Wednesday, August 1, 2012

क्या ये होता जा रहा हँ आजकल !



क्या ये होता जा रहा है आजकल !

'साहबे मीरास'* था पहले कभी,            *[ अच्छी परम्पराओं का  वारिस ] 
'भांड' होता जा रहा है आजकल.

'गाय' सा भोला था जो पुत्तर कभी,
'सांड' होता जा रहा है आजकल.

नीम था वो भी करेले का चढ़ा,
'खांड' होता जा रहा है आजकल !

हेअर स्टाईल कभी फ़िल्मी रही,
'चाँद' होता जा रहा है आजकल.






दहेज-प्रथा बढ़ रही है इन दिनों,
'काण्ड' होते जा रहे है आजकल.


Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies.
If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.
--Mansoor ali Hashmi

8 comments:

विष्णु बैरागी said...

लगता है, चुनाव हैं ऐन सामने
बदला-बदला हुआ है वो आजकल

आप न होते तो आता नहीं शऊर
आपके भरोसे जी रहे हैं आजकल

Mansoor ali Hashmi said...

बैरागी !, सावन ! और शाईरी ?
क्या बात है !
रंग क्या-क्या दिख रहे है आजकल !

दिनेशराय द्विवेदी said...

बैरागी जी,
बात बनी नहीं। इस गजल के शैरों के दूसरे मिसरे के आरंभ में भी तुक है जो आप के शैरों में नहीं।

दिनेशराय द्विवेदी said...

ये तो एक नए ढंग की ग़ज़ल हो गई, जिस के शैरों के दूसरे मिसरे के आरंभ में भी तुक है।
बधाई!

Mansoor ali Hashmi said...

शुक्रिया द्विवेदीजी, चाँद ! देर से ही सही , दिखा तो.......!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

चांद कहीं गया नहीं था, आसपास ही था।
(चांद शब्द में चंद्र विन्दु की जरूरत नहीं) फिर तो वह चान्द न रह कर चाँद हो जाता है।

कुमार राधारमण said...

है दूध का न धुला कोई,सब जानते,मगर यहां
आरोप-प्रत्यारोप का है, दौर चलता आजकल!

अजित वडनेरकर said...

वाह वाह हर बार है
कुछ और की दरकार है