Monday, August 19, 2013

कब खेल रुकेगा गन्दा !


आत्म-मंथन की २५० वीं पोस्ट पर 'टुंडा' आ बैठा है, ख़ुदा ख़ैर करे !





कब खेल रुकेगा गन्दा !

अब हाथ लगा है 'टुंडा',
बरसो-बरस तक ढूँढा. 

भर गया है इसका हंडा ,
फूटेगा पाप का भंडा.  

जब लगेगा इसको डंडा,
होवेगा जोश भी ठंडा.

'नापाक' समझ कर फेंका*,                *'पाक' ने  
हो गया जो बूढ़ा 'मुण्डा'.  
'दाऊद' से छोटा  गुंडा,
तैयार करो फिर फंदा. 

डॉलर सर पर चढ़ बैठा,
व्यापार हुआ है मंदा.

मौसम 'चुनाव' का आया,
फिर करो इकट्ठा चन्दा.   

अब अगले साल में देखो,
फहराता कौन है झंडा ! 

रक्षा-बंधन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई। 
--mansoor ali hashmi 

4 comments:

वीना श्रीवास्तव said...

बढ़िया है...चुनावी बुखार चढ़ने ही वाला है....

qjlw said...

hasa hasa ke dukha diya munda

Udan Tashtari said...

कौन जाने कब!!

सुज्ञ said...

यथार्थ………