Tuesday, June 5, 2012

चर्चा के वास्ते अभी 'पर्यावरण' तो है !

चर्चा के वास्ते अभी 'पर्यावरण' तो है !
[अजित वडनेरकरजी की आज की पोस्ट "कुलीनों का पर्यावरण" से प्रभावित]
इज्ज़त बची हुई कि कोई 'आवरण' तो है,
'प्रदूषित' वर्ना अपने सभी आचरण तो है.

"चर्चा" कुलीन अब नहीं करते ग़रीब की,
स्तर बुलंद जिसका वो ''पर्यावरण'' तो है.

सुनते है आजकल ये बहुत ही ख़राब है,
'माहौल' जिसका नाम वो 'वातावरण' तो है.


  
मरते नहीं कि शर्म ही अब मर चुकी जनाब,
'अनशन' का उनके नाम मगर 'आमरण' तो है.

'बाबा' किसी के हाथ में आते नहीं मगर,
हाथों के अपनी पहुँच में उनके 'चरण' तो है.

'बाबी' भी अब तो मिल गयी है, 'राधे' नाम की,
'बाबाओं' से निराश ! तो कोई शरण तो है.

बदले है अर्थ, प्रथा तो जारी है आज भी,
'रस्मो' के साथ ही सही, 'चीर-हरण' तो है.


[हुस्नो जमाल उम्र की जब नज्र* हो गए, *[भेंट]
शौखी भरी अदा है, अभी बांकपन तो है.]


--mansoor ali hashmi [from Kuwait]

6 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह जी बढ़ि‍या है

अजित वडनेरकर said...

मरते नहीं कि शर्म ही अब मर चुकी जनाब,
'अनशन' का उनके नाम मगर 'आमरण' तो है.

करारी चोट की है आमरण करने वालों पर । क्या बात है ।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

Kyaa baat hai...!!

अरुण चन्द्र रॉय said...

आपको पढ़कर तो आनंद आ गया.. आपकी सभी रचनाओं में रुपया सबसे उम्दा है... फिर पर्यावरण... बहुत खूब....

दिनेशराय द्विवेदी said...

बेहतरीन!

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

बदले है अर्थ, प्रथा तो जारी है आज भी,
'रस्मो' के साथ ही सही, 'चीर-हरण' तो है.

bahot achcha likhten hain aap! Shukriya