Friday, January 14, 2011

यह कैसा शहर है....!

यह कैसा शहर है....!


["शब्दों  का  सफ़र "  के  आज  के .... .   फ़रमान सुनें या प्रमाण मानें  से प्रेरित,,,]


'नापा' है चाँद जबसे, मअयारे हुस्न बदला,  
पैमाना-ए-नज़र अब माशूक की कमर है.















'प्रमाणम'* काम आते अब [जनम] पत्रियो के बदले, 
ज्योतिष की क्या ज़रूरत 'भौतिक' पे अब नज़र है.

'फरमान' है- कि गिर न पाए ग्राफ अपना,
महंगाई बढ़ रही है, ये भी तो ख़ुश ख़बर है. 

आतंक लाल-हरा था, भगवा भी बन रहा है,
'फरमा' रहे है हाकिम, हमको तो सब ख़बर है. 

पी.ए.सी., जे.पी.सी. भी लाएगी क्या नतीजा,
सारे सबूत जबकि होते इधर-उधर है.


 [*नापतौल/ आकर-प्रकार ]


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-मंसूर अली हाश्मी 


# मकर सक्रान्ती की हार्दिक बधाई,  सभी ब्लागर एवम पाठक साथियों को.

Sunday, January 9, 2011

हम लोग

हम लोग 




'द्रोण' जैसे 'गुरु' है तो यह तो होना है,
'अंगूठे' आज भी अपने कटा रहे हम लोग.

विदेशी लूटेगा कैसे 'सुनहरी चिड़िया' अब,
उन्ही के 'खातो' में 'लक्ष्मी' छुपा रहे हम लोग.


प्याज़ ही में ये दम था रुला सका हमको,
वगरना, बेटी, बहू को रुला रहे हम लोग.

धमाकों में भी तो, 'आनंद' 'असीम' है यारों, 
'उड़ाके' ख़ाक दिवाली मना रहे हम लोग.

नए ज़माने में, पीछे क्यों हम ही रह जाते,
स्वयं को लूट के देखो कमा रहे हम लोग.

अब इन्किलाब कि बाते हमें पसंद नही,
'स्वतंत्रता' ही को 'बंदी' बना रहे हम लोग.
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-मंसूर अली हाश्मी 

Monday, January 3, 2011

कब्जा सच्चा, दावा झूठा !



*("तीसरा  खंबा पर श्री दिनेश रायजी द्विवेदी  का 'फ़ैसला' पढ़ कर........रचित) 

'.क़ब्ज़ा'  सच्चा  है, 'दावा' झूठा  है,
बस चला जिसका उसने लूटा है.

लाटरी जैसे...लगते 'निर्णय' है,
भाग्य अच्छे तो, छींका टूटा है.

अब सड़क भी तो उसके अब्बा की,
पहले जिसने भी गाढ़ा खूँटा है.

ख़ाक पर चलना जिसकी किस्मत थी,
अब करो में भी दिखता जूता है.

सब्र से ही बस, अब नही भरता,
दिल का पैमाना जब से टूटा है.

जिसकी ख़ातिर में रूठा दुनिया से,
वो ही अब देखो मुझसे रूठा है.

mansoorali hashmi

फूटे नसीब है........!

फूटे नसीब है........!


हालात आजकल तो अजीबो ग़रीब है, 
है डाक्टर मरीज़, तो रोगी तबीब है.

वां 'नेट' था न डाकिया, फूटे नसीब है,
ख़त जिसके साथ भेजा वो निकला रक़ीब है.

निकला वतन से दूर वो होता ग़रीब है,
भारत में जो भी आया वो बनता 'हबीब' है!

उनका ये काम* था कि मिटाएंगे दूरीयाँ,      *Telecom
इस वास्ते तो रादिया उनके करीब है.

हमदर्द उनको* अब भी पुकारे है 'मसीहा'       *डाक्टर विनायक' 
कानून  भेजता जिसे सूए सलीब है.

-मंसूर अली हाश्मी 

Sunday, January 2, 2011

HAPPY NEW YEAR


सभी ब्लोगर साथियों को नव-वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं.


Saturday, January 1, 2011

Thursday, December 2, 2010

चीज़ ये क्या हम से खोती जा रही !

चीज़ ये क्या हम से खोती जा रही !

"कौड़िया" बेमोल होती जा रही,
प्रतिष्ठाए गोल होती जा रही.

'थाम-स'कते हो तो थामो साख को,
कैच उट्ठी बोल* होती जा रही.    *CVC

मोटी चमड़ी का हुआ इंसान आज,
खाल पर भी 'खोल' होती जा रही.

 'विकी' पर अब leak भी होने लगी,
'गुप्त' बाते ढोल होती जा रही.


बंद मुट्ठी लाख की माना मगर,
खुल के अब तो पोल होती जा रही.

चटपटे चैनल पे  ख़बरे अटपटी,
'बॉस' का 'बिग' रोल होती जा रही,

--mansoorali hashmi

Thursday, November 25, 2010

ये क्या कर दिया !

ये क्या कर दिया !
पूंजी के   'विचरण' ने जब 'बाएं' को 'दायाँ' कर दिया,

ख़ुद हथौड़े ने ही, हंसिये  का सफाया कर दिया.     





'दस्तकारी' में कुशल अँगरेज़ ने इस मुल्क को.
एक था सदियों से जो, मैरा-तुम्हारा कर दिया.

रुक गई थी ट्रेन, लो! अब बुझ गयी है लालटेन,
'चारागर'  को किसने ये आखिर बिचारा कर दिया.   
      
'ये-दू', वोह दूँ , सब दूँ  लेकिन इस्तीफा मांगो नही,       
मैं 'विनोबा' आज का,   'भू- दान' सारा कर दिया.

लुट गई इक बार फिर, नगरी ये 'हस्तिनापुरम'*          
अपने ही लोगो ने अबकी काम* सारा कर दिया.      *C.W.G.




शब्द ले "शब्दावली"* से 'हाशमी' ने आज तो, 
लेख अपना, जैसे-तैसे आज  पूरा कर दिया.

*http://shabdavali.blogspot.com

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-- mansoorali hashmi

Wednesday, November 17, 2010

'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !


'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !


'भज्जी'  ने 'kiwi' बोल के भजिये बना दिये,
'अठ-नम्बरी' ने बेट से छक्के छुड़ा दिये. 

'राजा' ने बिना-तार* भी छेड़े करोड़ों राग,    [*wireless]
'अर्थो' की सब व्यवस्था के बाजे बजा दिये.

'आदर्श हो गए है, हमारे flat* अब,   [*ध्वस्त]
'ऊंचाई' पाने के लिए ख़ुद को गिरा दिये.

'दर्शन' को जिसके होते हज़ारो कतारबद्ध!
वाणी के बाण से कई मंदिर* ढहा दिये.  [*अनुशासनिक आदर्श] 

mansoor ali hashmi