Sunday, May 27, 2012

रूपये की व्यथा

रूपये की व्यथा










गिर कर भी मैं हारा नहीं
उठता रहा, चलता रहा,
घटता हुआ रुपया हूँ मैं,
डॉलर से बस दबता रहा.

अपनों ने ही काला किया,
मैं था खरा, खोटा किया,
उसने किया है बेवतन,
जिनको सदा पाला किया.

वापस मुझे ले आईये,
इज्ज़त मुझे दिलवाईये,
"अर्थ" इक नया मिल जायेगा,
फिर से मुझे अपनाईये.

Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies.
If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
--mansoor ali hashmi

7 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

☺☺☺

दिनेशराय द्विवेदी said...

रुपये पर वास्तव में दया आ रही है। पर वे जो बाहर ले गए उन्हें नहीं आएगी।

अजित वडनेरकर said...

रुपए का दारिद्र्य, रुपए की दारुणता,
रुपए का करुण विलाप....

उम्मतें said...

रुपये की हालत वोटर जैसी हो गई है !

विष्णु बैरागी said...

सौ टका सही कहा हाशमीजी आपने।

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

wah! very nice!

Mavis said...

ati sunder sir

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