 
यह 'नक्सलवाद' है या ख़ुद से ख़ुद की ही लड़ाई है??
-mansoorali hashmi

Friday, August 27, 2010

असमंजस

असमंजस 

रंगों में आतंक भरा है!
भगवा कोई लाल, हरा है.

बेरंगी होना ही अच्छा,
इन्द्र धनुष से तीर चला है,

'मस्जिद' गरचे टूट चुकी है,
बेघर अब भी 'राम लला' है.
बंद है मुट्ठी में जाने क्या! [court verdict]
पत्थर या कि गुड़ का डला है.

महंगाई ! तो घटती, बढ़ती,
देश का कारोबार बढ़ा  है.

रेखा* से नीचे वालो में,  [*BPL]
सपनो का ब्योपार बढ़ा है. 

'राय' पे 'कालिख' का चढ़ जाना!
'साहित्य' भी तो एक 'कला'  है !!

संस्कारो का पैमाना क्या?
एक गधी की आत्म-कथा है !

'अफज़ल' को जल्लाद न मिलता,
कृषक सूली पर टंगा है!

'जयचंद' या 'माधुरी गुप्ता',
अपनों ही ने हमको छला है.

बारहा प्यारा अपना गुलशन,
अपनों ही के हाथ जला है.
मंसूर अली हाश्मी 

Wednesday, August 25, 2010

कुछ काम करो - कुछ काम करो !

कुछ काम करो - कुछ काम करो !


भ्रष्टाचार   
# "काम न"  करके "वेल्थ" अर्जित कर, [c.w]

   सीख ले आर्ट कुछ तो सर्जित कर.
# दूध का कारोबार 'मंदा' है?
   फिर तो पानी में दूध मिश्रित कर.

हिंदी साहित्य  
# 'बे हयाई' भी अब तो बिकती है,
   'बे वफाई' पे "शोध" मुद्रित कर.
# बहस जब छिड़ गयी 'छिनालो' की,
   कौन  किस से बड़ा ये साबित कर!
# गाली देकर तू मांग ले माफ़ी, 
   छप गया है ग़लत तो एडिट कर.
# लिखना पढ़ना तो सब को आता है,
   'बोल कर' ही तू सब को भ्रमित कर.

समाज
# आश्रमों से ये अब सबक मिलता,
   'भोग ख़ुद', दूसरो को वर्जित कर.
# "बाँध" रस्सी से "दिखला" गहराई!
    पेश्तर "डूबने" से uplift  कर!!
# "देश" पहले कि "धर्म" और "भाषा"?
  सोच ले, इसके बाद खिट-खिट कर.
# हिंदी-उर्दू है दो सगी बहने,
   एक गमले  ही में पल्लवित कर.
# "गांधी-गीरी" अगर चलानी है,
   'मुन्नाभाई' किसी को 'सर्किट' कर
# 'पीपली' को मिला नया जीवन,
  अब, तू 'बरगद' पे ध्यान केन्द्रित कर.
# 'सेक्स वर्कर' भी अब तो है 'उद्धोग',
  कर न, हड़ताल इसको "गर्भित कर".  
# 'चीनी कम' , उम्र हो गयी ज़्यादा,
  'बातों' से अब 'मिठास' सिंचित कर.

राजनीति

# 'मंदिर' 'अफज़ल' बड़े कि सत्ता-सुख!
  प्रकरण ऐसे सारे लंबित कर!!
#  "जूता मारे", गले लगा उसको,
  तू हरीफो को अपने विस्मित कर.
# जीतना है अगर चुनाव तुम्हे,
  बातें सारी कपोल- कल्पित कर.
# राजनीति से हो  'रजो-निवृत्त'?
  "राज्यपाली" से ख़ुद को नियमित कर.
स्वतंत्रता दिवस के महीने में 
अस्पतालों में 'फल' हुए तकसीम,
'सांसदों' को न इससे वंचित कर!
 [ तनख्वाह बढ़ा दे अल्लाह के नाम पर]
-मंसूर अली hashmi

Thursday, August 19, 2010

इस रंग बदलती दुनिया में......

इस रंग बदलती दुनिया  में......

नक़ाबो में कईं चेरे छिपे है,
नज़र है जैसी वैसा ही दिखे है.

कोई 'लाली' से 'आतंकित' किसी को,
'हरा' सब 'सांप' के जैसा लगे है.

जो 'तप' और 'त्याग' का प्रतीक था अब,
वही 'भगवा' क्यों 'संसारी' लगे है.

'सफेदी' थी 'मुक़द्दस'* की ज़मानत,  [*पवित्रता की]
कईं 'धब्बे' अब इस पर भी लगे है.

'गुलाबी' में मोहब्बत की कशिश थी,
क्यों 'कांटो' सी 'निगाहों' को चुभे है?

