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Thursday, January 12, 2012

एक दे , होता डबल ! है, आजकल


एक दे , होता डबल ! है, आजकल 
['शब्दों का सफ़र' का 'बेंडा' शब्द  भी ब्लॉग रचने में सहायक होता है !...http://shabdavali.blogspot.com] 

एन्डे-बेंडे चल रहे है आजकल,
'हाथी-गेंडे' छल रहे है आजकल.

एड़े-गैरे की यहाँ पर पूछ है,
वड्डे-वड्डे जल रहे है आजकल.

'येड़े' बालीवुड में होते है सफल,
हीरो को देखा विफल है आजकल.

मूर्खता और बुद्धिमत्ता साथ-साथ,
अर्थ 'येड़ा' के डबल है आजकल.

‘एड्डु’- ‘इड्डु’ रह गए पीछे बहुत,
"येद्दू-रेड्डी"  ही 'कमल' है आजकल !

बातें 'समृद्धि' की  है चारो तरफ !
नेत्र 'माँ' के क्यों सजल है आजकल ? 

ऐसे-वैसे, कैसे-कैसे हो रहे !
रत्ती, माशा भी 'रतल'*  है आजकल.     (* १ पाउंड/आधा सेर)

बिजली का संकट यहाँ पर इन दिनों,
सूने-सूने नल रहे है आजकल.

'हाथ' तो 'हाथी' कभी, जो अब 'कमल',
दल-बदल ही दल-बदल है आजकल. 


Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. 
If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
Mansoor ali Hashmi 

Friday, September 16, 2011

New Values

अच्छा तो हम चलते है !



हरइक सुबह वो कुत्ते संग जोगींग पे निकलते है,
उसे निबटा के रस्ते में , ये घर आकर निबटते है.

उलटते है, पलटते है, अदलते है, बदलते है,
जहां सत्ता का सुख मिलता, उसी जानिब फिसलते है.


बयानों को वो अपने ख़ुद उगलते है, निगलते है,
ये बेपेंदी के लौटे है, यहाँ से वां लुढ़कते है.


सभी को मौक़ा मिल जाता यहाँ कुछ कर दिखाने का,
जो  अनशन कर नहीं पाए वो अब उपवास करते है. 

उछाल आये जो डॉलर में तो रुपया पानी भरता है,
बिगड़ जाता बजट तबतेल के जब दाम चढ़ते है.


हमारे 'अर्थ' की अब है व्यवस्था ग़ैर हाथो में ,
कोई खींचे है धागा , और हम बस हाथ मलते है.

Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. 
If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
mansoor ali hashmi 

Tuesday, July 19, 2011

ढूँदते-ढूँदते.....

             [ समीर लाल जी के लेख ......   स्पेस- एक तलाश!!!!   से प्रेरित होकर....]

ढूँदते-ढूँदते......

पत्थरों का शहर, पत्थरों के है घर,
तंग रस्ते यहाँ, आदमी तंग नज़र,
हम भी पहुंचे कहाँ घूमते-घूमते.

'चौड़े' हम और सकड़ी बड़ी रहगुज़र !   
ठेलती भीड़ है, कुछ इधर-कुछ उधर,
पार लग ही गए कूदते - कूदते.

शोर बाहर  था, सन्नाटा अन्दर मिला,
जब टटोला तो हर सिम्त पत्थर मिला.
बुझ गयी है नज़र घूरते-घूरते.

नक्श पत्थर पे तहरीर कैसे करूं?
[सब कहा जा चुका है तो अब क्या लिखू,] 
कुछ खरोचा तो, नाख़ून हुए है लहू,
थक गया मैं 'जगह'* ढूँदते-ढूँदते.        *[space]

--mansoor ali hashmi 
  
http://aatm-manthan.com


Wednesday, February 9, 2011

वो....ग्ग्या....


वो....ग्ग्या....   

फिर आज इक दिन खो गया,
9 - 2 - 11 हो गया,
लौटा नही है, जो गया.

लो,  नौ-दो-ग्यारह* हो गया,       
पेचीदा कानूनों में फंस,
निर्णय ही देखो खो गया!    

झंडे का वंदन हो गया,
आज़ाद पाके ख़ुद को फिर, 
जागा ज़रा, फिर सो गया.


प्रतिष्ठा अपनी धो गया !
हंगामा मत बरपा करो,
जो हो गया सो हो गया.

'पिरामिडो' के देश का,
वो तो 'इकत्तीस मारखां'     [Ruling since 31 years]
देखो तो फिर भी रो गया.

--mansoorali hashmi

Tuesday, February 8, 2011

बड़ा 'कल' से तो है 'पुर्ज़ा'


बड़ा 'कल' से तो है 'पुर्ज़ा'  

यथा राजा; तथा प्रजा,
यहाँ कर्ज़ा, वहां कर्ज़ा.


दिवाल्या हो के तू घर जा,
चुकाता कौन याँ कर्ज़ा.

प्रकृति  ने नियम बदले !
वही बरसा, जो है गरजा.

नई रस्मो के सौदे है,
नगद 'छड', कार्ड* ही धर जा.   [*Credit]

अभी तक 'दम' है 'गांधी' में,
जो जीना है तो यूं मरजा.

जो अंतरात्मा मुर्दा,
डुबो दे जिस्म क्या हर्जा?

कुंवा है इक तरफ खाई,
जहां चाहे वहां मुड़ जा.

न दाया देख न बायाँ 
जहां सत्ता, वही मुड़ जा.

है 'BIG SPECTRUM' दुनिया,
जो जी में आये वो कर जा.

भले जन्नत हो क़दमो में,
है दूजा ही तेरा* दर्जा.      *[औरत]

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"आधिकारिक सूचना"

करे गर बात हक़* की तो,       [ *अधिकार/ R.T.I. ]
तू पीछे उसके ही पड़ जा,
खुलासा होने से पहले,
'अदलिये'* से भी  तू जुड़ जा.     [*Judiciary ]

mansoorali hashmi

Saturday, December 5, 2009

केट / CAT

सी ए टी ...केट , केट यानि बिल्ली नही!




फिर बुद्धिजीवियों से इक mistake हो गई,
अबकी, शिकार चूहे से एक CAT हो गई!  

थी NET पर सवार मगर लेट हो गयी,
होना था T-twenty, मगर test हो गई.

zero फिगर पे रीझ के लाये थे पिछले साल,
इक साल भी न गुज़रा, वो अपडेट*  हो गयी.


e-mail  से जुड़े थे, हुए जब वो रु-ब-रु,
देखा बड़े मियां को तो miss जेट* हो गयी.


बिन मोहर के ही वोट से होता चुनाव अब,

pee  बोलती मशीन ही ballet हो गयी.




महबूबा,पत्नी , बाद में बच्चों कि माँ बनी,
कुछ साल और गुज़रे तो सर्वेंट हो गयी.




'सत्रह बरस'* ही निकली जो लिबराह्नी रपट,
पक्ष-ओ-विपक्ष दोनों में रीजेक्ट हो गयी.




लौट आये उलटे पाँव, मियाँ तीस मारखां,
रस्ते से जब पसार* कोई cat हो गयी.




अमरीका ने नकारा तो रशिया पे ख़ैर की,
स्वाईंन फ्लू से उनकी वहां भेंट हो गयी.




टिप्याएं रोज़-रोज़ तो ये फायदा हुआ,
गूगल पे आज उनसे मेरी chat  हो गयी.




*अपडेट =दिन चढ़े,  *जेट=उड़न-छू,  *सत्रह बरस=अवयस्क,
*पसार होना =गुज़रना.


-मंसूर अली हाशमी