Sunday, October 27, 2013

ग़ज़ल

ग़ज़ल 

संस्कारों की ये विरासत है,
ये मेरा देश है, ये भारत है. 

पैकरे हुस्न है कि आफत है ?
क्या बुलंद उसका क़द्दो-क़ामत है!

मैं, कि शौरीदा सर, गिरफ्ते बला 
उसकी आँखों में बस शरारत है. 

काम शैतान ही के करता है,
फिर भी शैतान ही पे लानत है !

जब भी पढता है, बे-क़रार करे,
है वो 'इन्दौरी' नाम 'राहत' है. 

लफ्ज़ के जोड़-तौड़ में माहिर,
'हाशमी' ही की ये रिवायत है. 

--mansoor ali hashmi 

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