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Friday, November 4, 2011

Broken Heel


केले का छिलका 



 आज उसका बैंक में ड्यूटी पर जाने का पहला दिन था. लोकल ट्रेन से उतर कर पुलिया के रास्ते से बैंक तक जाने का एक मात्र और सीधा रास्ता अपेक्षाकृत कम ट्रेफिक वाला और सूना था.  होटले और कुछ छोटी दुकाने खुली हुई थी. वह कुछ क़दम ही चली थी कि रास्ते के बीच पड़े हुए केले के छिलके पर उसकी नज़र गयी. अचानक रुक कर जो वह छिलका उठाने को झुकी तो उसकी ऊंची एड़ी की सेंडिल जवाब दे गयी. गिरने से तो उसने ख़ुद को बचा लिया लेकिन एक सेंडिल की एड़ी चटक गयी. अब उसके पास दूसरी सेंडिल भी उतार कर हाथ में लेने के अलावा कोई चारा न था. दोनों सेंडिल उठाने के बाद उसने आस-पास नज़र डाली कि कोई देख तो नहीं रहा है, कुछ चलते हुए राहगीर और ठहरे हुए लोगो का अपनी और ध्यान आकृषित देख वह खिसिया सी गयी. चाह कर भी वह टूटी हुई एड़ी उठाने का साहस न जुटा सकी. हाँ, केले के छिलके पर क्रोध भरी नज़र अवश्य डाली जिसके कारण यह मुसीबत सामने आई.
अब वह नंगे पांव पहला डग भरती इसके पहले ही सामने से आकर एक स्कूटर ठीक उसके पास रुका. चालक नौजवान ने कहा, "बैठिये, कहाँ जाना है आपको?" युवती बैठने लगी तो वह बोला, "एड़ी भी ले लीजिये, वापस लग जायेगी."  आदेशात्मक लहजा था, उसकी बात मानते ही बनी, मगर उसने अब साथ में केले का छिलका भी उठा लिया और सड़क किनारे फेंक दिया. राहगीरों और होटल के बाहर खड़े लोगों का देखना अब उसे नहीं खल रहा था. वह झट से स्कूटर पर सवार हो गयी जैसे किसी परिचित के साथ जा रही हो. स्कूटर आगे बढ़ाते हुए युवक ने पूछा, "मेडम कहाँ तक जाना है ?"  "इसी सड़क के अंत तक जहां मेरा बैंक है, परन्तु..."
"नंगे पांव वहां नहीं जा सकती", युवक ने उसकी बात पूरी करदी. 
"जी हाँ, और आज तो ड्यूटी पर मेरा पहला दिन ही है, मैं वहां तमाशा बन जाउंगी."
मरम्मत की कोई दुकान आस-पास नज़र नहीं आ रही थी, जूतों की कोई बड़ी दुकान भी अभी खुली हो; एसा नहीं लगता था.  किसी छोटी दुकान पर स्लीपर मिलने के चांस थे. एसी ही एक दुकान के सामने उसने स्कूटर रोक दी और स्लीपर खरीद ली, ताकि खुले पांव न चलना पड़े. युवक ने जाने की इजाज़त चाही. बैंक खुलने में अभी  भी १५ मिनिट की देर थी. युवती ने उसे पास ही दिख रहे एक रेस्टोरेंट में चाय की दावत दे डाली.. चाय पीते  समय ही दोनों ने एक दूसरे के नाम जाने. "काम" ? "मेरी ख़ुद की ही लेडिस जूतों की एक दुकान है."
"तो फिर एक लड़की को जो बैंक में सर्विस करने जा रही हो , स्लीपर क्यूँ दिलवा दिये?" 
"बात दरअस्ल यह है कि जहां आपकी सेंडिल टूटी,  ठीक उसके सामने ही मेरी दुकान है, मैं दुकान खोलने ही के लिए वहां पहुंचा था कि आपको इस हालत में पाया. अब ऐसे में अपनी ही दुकान पर आपको कुछ खरीदने की ऑफर देता तो ये ठीक वैसा ही होता जैसे पंक्चर बनाने वाले ने कीले बिखेर कर ट्यूब पंक्चर करवा दिया हो और फिर मेरा तो यह ख़याल था कि आपको अपने घर या  कहीं पहुंचना ही है तो पहुंचा दूँ , फिर अपनी दुकान खोल लूंगा."
लता, महमूद की बात पर दिल खोल कर हंसी फिर बोली, "चलो तो अब चलते है, मैं सेंडिल वही से खरीदूंगी."  महमूद झट से बोंल पड़ा, "नहीं-नहीं, आस-पड़ोस वाले सब देख रहे थे, अब आपको वापस लेकर गया तो जाने क्या-क्या बातें होगी, मैं शादी-शुदा आदमी हूँ." 
फिर वह लता को वही छोड़, दुकान जाकर उसकी साईज़ की सेंडिल ला कर समय से लता को बैंक पहुंचा दिया.

शिक्षा:- इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि - कभी जूते कि दुकान के सामने केले का छिलका नहीं फेंकना चाहिए !

Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
mansoor ali hashmi