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Wednesday, November 17, 2010

'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !


'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !


'भज्जी'  ने 'kiwi' बोल के भजिये बना दिये,
'अठ-नम्बरी' ने बेट से छक्के छुड़ा दिये. 

'राजा' ने बिना-तार* भी छेड़े करोड़ों राग,    [*wireless]
'अर्थो' की सब व्यवस्था के बाजे बजा दिये.

'आदर्श हो गए है, हमारे flat* अब,   [*ध्वस्त]
'ऊंचाई' पाने के लिए ख़ुद को गिरा दिये.

'दर्शन' को जिसके होते हज़ारो कतारबद्ध!
वाणी के बाण से कई मंदिर* ढहा दिये.  [*अनुशासनिक आदर्श] 

mansoor ali hashmi

Friday, August 16, 2013

जो 'मीठा' तो गप-गप, है 'थूं-थूं जो 'खट्टा !


जो 'मीठा' तो गप-गप, है 'थूं-थूं जो 'खट्टा !   

ये 'मोदी' ने फेंका* है 'पंजे' पे छक्का,          *PM  के भाषण पर 
कोई कहता कच्चा, कोई कहता पक्का . 

है 'वाचाल' कोई तो 'खामोश' बच्चा !
है 'उद्दंडता' कि जमा खूँ का 'थक्का' ?

बने आज का दिन* पुनर्जन्म जैसा,         *[स्वतंत्रता-दिवस वर्षगाँठ]
सलामत रहे , या ख़ुदा, ज़च्चा-बच्चा.  

न 'शिक्षा' न 'संस्कार' की है ज़रूरत,
वही जीतता है, जो है हट्टा-कट्टा !

'खनन' पर, 'ज़मीं' पर तो 'दंगो' को लेकर,
'सदन' में तो जारी है बस लट्ठम-लट्ठा !

'फुद्बिल', एफडीआई, 'नारी आरक्षण',
अभी पक  रहे है, न रह जाये कच्चा !  

लदे तो है 'बेलो'* पे अंगूर ढेरों ,           *[आगामी चुनाव रूपी]
मिले तो है मीठे, न पाए तो खट्टा . 

ये है लोक-तंतर, बुरा न लगाना, 
जो कहदे तुम्हे कोई 'उल्लू' का पट्ठा !   

--mansoor ali hashmi

Sunday, April 22, 2012

आज का भजन


 आज का भजन 

[भजन का 'अर्थ' समझने के लिए ...

‘कुछ’ तो हो सकता है निर्मल नरुला का

एकोऽहम्  

की 'कुंजी' अवश्य खरीदे ! ]

अब और तू 'निर्मल' को 'न'-'रुला',
तुझ पर भी होवेगी 'कृपा', 
जो बीत गया सो बीत गया,
मत शोर मचा, मत शोर मचा.


बीता कल तो था 'हज़ारी' का, 
'बाबा' है ये तो 'करोड़ी' का,
एक बेग 'ब्लेक' ज़रा ले आ,
जितना चाहे उसमे भरजा.


कर चुके 'सरस्वती' की वंदना,
'लक्ष्मी' संग 'उल्लू' पर चढ़ जा.
इस 'दूध' में 'फेन' नहीं है ज़रा,
आजा, मुख पर 'मक्खन' मलजा !

'कागज़' पत्तर तू फाड़ दे सब,
'इन्साफ' में लगती देर बहुत,
अब क्या 'उपमा' दे, कबीर भगत ?
'रूई' भी हुई 'अग्नि-रोधक' !


http://aatm-manthan.com