Friday, March 23, 2012

परीक्षा .....चरवाहे की !


परीक्षा .....चरवाहे की !
आज [२३-०३-२०१२] के समाचार पत्रों से प्रेरित.....




# अपनी 'भेड़ो' को हांक लाये है,
'पर्वतो' से ये भाग आये है.
# भेड़े वैसे तो शोर करती नहीं,
फिर भी 'गुपचुप' हंकाल लाये है.
# 'ऊन' है, 'दूध-ओ-गोश्त' है  इनमे,
इस लिए तो ये दिल लुभाए है. 



# 'भेड़े' बनकर न 'घोड़े' बिक जाए,
खौफ़ इनको यही सताए है.
# 'चारागाह' और भी है 'चरवाहे',
मुफ्त का 'चारा' सब को भाये है.
# 'पंजा' बालो को नोच ले न कहीं,
'संघ' के आश्रय में लाये है,
# खौफ़ है बेवफाई का इनसे !
यूं 'महाकाल' याद आये है !!
 --mansoor ali hashmi

Wednesday, March 21, 2012

NEW FORMULA


[भविष्य

by Gyandutt Pandey
"भविष्य जो आप देखते हैं, वह भविष्य आपको मिलता है।"]
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सुन्दर डर्टी पिक्चर 
आई. टी. में है 'भविष्य' ; ये  जानकर ,   
'कर्नाटक' में हमने अपनाया इसे,   
'मोबाईल' से ही चला था काम वां, 
'आई.पोड' अब मिल गया 'गुजरात' में. 
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कम करना है ग़रीबी, तो कम कर ग़रीब को !
थी योजना 'भविष्य' की, ग़ुरबत घटाएंगे,
रेखा 'अमीरी' ही की, अब आगे बढ़ाएंगे,  
इक रात में करोड़ों को इस पार ले लिया,
"इस तरह " भविष्य आपका उज्जवल बनाएंगे!

-Mansoor ali Hashmi

Friday, February 24, 2012

चौपाई[याँ] (यानी चार पैरों वाली कुर्सी)

चौपाई[याँ]  (यानी चार पैरों वाली कुर्सी)



और 'येद्दू' को न अब  तड़पाईए,
खोयी गद्दी फिर उसे दिलवाईये.
आप बिन 'नाटक' अधूरा सा लगे,
आईये, आ जाईये, आ जाईये.


'पोर्टफोलियो' कुछ अभी खाली पड़े,
पाव दर्ज़न मंत्री भी हट चुके !
{देखने के 'जुर्म' से है 'पट' चुके}
'खाने-पीने' से सभी है डर रहे,
आईये, ख़ा जाईये, ख़ा जाईये !

टीम 'आधी' आप ही के  साथ है,
दिख रहा 'पंजे' नुमा इक 'हाथ' है,
'shake' करले 'hand' मत शर्माईये,
भाग्य अपने फिर से अब अज़माईए, 

आप 'Ready' है तो 'रेड्डी' साथ है,
पहल  करना 'राजनैतिक' पाठ है,
जो है सत्ता में उसी के ठाठ है,
आज का 'चाणक्य' बन दिखलाईये !

आईये, आजाईये, आजाईये !
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mansoor ali hashmi


पढ़ न सके तो 'वाह' तो देते ही जाईये !

पढ़ न सके तो 'वाह' तो देते ही जाईये !


'थप्पड़' से काम न चले, 'घूंसा' लगाईये,
गर है 'प्रिंस' गुस्सा तो आना ही चाहिए.

हासिल न जीत हो सके, लख कोशिशो के बाद,
फर्जी बयानबाजी के छक्के लगाईये.

बल्ले से रन, न बोल से चटके विकेट जब,

क्रिकेट छोड़कर के कबूतर उड़ाईये.

अनशन हो कारगर, न ही भाषण से लाभ हो,
हरिद्वार जाके चैन की बंसी बजाईए.

सब्जेक्ट 'dull' हो टाईटल भड़कीला दीजिए,
नुस्खा ये कारगर है, ज़रा आजमाईये .

