Monday, August 25, 2008

भद्रता/Gentility




i 16 जून, 2008  #

थप-थप-थप,
कन्क्रीट की आफ़िस पे लगे शीशे के बंद दरवाज़े को थपथपाने की आवाज़,
साधारण वेश में एक परेशान बालक की छबि,
हिलते हुए होंठ, पुनः थप-थप
उंगली का इशारा पाकर, पट खोल, केवल सिर ही अन्दर करने का साहस
जुटाटे हुएकुछ बोलने की असफल कोशिश !
इससे पहले कि शब्द उसकी जिव्हा का या जिव्हा उसके शब्दो का साथ दे, मैंने , अपने हाथ में बची हुई, संतरे की दौनो फ़ाँके उस बालक के हाथ पर रख दी!
(
सचमुच, मेरे पास उस वक्त 'छुटटा' कुछ नही था)
आश्चर्य मिश्रित दर्द का भाव उसके चेहरे पर आकर चला गया।
"
कस्तूरी, बाबूजी... कस्तूरी लोगे ?"
उपर से नीचे तक उस बालक को देखते हुए
,
शब्द खर्च करने की भी आवश्यक्ता न समझते हुए
, इन्कार में सिर  हिला दिया।
चेहरे की मायूसी और गहरी हो गयी,
दरवाज़ा धीरे से बंद हो गया।

बंद होते दरवाज़े में से एक तीव्र मगर मधुर सुगंध कमरे में घुस आईपूरा कमरा महक उठा,  मन हर्ष से भर गया।
यकायक कस्तूरी और उस बालक का विचार आया,
बाहर लपका, सुनसान सड़क पर कोई न था।

सामने वृक्ष तले, सदा बैठे रहने वाला बूढ़ा बिखारी
संतरे की दो फ़ाँको को उलट-पलट कर आश्चर्य से देख रहा था।

शायद पहली बार मिली हुई ऐसी भीख को,
और मैं ग्लानिवश!  फिर ऑफिस के कमरे में बंद हो गया।


कस्तूरी की महक तो क्षणे-क्षणे क्षीण हो लुप्त हो गई,
मगर उस बालक की याद की महक अब भी मस्तिष्क में बसी हुई है
,
जिसने मेरी दी हुई  सन्तरे की फ़ांके सिर्फ़ इसलिये स्वीकार कर ली

कि मेरी दान-वीरता का भ्रम न टूटे
या अपने हाथ पर सह्सा रखदी गई दया की भीख इसलिये वापस नही की कि सुसज्ज कक्ष में बैठा हुआ तथाकथित भद्र-पुरुष ख़ुद को
अपमानित मह्सूस न करे!
भद्र तो वह था, जो ज़रूरतमंद तो था... भिखारी नही,
ख़ुश्बू बेचना चाह्ता था, ठगना नही।

'
ठगा'  तो मैं फिर भी गया, अपने ही विवेक से,
जिस विवेक ने मुझे तथाकथित बुद्धिजीवी (?) की श्रेणी में पहुंचा रखा है। 

परन्तु मैं बहुत पीछे रह गया हूँ उस बालक से जो ख़ुश्बू का झोंका बन कर
आया और मुझसे बहुत आगे निकल गया है!

मन्सूर अली हाशमी
  

3 comments:

Anonymous said...

jabardast likha hai
ek daan ki yaa uphaar ki main bhi kah lun?

sadhu ke ashram men ek admi vaise hi chalaa gaya. fakir ne use atithi mana par stkaar ko paise n the na hi kuch khane pine ko.
jab us vyakti ne vapas jaane ki ijajat mangi to sadhu ne use ashram ki mitii bhent kar di.

admi ne use sir se lagaaya aur apneghar le gayaa.

ghar men khushiyan aa gayi samruddhi ke saath.

CG said...

दिल को छू लेने वाली कहानी. इसे यहां लाने के लिये धन्यवाद.

Amit K Sagar said...

बहुत ही अच्छी रचना.