Monday, February 18, 2019
Friday, November 21, 2014
अभी सर पे हमारे आसमाँ है
अभी सर पे हमारे आसमाँ है
फ़िकर में दोस्त तू क्यों मुब्तला है
कि अपना घर कोई थोड़े जला है !
वो हरकत में है जो लेटा हुआ है.
अनार इक बीच में रक्खा हुआ है
मरीज़ो में तो झगड़ा हो रहा है।
लुटा के 'घोड़ा' 'बाबा' सो रहे है, *[बाबा भारती]
'खडग सिंह' क्यों खड़ा यां रो रहा है ?
तलब काहे को अब है 'काले धन' की ?
ज़मीर अपना 'स्याह' तो हो रहा है !
कईं 'रामो' को हम 'पाले' हुए है *[असंत रामपाल]
सिया का राम क्या गुम हो गया है?
बदलते 'मूल्य' का है ये ज़माना
वही अच्छा है जो सबसे बुरा है।
हरा था, लाल था, भगवा अभी तक
कलर 'खाकी' भी अब तो चढ़ गया है।
वो आएंगे, अभी आते ही होंगे
ओ अच्छे दिन कहाँ है तू कहाँ है ?
-- शेख मंसूर अली हाश्मी
litrature, politics, humourous
Changing Values,
Politics of colour,
Rampal,
अच्छे दिन,
रामपाल
Monday, November 3, 2014
Ek, Do, Teen hai.....!
एक, दो, तीन हैं !
सभ्यताएं सभी
जीर्ण है, क्षीर्ण हैं।
Jack तो है बहुत
कौन प्रवीण हैं ?
लाये Sweetie थे हम
अब वो नमकीन हैं।
जांच कर लीजिये
भैंस है, बीन हैं।
खुशनुमा वादियाँ
लोग ग़मगीन हैं।
दोस्त, दुश्मन नुमा,
पाक है, चीन हैं।
धन को 'काला' कहे !
यह तो तौहीन हैं।
है बग़ल में छुरी
लब पे आमीन हैं।
सुब्ह अलसायी तो
शाम रंगीन हैं।
'पाद' सुर के बिना !
कौन ? 'चिरकीन' है !
धर्म हैं दीन हैं
लोग तल्लीन हैं।
दौड़, कर दे शुरू .....
एक-दो-तीन हैं।
चार लाईना
स्वप्न बिकते यहाँ
रीत प्राचीन हैं
सैर कर लीजिये
उड़ता कालीन हैं।
--mansoor ali hashmi
सभ्यताएं सभी
जीर्ण है, क्षीर्ण हैं।
Jack तो है बहुत
कौन प्रवीण हैं ?
लाये Sweetie थे हम
अब वो नमकीन हैं।
जांच कर लीजिये
भैंस है, बीन हैं।
खुशनुमा वादियाँ
लोग ग़मगीन हैं।
दोस्त, दुश्मन नुमा,
पाक है, चीन हैं।
धन को 'काला' कहे !
यह तो तौहीन हैं।
है बग़ल में छुरी
लब पे आमीन हैं।
सुब्ह अलसायी तो
शाम रंगीन हैं।
'पाद' सुर के बिना !
कौन ? 'चिरकीन' है !
धर्म हैं दीन हैं
लोग तल्लीन हैं।
दौड़, कर दे शुरू .....
एक-दो-तीन हैं।
चार लाईना
स्वप्न बिकते यहाँ
रीत प्राचीन हैं
सैर कर लीजिये
उड़ता कालीन हैं।
--mansoor ali hashmi
litrature, politics, humourous
Between the Lines,
Changing world
Monday, September 29, 2014
गुफ्तगु.......
गुफ्तगु.......
[Raag Bhopali से प्रेरित .... अजित वडनेरकर जी की चर्चा को "गुफ्तगू" में परिवर्तित करने की कौशिश ]
(टी . वी . एंकर: - पाकी नुमाइंदे के दरम्यान )
T.V. : आदाब, भाई जान, वतन के है हाल क्या?
पाकी : प्रणाम भैय्या, आप से बेहतर है कुछ ज़रा।
T . V . : करते है क्यूँ मुदाख़िलत कश्मीर में जनाब ?
पाकी : सुंदरता उसकी देख के निय्यत हुई ख़राब।
T . V . : छोड़ो मज़ाक, कैसे 'बिलावल' है भाई जान ?
पाकी : "एक-इंच" भूमि दे दो, है भारत बड़ा महान।
T . V. : 'अल-क़ाइदा' से दोस्ती, है अब भी बरक़रार ?
पाकी : एक यह ही प्रश्न हम से क्यों पूछो हो बार-बार ?
T. V. : 'हाफ़िज़ सईद' साब , गिरफ्तार क्यों नही ?
पाकी : 'गुजरात दंगा' केस की रफ़्तार क्यों थमी ?
T. V. : वक़्ते break, कॉफ़ी का अब ले ले कुछ मज़ा !
पाकी : अजी, इसके ही वास्ते तो, हम आते है इंडिया !
-मंसूर अली हाश्मी
litrature, politics, humourous
Adamant Pakistani Correspondents,
Indian T.V. Anchors
Sunday, September 28, 2014
'लव-जिहादी' में हम भी शामिल है !
'लव-जिहादी' में हम भी शामिल है !
