Thursday, January 12, 2012

एक दे , होता डबल ! है, आजकल


एक दे , होता डबल ! है, आजकल 
['शब्दों का सफ़र' का 'बेंडा' शब्द  भी ब्लॉग रचने में सहायक होता है !...http://shabdavali.blogspot.com] 

एन्डे-बेंडे चल रहे है आजकल,
'हाथी-गेंडे' छल रहे है आजकल.

एड़े-गैरे की यहाँ पर पूछ है,
वड्डे-वड्डे जल रहे है आजकल.

'येड़े' बालीवुड में होते है सफल,
हीरो को देखा विफल है आजकल.

मूर्खता और बुद्धिमत्ता साथ-साथ,
अर्थ 'येड़ा' के डबल है आजकल.

‘एड्डु’- ‘इड्डु’ रह गए पीछे बहुत,
"येद्दू-रेड्डी"  ही 'कमल' है आजकल !

बातें 'समृद्धि' की  है चारो तरफ !
नेत्र 'माँ' के क्यों सजल है आजकल ? 

ऐसे-वैसे, कैसे-कैसे हो रहे !
रत्ती, माशा भी 'रतल'*  है आजकल.     (* १ पाउंड/आधा सेर)

बिजली का संकट यहाँ पर इन दिनों,
सूने-सूने नल रहे है आजकल.

'हाथ' तो 'हाथी' कभी, जो अब 'कमल',
दल-बदल ही दल-बदल है आजकल. 


Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. 
If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
Mansoor ali Hashmi 

10 comments:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...






आदरणीय चचाजान मंसूर अली हाश्मी साहब
आदाब ! प्रणाम ! स्नेहाभिवादन !

सलाम है आपको !
सलाम है आपकी कलम को !
सलाम है आपकी ज़िंदादिली को !


आप कहते रहें…
हम सुनते ही रहें …

आपकी बहुत याद आती रही …


नव वर्ष 2012 के लिए बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

विष्णु बैरागी said...

देखना यह सब था जिनका मामला
मशगूल हैं कहीं और वे सब आजकल

कलमकारों ने ले लिया है काम यह
इसलिए हाजिर हैं हाशमी आजकल

दिनेशराय द्विवेदी said...

हाशमी जी,
आप का कलाम देख कर खुशी हुई। दुखः-सुख के बीच से निकल कर अपने काम पर लौट आना बड़ी बात है।

नीरज गोस्वामी said...

भाई जान वाह...वाह...वाह...आपकी रचनाओं में अदम गौंडवी साहब जैसी चमक है...क्या बात है...

नीरज

Smart Indian said...

जवाब नहीं आपका!

अजित वडनेरकर said...

आपकी जानकारी के लिए येदुरप्पा को मराठी मीडिया में येड्डी ही कहा जाता है।
बहुत खूब....

उम्मतें said...

बढ़िया प्रस्तुति !

ishwar khandeliya said...

क्या बात कही है आपने भाई साहब
बातें 'समृद्धि' की है चारो तरफ !
नेत्र 'माँ' के क्यों सजल है आजकल ?
सचमुच हम सभी समृद्धि की तरफ भाग रहें है
रिश्तों की परवाह गौड़ होती जा रही है
आपकी कलम को सलाम

कुमार राधारमण said...

क्या ख़ूब फ़रमाया हुज़ूर! अपना समय ऐसा ही है।

dinesh aggarwal said...

खूबसूरत एवं सराहनीय रचना.......
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