Thursday, March 28, 2013

केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी

केसरिया, लाल, पीला,  नीला, हरा, गुलाबी

यह टाईटल ही तरही का मिसरा था जो इस बार पंकज सुबीर जी ने होली की मुनासिबत से दिया था . इन्होने मेरी रचना को क़बूल किया और "सुबीर संवाद सेवा'' [ http://subeerin.blogspot.in/ ] पर तरही मुशायरे में जगह दी .

'होली' पर कभी कुछ कहने का अवसर ही नही मिला. अनुभवहीनता के आधार पर जो कुछ भी लिख पाया हूँ प्रस्तुत है। 


केसरिया, लाल, पीला,  नीला, हरा, गुलाबी
जिस रंग में तुझको देखा, मन हो गया गुलाबी.
 
अब कौन रंग डालू तू ही ज़रा बतादे 
केसरिया,लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी ?

होली से पहले ही है छायी हुई ख़ुमारी
हर सूं ही दिख रहा है नीला,हरा, गुलाबी.

''केसरियालाल''पीला; क्यूँ होता जा रहा है,
''सेठानी'' पर सजा जब नीला, हरा, गुलाबी.

तअबीर मिल रही है, रुखसार से हया की    
आईना हाथ में और चेहरा तेरा गुलाबी 

केसरिया, लाल, नीला; अब खो रहे चमक है 
सब्ज़ा* हुआ है पीला , 'मोदी' हुआ गुलाबी.            [*हरा]


सच बात तो यह है कि हमारे 'धर्म-निरपेक्ष' देश में होली खेलने का अवसर ही नहीं मिला !  बचपन में अपने बंद मोहल्ले में 'सादे पानी' से ही होली ज़रूर खेली.  क्योंकि दूसरी तरफ 'गंदी होली' [ गंदी इसलिए कि उसमे रंगों के अलावा 'गौबर' और 'गालियाँ' भी शामिल होती थी] खेली जाती थी. बच्चों को प्रदूषण से बचाने का ठेका तो हर समाज लेता ही है ! फिर किशोरावस्था आते-आते हम ज़्यादा अनुशासित हो चुके थे, सो सफ़ेद कपड़े पहन कर होली के दिन भी निर्भीक घूम लिया करते थे- यूं 'दाग-रहित'  रह लिये. जवानी में आर. के. स्टूडियो की होलीयाँ देख-देख कर [चित्रों में], लाड़ टपकाते रहे……….     
 
और अब बुढ़ापे में तो……। 


Mr. & Mrs. Hashmi in 2013.jpg

क्या लाल, कैसा पीला, केसरिया क्या है नीला ? 
सब कुछ हरा लगे है, सावन गया 'गुलाबी' !

''केसरियालाल'' पीला, कुरता भी है फटेला,
'नीला' हरी-भरी है, हर इक अदा गुलाबी.

फिर भी "होलीयाने" की कौशिश कुछ इस तरह की है :-

टकता है छत से बाबू, चेहरे पे है उदासी,
खाए गुलाब जामुन  नीचे गधा गुलाबी. 
पिचकारी छूटती है, किलकारी फूटती है,
ढेंचू का सुर अलापे , देखो गधा गुलाबी.

[ठीक से तो पता तो नही पर होली के दिन गधों को कुछ विशेष महत्व प्राप्त हो जाता है, इसीलिए गधे महाराज की मदद ले ली है कि होली की इस गोष्ठी में शायद प्रविष्टि मिल जाये.


पुनश्च :    नीचे से १४ वीं पंक्ति में 'लार' की जगह "लाड़" टपक गयी है ! कृपया टिस्यू पेपर से साफ़ करले ! धन्यवाद.
 
-mansoor ali hashmi 

4 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

वाह हाशमी जी,
आज तो मजा कर दिया आप ने।
त्यौहार हमारे जीवन की सांस्कृतिक विरासत हैं। इन्हें किसी तरह के धार्मिक बंधन में नहीं बांधा जा सकता। होली जो शरद ऋतु के अवसान पर वसंत के मौसम में आती है। एक मौसमी त्योहार है। पुराने मौसम को विदा करने और नए मौसम का स्वागत करने का एक अनूठा रंग है इस त्यौहार का। क्या कोई उत्तर भारत में रह कर इस त्यौहार से अछूता रह सकता है क्या? फिर इस त्योहार का एक निराला ढ़ंग और है। यह केवल रंगों से ही नहीं मनाया जाता। घरो में जहाँ विशेष खाद्य निर्मित किए जाते हैं वहीं। गाने के रसिक इसे गीतों से गा कर मनाते हैं। वे डूब कर गाते हैं। आदिवासियो के लोक गीतो से ले कर पक्की राग वाले शास्त्रीय रसिक पूरे फागुन इसी रस में गोते लगाते रहते हैं। स्वांग करने वाले तरह तरह के स्वांग करते हैं। लोगों के यौन जीवन को एक खेल में बदल देते हैं। इन दिनों यौन जीवन के संबंध में किए गए मजाक का बुरा नहीं मानता कोई। बहुत चीजें हैं जिन के कारण यह त्यौहार वास्तव में जमीन का, लोगों का, उन के उल्लास का त्यौहार है। कौन इस से अछूता रह पाएगा?
होली पर रंग न खेल पाने का जो अफसोस आप के वक्तव्य में दिखाई पड़ता है उसे समझा जा सकता है। सूफियों ने इस त्यौहार की महत्ता को अलग तरह ही समझा। इस अवसर पर सारे गायक खुदा के साथ जिस प्यार की होली गाते मनाते हैं वह अलग एक अनूठा अंदाज है। इस त्यौहार को हमें धर्म के खाँचे से निकाल कर हमारा भारतीय जनता का त्यौहार बनाना चाहिए।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

होली को चाहे जैसे देख लो कोई सबकी है ये

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