अब ग़ज़ल की ज़मीं मुनासिब है।
फ़ूल भी फेसबुक पे भेजे है ,
कर दूँ 'like' ये मुझ पे वाजिब है।
फ़ोन 'स्मार्ट' भी लिया हमने
'व्हाट्स-एपी' भी अब तो लाज़िम है !
बात मिलने की ! बस नही करते
'On line' ही 'सब कुछ' हासिल है !
रोज़ तस्वीर वो बदलते है
हर अदा उसकी यारों ज़ालिम है।
शेर लिखने लगी है वो भी अब
मानती हमको 'चाचा ग़ालिब' है !!!
--मंसूर अली हाशमी
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facebook,
Love Jihad,
Shaayri,
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Friday, September 12, 2014
मुफ्त की सलाह
मुफ्त की सलाह
# मिला है तुझ को चांस तो भविष्य अब सुधार ले
हज़म हैं माले मुफ्त तो भले से न डकार ले.
हज़म हैं माले मुफ्त तो भले से न डकार ले.
# जिहाद और प्यार में उचित है सारे क्रत्य गर,
हो मारना ही शर्त तो, तू ख्वाहिशों को मार ले.
हो मारना ही शर्त तो, तू ख्वाहिशों को मार ले.
# है अस्मिता की फिक्र गर तो कब्र से निकाल कर
हवाले कर चिता के: 'जोधा बाई' को, तू तार ले.
हवाले कर चिता के: 'जोधा बाई' को, तू तार ले.
# जो राजनीति; बे स्वाद हो रही है, मित्र गर
बढ़ाने उसका ज़ायका, तू धर्म का अचार ले.
बढ़ाने उसका ज़ायका, तू धर्म का अचार ले.
# 'बुलेट' को 'ट्रेन' में बदलना है ज़रूरी अब
थमे न देश की गति भले से तू उधार ले.
थमे न देश की गति भले से तू उधार ले.
# धरम जनों की संख्या,… बढ़ाना हो अवश्य गर,
बजाये एक ही के; कर, तू भी चार-चार ले.
# विद्वेष में जो पल रहा वो नर्क की ख़ुराक है
अंत 'टेररिसट' का, है गर कोई तो नार* है.
अंत 'टेररिसट' का, है गर कोई तो नार* है.
* जहन्नुम
mansoor ali hashmi
litrature, politics, humourous
Free Advice,
Love Jihad,
लव जिहाद
Monday, August 25, 2014
'कुर्सी' चौसर की गोट होने लगी !
आस्थाओं पे चोट होने लगी
बढ़ती रहने में हर्ज ही क्या है ?
'पापुलेशन' जो 'वोट' होने लगी !
बात अब 'सौ टके' की कैसे करे ?
जब असल ही में खोट होने लगी !
जिसने कुर्सी से लग्न करवाया
वो ही महंगाई सौत होने लगी !
जब से 'गंगा नहा लिए' है वो
आरज़ूओं की मौत होने लगी !
अपनी 'हूटिंग' से बौखलाए है
'भीड़' तब्दीले 'वोट' होने लगी
संहिता थी कभी 'आचारों' की
'गांधी-तस्वीर' नोट होने लगी !
-- mansoor ali hashmi
litrature, politics, humourous
Dirty Politics,
Sai Baba
Monday, July 14, 2014
बात अच्छे दिनों की क्यों न करे ?
बात अच्छे दिनों की क्यों न करे ?
दिलरुबा, कमसिनों की क्यों न करे !
'जादू'* उसका तो चल नहीं पाया *[महंगाई पर]
बात 'दीपक', 'जिनों' की क्यों न करे ?
वो है 'उम्मीद' से कि आएंगे
सब्र हम कुछ 'दिनों' का क्यों न करे?
'उसका' सीना बड़ा 'कुशादा'* है *[चौड़ा]
बात फिर 'रॉबिनो' सी क्यों न करे ?
'कुफ्र'* की आँधियाँ है ज़ोरों पर *[नास्तिकता]
बात फिर मुअमिनों की क्यों न करे ?
अब भी 'सीता' ही शक के घेरे में
ज़िक्र फिर 'धोबिनों' का क्यों न करे ?
--मंसूर अली हाश्मी
Monday, June 30, 2014
बहुत कठिन है……।
बहुत कठिन है……।
वेरी डिफिकल्ट ,
डगर ऑफ़ पनघट।
सर पे गगरिया,
नयन तेरे नटखट।
न आ जाए 'कान्हा'
सरक ले ; तू सरपट।
है सैंय्या दरोगा
न करना तू if - but
Less डिफीकल्ट,
जो काम करे झट-पट
-मंसूर अली हाश्मी
litrature, politics, humourous
बहुत कठिन है डगर पनघट की
लिखा है कुछ, पढ़त क्या है !
लिखा है कुछ, पढ़त क्या है !
उलट हक़ तो पुलट क्या है !
भले दिन की उम्मीदें है ?
सितारों की जुगत क्या है ??
नतीजे 'फिक्स' होते है
खिलाड़ी क्या, रमत क्या है !
फुगावा* है उम्मीदों का *inflation
ये घाटे का बजट क्या है।
धुंधलका अपनी आँखों का
ये 'ओज़ोनी' परत क्या है
'हमीं' पर्यावरण अपना
खुद अपने से लड़त क्या है ?
'नहीं' में से तो उपजा है
भरम है! ये जगत क्या है।
--मंसूर अली हाश्मी
litrature, politics, humourous
Ozone layer
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