Sunday, October 16, 2011

Silent Cry !


शौरे खमोशा !
   'येद्दु' Indoor, 'रथ'  है outdoor,
      एक इस छोर , एक है उस छोर,
      गाड़ी आगे बढ़े तो अब कैसे ?  
      दोनो जानिब ही लग रहा है ज़ोर !



   'अन्ना' खामोश, 'आडवानी' मुखर,
     एक बैठे है, एक मह्वे सफर,
     इक* पिटे, दूजे* को भी; लगता डर,
     आई 'आज़ान' अल्लाहो-अकबर !  

 * प्रशान्त भूषण,  * केजरीवाल



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-Mansoor ali Hashmi

Monday, October 3, 2011

QUATRAIN



"चोक्के"

आज  के 'दैनिक भास्कर' , समाचार पत्र की सुर्खी से प्रेरित;-  


आधी ! भी 'क्लीन चिट' अभी मिलती है यहाँ पर,
'अम्मा' हो मेहरबान तो 'अंबानी' को राहत.
'प्रणब' हो कि 'पी.सी' कोई 'दिग्गी' हो कि 'गहलोत',  
एक शर्ते 'वफादारी' है बस, पाने को 'चाहत'. 
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घोटाले बढ़े देश में, और फैली  है दहशत,
'बाबा' भी निकल आये है अब छोड़ के 'कसरत',
अब एक नया 'गांधी' भी बेदार हुआ है,
पाले हुए कितने ही है 'पी. एम्.' की हसरत.
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अब देखो बदलता है... कब ऊंट ये करवट !
'चारे'* की तो रहती है, हरएक को ही ज़रूरत,         *सत्ता सुख 
कौशिश में लगे है कि उलट फेर तो हो जाए,
उम्मीद के हो जाएगी हरकत से ही बरकत.
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अब कूँए को उल्टा के बना डाला है टंकी,
रस्सी की ज़रूरत नहीं, होते नहीं पनघट,
गगरी, न डगर सूनी, न गौरी की मटक है,
'बाइक' पे भटकते फिरे बेचारे, ये नटखट.
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-मंसूर अली हाश्मी 

Friday, September 30, 2011

Genius !


ये तो नही चमचागिरी ! 




उसने कहा करता है क्या ? 
मैंने कहा, ब्लागिरी....

उसने कहा मिलता है क्या?
मैंने कहा शोहरत बढ़ी!

उसने कहा लिखता है क्या?
मिथ्या ही सब, मिथ्या गिरी!

उसने कहा पढ़ता है कौन?
मैंने कहा 'उड़न-तश्तरी !

उसने कहा सीखा भी कुछ?
मैंने कहा दादागिरी!

उसने कहा "भैया प्रणाम" !
मैंने कहा बला टली!!

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--mansoor ali hashmi 

Jab Bloggers Met


जब ब्लोगर Met


खो गए थे मेले में !
मिल गए अचानक  फिर,
इक नई ही दुनिया में,
बनके अबकि आभासी !!

रोज़ मिल भी जाते है,
बात हो भी जाती है,
अपने ही ब्लागों पर,
सारे लोग प्रवासी.

ज्ञान देने  आते है,
संज्ञान लेके जाते है,
इक से एक याँ बढ़कर,
लोग सारे जज़्बाती.

पूर्वी है अगर कोई,
कोई इनमे मद्रासी,
उर्दू दां कोई है तो,
है कोई ब्रज भाषी.

हिंदी सब ही लिखते है,
बोलते भी, पढ़ते भी,
प्यार इससे करते है,
'हिंदी ब्लॉग' के वासी.

सोच है अलग सबकी,
पेशा भी जुदागाना,
भिड़ भी जाते है अक्सर,
फितरतन करामाती.

डाक्टर भी है इनमे,
सी.ए., बी.ए., एम्.ए.भी,
है कोई गृहस्थिन तो,
कोई इनमे व्यापारी.

रचता है अगर साहित्य,
ज्ञान भी यहाँ बटता,
मेल दिल के होते है,
ख़ुश रहे मुलाकाती.


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-- mansoor ali hashmi 

Thursday, September 29, 2011

Blogging Nuisance !


हंगामा कैसे बरपा करे !

लिखता मैं इसलिए हूँ कि कोई पढ़ा करे,
पढ़ता मैं इसलिए हूँ कि फिर और क्या करे!

Stamps जमा करता था,अब 'टिप्णियो' को मैं,
हो आपको भी शौक़ तो मुझको दिया करे !

उपदेश देने बैठे तो सूखे का हो शिकार,
'छीले' कोई किसी को तो दरिया बहा करे.

आघात, भावनाओं पे कोमल किया करो,
तोड़ो जो छत्ता ; डंक, मधु भी मिला करे.


लिखना जो भूल जाओ तो , गाली तो याद है,
इक देके उसके बदले में दस-दस लिया करे !




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mansoor ali hashmi 

Monday, September 26, 2011

Blogging at any cost !


लिखना ज़रूरी है !




लिखो कुछ भी; वो पढ़ने आयेंगे ही,
भले दो शब्द ; पर टिप्याएंगे ही.