कभी 'नीला' समंदर दिलरुबा था,
लबालब 'ज़हर'* का दरिया लगे है.   [polluted हो कर]


फ़िज़ा की खुशगवारी क्या हसीं थी,
धुआँ हर सिम्त ये कैसा उठे है?
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चार लाईने हिंदी की आज की साहित्यिक संस्कृति पर:-
तराने, राग थे, किलकारियां थी,
हवस है आग है चिंगारियां है !
ये कैसी "छीना-झपटी" कि उड़ी है,
हमारी अस्मिता की धज्जियां है !!

-मंसूर अली हाशमी 

Wednesday, August 18, 2010

बातों-बातों में

बात निकली तो हरएक बात पे कुछ याद आया!  




 Mansoorali Hashmi

 to उडन तश्तरी.... 


समीर जी प्यारी ग़ज़ल कही आपने, ख़ुद को दिलासा आदमी यूं भी दे लिया करता है, जश्ने आज़ादी के मौके पर अत्यंत ही निराशाजनक तस्वीर पेश की गई ब्लॉगर जगत में, देश की एवं मौजूदा हालात की. कुछ लोगो को तो लगता है कि सब कुछ ही ख़त्म हो गया है. ऐसे में आपने एक अच्छा 
सपना भी देखा है और उसमे कोई अपना भी देखा है:-  "मुद्दतो बाद कोई आने लगा अपने सा,  रात भर ख़्वाब में मैंने उसे आते देखा." बहुत ख़ूब.

                               "मुद्दतो बाद सही  कुछ तो हुआ आपके साथ" 
 आपके हर शेर ने कुछ  कहलवा लिया है, इजाज़त हो तो अपनी पोस्ट पर दाल दूँ आपकी रचना के साथ? 
Starred

Sameer Lal

 to me

हज़ूर


आप भी गज़ब करते हैं-सम्मान का विषय है मेरे लिए और आप को पूछने की कैसे जरुरत आन पड़ी. आपका अधिकार और स्नेह है. जरुर छापें.
बेहतरीन उभरे हैं आपके हर शेर. वाह
सादर  -समीर 
समीर लाल जी                                                                                                                                 हाश्मी                                                                                 
मुद्दतों बाद उसे दूर से जाते देखा                     धूप से आँख मिचोली का भी मौक़ा तो मिला
धूप को आज यूँही नज़रे चुराते देखा                सर्द रिश्तो को कही पर तो पिघलते देखा 

मुद्दतों  बाद हुई आज ये कैसी हालत               ख़ुश्क आँखों को नमी का भी तो अहसास हुआ
आँख को बे वजह आंसू भी बहाते देखा            दर्द बन कर जो इन आंसू को टपकते देखा

मुद्दतों बाद दिखे है वो जनाबे आली                वोट के ही तो सवाली है, "बड़ी बात है यह" 
वोट  के वास्ते सर उनको झुकाते देखा            हाकिमे वक़्त को आगे तेरे झुकते देखा

मुद्दतों बाद खुली नींद तो पाया हमने               नींद आ जाए ये नेअमत है बड़ी चीज़ यहाँ
ख़ुद  को सोने का बड़ा दाम चुकाते देखा           और सोने पे सुहागा तुझे जगते देखा 

मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने            खुशनसीबी है कि भाई भी है अपना कोई
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा                 अब जो 'दीवार' है, "उसको भी तो गिरते देखा"

मुद्दतों बाद कोई आने लगा अपने सा                खवाब में ही सही अपनों से मुलाक़ात तो की
रात भर खवाब में मैंने उसे आते देखा               उनके शिकवो को शिकायात को झड़ते देखा

मुद्दतों  बाद किसी ने यूं पुकारा है "समीर"        देर से "हाशमी" पर तुझको पुकारा तो सही 
ख़ुद ही ख़ुद से पहचान कराते देखा                    ख़ुद की पहचान को यूं भी तो निखरते देखा.  
  
Regards.

-मंसूर अली हाश्मी.
 

Sunday, August 15, 2010

लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मैरी..

लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मैरी..


सुलभ जायसवाल की तमन्नाएं ..... "आज़ाद वतन में मुझको आज़ाद घर चाहिए"

पढ़कर , उनके लिए ये दुआइय कलेमात  पेश है:-
[ स्वतंत्रता दिवस पर सभी ब्लॉगर साथियों और देश वासियों को हार्दिक  बधाईयाँ]

शहरे आज़ाद में तुम को घर भी मिले,
घर मिले, साथ में तुमको वर* भी मिले.  [*जोड़ी] 
बे ख़तर  जो हो, वह रहगुज़र भी मिले,
द्वार पर राह तकती नज़र भी मिले.
गूँजे घंटी जहाँ साथ आज़ान के,
कारोबारी वहां हर बशर भी मिले.

हुक्मराँ  हो वफादार अब देश में,
हाथ में हो तिरंगा जिधर भी मिले.
mansoorali hashmi