होली पे गालियों का मज़ा और ही है कुछ,
एकाध पोस्ट आके ज़रा ठेल जाईये.


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mansoor ali hashmi

-mansoor ali hashmi 

Tuesday, February 21, 2012

चल जाता है कुछ काम 'उधारी' से कमोबेश !


चल जाता है कुछ काम 'उधारी' से कमोबेश !

[Banker:-   "शब्दों का सफ़र" किसी कंपेश को जानते हैं आप ? ]

'शब्दों का सफ़र' 'जाल' पे जारी है निरंतर,
नज़राने लिए 'ज्ञान' के हरसू से कमोबेश.

जब  'मन' की उदासीनता लिखने नहीं देती,
'शब्दों का सफ़र' देता है अलफ़ाज़ कमोबेश.

अब 'जास्ती' लिखने का 'नक्को' फायदा कोई,
कमेंट्स तो मिलते है, "बहुत ख़ूब" कमोबेश. 

छीने है ग्लेमर ने जो पौशाक जिसम से,
रहने दिये कपड़े तो है, फेशन ने कमोबेश.

बाबू है निठल्ले, अजी करते नहीं कुछ काम,
'रिश्वत' है तो चल जाती है गाड़ी तो कमोबेश.

चटखारे बहुत देता है 'भ्रष्टो' का ये 'अचार',
मौसम में 'चुनावों' के तो चलता है कमोबेश.

हम  झूठ के अंबार में क्या ढूँढ़ रहे है ?
उम्मीद कि मिल आएगा इक सच तो कमोबेश !

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Mansoor ali Hashmi

Wednesday, February 8, 2012

'Rose Day' पर 'काँटा' लगा !


'Rose Day'  पर 'काँटा' लगा !


'सामग्री' व्यस्को ही की, हम देख रहे थे !
'कुर्सी' न ही 'माईक' कहीं हम फेंक रहे थे,
'कर-नाटकी' माहौल में रोमांस बड़ा है, 
दिल में न था कुछ मैल, 'नयन' सेंक रहे थे,

मालूम न था हम को कि होवेगी फजीहत,
दोहराएंगे अब हम नहीं, 'मोबाइली' हरकत,
'सो' लेते तो होती न 'ख़राब' अपनी तबियत,
बच जाए अगर 'कुर्सी' तो होवेगी गनीमत.

हम सोच रहे थे कि सुरक्षित है, जगह ये,
कानूनों के 'ऊपर' ही तो रहती है जगह ये,
'आयुक्त' या 'अन्ना' की दख़ल होगी नही याँ,
महँगी पड़ी 'बाबाजी' बड़ी हमको  जगह ये. 

'दिन वेंलेंटाईन' का अब फीका ही रहेगा,
चिंता ये नहीं है कि ज़माना क्या कहेगा,
बदनाम ये मीडिया तो हमें बहुत करेगा,
पर अगले 'इलेक्शन' तक ये किसे याद रहेगा ?

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mansoor ali hashmi 

Monday, February 6, 2012

'मुंह की खाने' की बात करते हो?


'मुंह की खाने' की बात करते हो?  
['उड़न तश्तरी' की आज की पोस्ट.....आलस्य का साम्राज्य और उसके बाशिन्दे   ...से प्रभावित.]
 
लिख-लिखाने की बात करते हो,
किस ज़माने की बात करते हो?

'कट' करो 'पेस्ट' उसको कर डालो,
स्याही-कागज़ ख़राब करते हो ?

काम ज़्यादा है, वक़्त की किल्लत,
क्यों पढ़ाने की बात करते हो?

अपनी-अपनी ख़बर तो सब को है,
आईना तुम क्यों साफ़ करते हो?

'चुक' कहीं तो नहीं गया है, 'ज्ञान',
आज़माने की बात करते हो !

'सोच' पर इक 'जुमूद'* सा तारी,        *[ जम जाना]
'उड़'* के जाने  की बात करते हो?      *[विचारो की उड़न तश्तरी में] 

हो 'विवादास्पद' ही लेख कोई,
गर 'कमाने'* की बात करते हो.            *[चटके बढ़वा कर]  


-Mansoor ali Hashmi

Saturday, February 4, 2012

किस पर करे आधार ?

