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Friday, April 22, 2011

माले मुफ्त - दिले बेरहम!


माले मुफ्त - दिले बेरहम!

संतोष जिसे है उसे थोड़ा भी 'घणा' है,
जो ज़ोर से बाजे है वही थोथा चना है.

आकाश को छूती हुई क्यूँ तेरी अना* है,    *[Ego]
तू खाक का पुतला है तू मिटटी से बना है.


'बाबा' के 'चमत्कार' हवाओं में दिखे है! 
कहते है पवन पूत भी वायु से जना है.

वायु में बवंडर है तो धरती में है कंपन,
'रामू' तो यह कहते है कि 'डरना भी मना है'.

अब 'कूक' न नगमे है न वो बादे सबा है!
जब फूल न शाख़े है; न फ़ल है न तना है.


अब 'मुफ्त' का खा कर जो हुआ कब्ज़ तो सुन लो,
जुल्लाब लगा देती जो पत्ती; वो 'सना'* है.      *[?]

--mansoor ali hashmi 

Monday, January 3, 2011

फूटे नसीब है........!

फूटे नसीब है........!


हालात आजकल तो अजीबो ग़रीब है, 
है डाक्टर मरीज़, तो रोगी तबीब है.

वां 'नेट' था न डाकिया, फूटे नसीब है,
ख़त जिसके साथ भेजा वो निकला रक़ीब है.

निकला वतन से दूर वो होता ग़रीब है,
भारत में जो भी आया वो बनता 'हबीब' है!

उनका ये काम* था कि मिटाएंगे दूरीयाँ,      *Telecom
इस वास्ते तो रादिया उनके करीब है.

हमदर्द उनको* अब भी पुकारे है 'मसीहा'       *डाक्टर विनायक' 
कानून  भेजता जिसे सूए सलीब है.

-मंसूर अली हाश्मी