Monday, January 3, 2011

फूटे नसीब है........!

फूटे नसीब है........!


हालात आजकल तो अजीबो ग़रीब है, 
है डाक्टर मरीज़, तो रोगी तबीब है.

वां 'नेट' था न डाकिया, फूटे नसीब है,
ख़त जिसके साथ भेजा वो निकला रक़ीब है.

निकला वतन से दूर वो होता ग़रीब है,
भारत में जो भी आया वो बनता 'हबीब' है!

उनका ये काम* था कि मिटाएंगे दूरीयाँ,      *Telecom
इस वास्ते तो रादिया उनके करीब है.

हमदर्द उनको* अब भी पुकारे है 'मसीहा'       *डाक्टर विनायक' 
कानून  भेजता जिसे सूए सलीब है.

-मंसूर अली हाश्मी 

Sunday, January 2, 2011

HAPPY NEW YEAR


सभी ब्लोगर साथियों को नव-वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं.


Saturday, January 1, 2011

Thursday, December 2, 2010

चीज़ ये क्या हम से खोती जा रही !

चीज़ ये क्या हम से खोती जा रही !

"कौड़िया" बेमोल होती जा रही,
प्रतिष्ठाए गोल होती जा रही.

'थाम-स'कते हो तो थामो साख को,
कैच उट्ठी बोल* होती जा रही.    *CVC

मोटी चमड़ी का हुआ इंसान आज,
खाल पर भी 'खोल' होती जा रही.

 'विकी' पर अब leak भी होने लगी,
'गुप्त' बाते ढोल होती जा रही.


बंद मुट्ठी लाख की माना मगर,
खुल के अब तो पोल होती जा रही.

चटपटे चैनल पे  ख़बरे अटपटी,
'बॉस' का 'बिग' रोल होती जा रही,

--mansoorali hashmi

Thursday, November 25, 2010

ये क्या कर दिया !

ये क्या कर दिया !
पूंजी के   'विचरण' ने जब 'बाएं' को 'दायाँ' कर दिया,

ख़ुद हथौड़े ने ही, हंसिये  का सफाया कर दिया.     





'दस्तकारी' में कुशल अँगरेज़ ने इस मुल्क को.
एक था सदियों से जो, मैरा-तुम्हारा कर दिया.

रुक गई थी ट्रेन, लो! अब बुझ गयी है लालटेन,
'चारागर'  को किसने ये आखिर बिचारा कर दिया.   
      
'ये-दू', वोह दूँ , सब दूँ  लेकिन इस्तीफा मांगो नही,       
मैं 'विनोबा' आज का,   'भू- दान' सारा कर दिया.

लुट गई इक बार फिर, नगरी ये 'हस्तिनापुरम'*          
अपने ही लोगो ने अबकी काम* सारा कर दिया.      *C.W.G.




शब्द ले "शब्दावली"* से 'हाशमी' ने आज तो, 
लेख अपना, जैसे-तैसे आज  पूरा कर दिया.

*http://shabdavali.blogspot.com

Note: {Picture have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
-- mansoorali hashmi

Wednesday, November 17, 2010

'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !


'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !


'भज्जी'  ने 'kiwi' बोल के भजिये बना दिये,
'अठ-नम्बरी' ने बेट से छक्के छुड़ा दिये. 

'राजा' ने बिना-तार* भी छेड़े करोड़ों राग,    [*wireless]
'अर्थो' की सब व्यवस्था के बाजे बजा दिये.

'आदर्श हो गए है, हमारे flat* अब,   [*ध्वस्त]
'ऊंचाई' पाने के लिए ख़ुद को गिरा दिये.

'दर्शन' को जिसके होते हज़ारो कतारबद्ध!
वाणी के बाण से कई मंदिर* ढहा दिये.  [*अनुशासनिक आदर्श] 

mansoor ali hashmi

Friday, October 29, 2010

किस से 'गिला' करे !

किस से 'गिला'  करे !

उसका 'गीला', 'नी' लगे, 'गंदा' उन्हें !
'अंधी' 'रुत' है, दोस्तों अब क्या करे?
कैसी आज़ादी उन्हें दरकार है,
अपने ही जो देश को रुसवा करे !!

-मंसूर अली हाश्मी 
  


Thursday, October 28, 2010

एक रूबाई


 
जिस तरह माह-ओ-साल बीत गए,
यह ज़माना भी बीत जाएगा,
'हाशमी' वक़्त का ख्याल न कर,
एक दिन तू भी मुस्कुराएगा.


-मंसूर अली हाशमी
http://aatm-manthan.com