ग्लोबल हुआ बाज़ार !


[कृपया हमें वापरें…व्यापार करें….....शब्दों की आवाजाही, 'शब्दों का सफ़र' से  ...'आत्ममंथन' पर भी होती रहती है....]

मुल्को की तरक्की का पैमाना है 'व्यापार',
इम्पोर्ट है 'इस पार' तो एक्सपोर्ट है 'उस पार'.


'व्यापार' में घोटाले है, 'घोटालो' का व्यापार,
इन्साफ करे कौन ? जब ताजिर बनी सरकार.

करता है 'सफ़र' माल तो संग चलती है तहज़ीब*          [ *संस्कृति] 
'शब्दों' का भी 'व्यापार' से होता है सरोकार.

रंग भरता ज़िन्दगी में, नयन होते है जब चार,
'cupid'  भी कर रहा है ,यहाँ देखो कारोबार.


"उपयोग करो - फेंको" , का अब दौर है ये तो,
इन्सां भी लगे अबतो 'मताअ', कूचा-ए-बाज़ार.

तहज़ीब के, क़द्रों के, क़दर दान बहुत कम, 
दौलत का सगा है कोई, मतलब से बना यार.
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--mansoor ali hashmi 

'धोया' किसी ने भी हो 'सुखाया' हमीं ने है !


'धोया' किसी ने भी हो 'सुखाया' हमीं ने है !


गणतंत्र का मज़ाक उड़ाया हमीं ने है,
भ्रष्टो को सर पे अपने बिठाया हमीं ने है.

जो लूट कर चले गए, वो तो थे ग़ैर ही,
फिर उसके बाद; लूट के खाया हमीं ने है.

खेलो में हार-जीत तो होती ही रहती है !
दोनों ही सूरतो में कमाया हमीं ने है !!


"घोटाला करके बच नहीं सकता कोई यहाँ"
इस 'सच' को कईं  बार 'झुठाया' हमीं ने है !

'थप्पड़' भी खाके, दूसरा करते है 'गाल' पेश,
घर जाके 'बादशा'* को मनाया हमीं ने है.        *SRK
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--mansoor ali hashmi 

Wednesday, January 25, 2012

एक जश्ने बा वक़ार है छब्बीस जनवरी

गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई , इस अवसर पर अहमद अली बर्की साहब की एक नज़्म उनकी इजाज़त लेकर पेश कर रहा हूँ:- म. हाश्मी.


[Saheb e Akhtiyar haiN Mansoor Aap ko akhtiyar hai is ka
Shukriya Janab e aali is nawaazish ke liye.
Mukhlis
Ahmad Ali Barqi आज़मी]


एक  जश्ने  बा  वक़ार है छब्बीस जनवरी 



                                                     - By  AHMAD ALI BARQI AZMI


एक जश्ने बा वक़ार है छब्बीस जनवरी, 

इक वजहे इफ़्तेख़ार है छब्बीस जनवरी.


परचम कुशाई कीजिये हरजां बसद ख़ुलूस, 

मीज़ाने ऐतेबार है छब्बीस जनवरी.


दस्तूरे हिंद का था इसी दिन हुआ नेफाज़*             *[लागू] 

इस की ही यादगार है छब्बीस जनवरी.


दुनिया में है जो हिंद की अज़मत का इक निशाँ 

वोह जश्ने शानदार है छब्बीस जनवरी.


गुल्हाए रंग रंग हैं इसके नज़र नवाज़,

सब के गले का हार है छब्बीस जनवरी.


सब के सुकूने क़ल्ब का बाईस हो यह न क्यों 

इक नख्ले साया दार है  छब्बीस जनवरी.


जितना भी दिल लगाना है इस से लगाइए 

बस प्यार, प्यार, प्यार है  छब्बीस जनवरी.


जितना भी कोई नाज़ करे इस पे है वोह कम 

'बर्की' तेरा वक़ार है  छब्बीस जनवरी. 

--डा. अहमद अली बर्की आज़मी