समझ में उनके आये या न आये,
प्रशंसा करके वो  भर्माएंगे ही. 

जो दे गाली, तो समझो प्यार में है!
कभी इस तरह भी तड़पाएंगे ही.

न जाओ उनकी 'साईट' पर कभी तो,
बिला वजह भी वो घबराएंगे ही.

कभी 'यूँही' जो लिखदी बात कोई ! 
तो धोकर हाथ पीछे पड़जाएंगे ही.

बहुत गहराई है इस 'झील' में तो,
जो उतरे वो तो न 'तर' पाएंगे ही. 

ये बे-मतलब सा क्या तुम हांकते हो!
न समझे है न हम समझाएंगे ही !!

लगा है उनको कुछ एसा ही चस्का,  
कहो कुछ भी वो सुनने आयेंगे ही.


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--mansoor ali hashmi 

Friday, September 23, 2011

Short Cut !

कैसा ये 'काल' है !

जिस 'माल'* ने बनाया हमें 'मालामाल' है,        *पशु-धन 
किस दर्जा आज देखो तो वो पाएमाल है.

आँखे ! कि तेरी झील सी इक नेनीताल है.
गहरी है, कितनी नीली है, कितनी विशाल है.

'रथ' पर, 'ट्रेन' में कोई, कोई हवा में है* ,    *प्रचार के लिए !
है पात-पात कोई,  कोई  डाल-डाल है.

'P C'  भी अब चपेट में वाइरस की, ख़ैर  हो,
'राजा' ये कह रहा है कि सब 'सादे नाल' है. 

'रक्खा' विदेश में है,सुरक्षित हरएक तरह,
'नंबर' जो उसका गुप्त है, वो सादे नाल है. 

वो तो 'अमर' है, साथ में लोगा वड्डे-वड्डे* !   *big B
'चिरकुट' कहे कोई उसे, कोई दलाल है.

'वो' आसमानों पर है ज़मीं की  तलाश में,
हम तो ज़मीन खोद* के होते 'निहाल' है.      *खनन 

--mansoor ali hashmi

Thursday, September 22, 2011

Alas !

बे मेल !






खूँटी' मिल न पायी जब आस्था की 'टोपी' को,
'मुल्ला' की मलामत की, और कौसा 'मोदी' को.

दौर 'अनशनो' का है, त्याग कर ये रोटी को,
फिक्स कर रहे है सब, अपनी-अपनी गोटी को.

'शास्त्र' से न था रिश्ता, 'शस्त्र' लाना भूले थे,  
इक ने खींची दाढ़ी तो, दूसरे ने चोटी को.

जोड़े यूं भी बनते है, जोड़ जब नहीं मिलती,
मोटा लाये मरियल सी, दुबला पाए मोटी को.

'बड़की'* से ब्याहने जो रथ पे चढ़ने आया था,   
 लौटना पड़ा उसको साथ लेके 'छोटी' को.

* {पी.एम्. की गद्दी}
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mansoor ali hashmi 

Friday, September 16, 2011

New Values

अच्छा तो हम चलते है !



हरइक सुबह वो कुत्ते संग जोगींग पे निकलते है,
उसे निबटा के रस्ते में , ये घर आकर निबटते है.

उलटते है, पलटते है, अदलते है, बदलते है,
जहां सत्ता का सुख मिलता, उसी जानिब फिसलते है.


बयानों को वो अपने ख़ुद उगलते है, निगलते है,
ये बेपेंदी के लौटे है, यहाँ से वां लुढ़कते है.


सभी को मौक़ा मिल जाता यहाँ कुछ कर दिखाने का,
जो  अनशन कर नहीं पाए वो अब उपवास करते है. 

उछाल आये जो डॉलर में तो रुपया पानी भरता है,
बिगड़ जाता बजट तबतेल के जब दाम चढ़ते है.


हमारे 'अर्थ' की अब है व्यवस्था ग़ैर हाथो में ,
कोई खींचे है धागा , और हम बस हाथ मलते है.

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mansoor ali hashmi 

Monday, September 12, 2011

SILENT CRY


जब भी बोला है सच ही बोला है!

मुंह नहीं उसने अपना खोला है,

उसका चुप रहना ही तो ‘बोला’ है.

दर्द दुनिया का भर लिया दिल में,

हाथ में उसके खाली झोला है.

खाताधारी ‘Swiss’ का बन बैठा,

रत्ती,माशा कभी था, ‘तोला’ है.

आबे ज़मज़म न गंगा जल की तलब,

हाथ में अब तो कोका कोला है.

‘वो’ किसी और को, कोई ‘उसको’,

ठोंकता है सलाम- ‘ठोला’ है. 

मुफ्त का माल, बे रहम हो जा,

फ़िक्र क्या करना? हाजमोला है!

क्यों रसन, दार पर सजी फिर से,

सच ये फिर आज कौन बोला है ?

दोनों जानिब नज़र वो आता है,

झूलता रहता है हिंडोला है !

इन्किलाब अब तो यूं भी आते है,

बन गयी जब भी भीड़ ‘टोला’ है.


 --mansoor ali hashmi