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Friday, July 15, 2011

Terrorism

दहशत 

[इस गीत की तर्ज़ पर यह रचना पढ़े:- 
"आना है तो आ राह में कुछ फेर नही है,
 भगवान् के घर देर है,  अंधेर नही है."]

फिर आग ये अब किसने लगाई है चमन में,
गद्दार छुपे बैठे है अपने ही वतन में.

दहशत जो ये फैलाई तो तुम भी न बचोगे,
क्यों आग लगाए कोई अपने ही बदन में.

नफरत से तो हासिल कभी जन्नत नहीं होगी,
क्यूँ उम्र गुज़ारे है तू दोज़ख सी जलन में.

ज़ख्मो को बयानों से तो भरना नहीं मुमकिन,
तीरों से इज़ाफा ही तो होता है चुभन में.

'वो' क़त्ल भी करके है क्यूँ रहमत के तलबगार,
हम ढूँढ़ते फिरते है, हर इक 'हल' को अमन में. 

--mansoor ali hashmi 

Wednesday, December 3, 2008

WEAKNESS

कमज़ोरी
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mansoorali hashmi द्वारा 3 दिसंबर, 2008 10:51:00 AM IST पर पोस्टेड #


उनका आंतक फ़ैलाने का दावा सच्चा था,
शायद मेरे घर का दरवाज़ा ही कच्चा था।


पूत ने पांव पसारे तो वह दानव बन बैठा,
वही पड़ोसी जिसको समझा अपना बच्चा था।


नाग लपैटे आये थे वो अपने जिस्मो पर,
हाथो में हमने देखा फूलो का गुच्छा था।


तौड़ दो सर उसका, इसके पहले कि वह डस ले,
इसके पहले भी हमने खाया ही गच्चा था।


जात-धर्म का रोग यहाँ फ़ैला हैज़ा बनकर,
मानवता का वास था जबतक कितना अच्छा था।
-मंसूर अली हाशमी